पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४८१

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४७४ अनुमरण अनुमरण (सं० क्ली०). अनु सह पश्चाद्वा मरणम्, मृत्यु ट्। १ पोछेको मृत्यु, जो मौत किसौके मरने बाद हो। २ पतिको मृतदेहके सङ्ग किंवा पतिको मृत्यु बाद उसका पादुकादि उठा ज्वलन्त चितामें स्त्रीका शरीर विसर्जन, खाविन्द के मरने बाद उसकी औरतका उसीके साथ जल मरना। पतिको मृत- देहके साथ एक ही चितापर स्त्रीका जल मरना सचराचर सहगमन या सहमरण कहाता है। पतिक विदेशमें मरने किंवा उसकी मृतदेह न मिलनेसे उसके पादुकादि उठा स्त्रीका आप जल मरना अनुगमन या अनुमरण नामसे पुकारा जाता है। किन्तु अनेक स्थलमें फिर अनुमरण और सहमरण शब्दमें प्रभेद नही पड़ता। अनुमरण कहनेसे भी पतिको देहके .साथ जलकर मरना समझा जाता है। किन्तु सह- • मरण शब्दसे पश्चात् मरणका मतलब कभी नहीं निकलता। "तीयेऽहि उदक्याया मृते भर्तरि वै विजाः । तस्वानुगमनार्थाय स्थापयेदैकरावकम् ॥" स्त्रीको रजस्वलाके ढतीय दिवस उसके स्वामीको मृत्यु पड़नेसे उस स्त्रीको अपने पतिके साथ अनुगमन लगा सकनेके लिए एकरात्र मृतदेह रख छोड़ना चाहिये। अनुमरणको प्रथा प्रचलित रही। स्वामीको मृत्यु होनेसे उसको स्त्री किसी न किसी प्रकार पतिके साथ प्राण छोड़ती थी। प्राचीन यूनानी और शकजातिके मध्य यह प्रथा चलती थी, दिप्रोदोरस्के पुस्तकमें जिसका प्रमाण मिला। प्रपासि यासने लिखा, कि उस कालके रोमक पतिको मृत्यु बाद उसकी स्त्रीको जला डालते थे। पहले उत्तर-युरोपमें भी सहमरणका प्रचलन रहा। कहानी में सुनते हैं, कि वहांके लोग उस समय वोदिन देवताको पूजते थे। किसी दिन वोदिनके पुत्र बालदारके शिरमें हठात् पेड़को कोई छोटो शाखा लग गयी। विधाताका कैसा निन्ध है ! उस क्षुद्र शाखाके आघातसे ही उनको मृत्यु हुयो। वोदिनने स्वर्ग में उतर यमदूतसे पुत्र वापस देनेका अनुरोध लगाया। यमदूतने कहा, 'बालदार के लिये यदि समस्त जीव जन्तु रोयें, तो वह प्राण पा जायंगे। इससे उनके शोकमें सकल ही रोये, पशु- पक्षी भी हाय-हाय मचाने लगे। किन्तु लोको नामक किसी वृद्धा स्त्रीके चक्षुसे एक बूंद भी पानी न पड़ा था। सुतरां बालदार फिर जो न सके । वोदिन- की पुत्रवधू मृत पतिके साथ जल मरी। शकजातिके मध्यमें भी यह प्रथा रही। राजाके मरनेसे उनकी पटराणी, मद्यवाहिनी, पाचिका, साईस, नौकर और घोड़ा काटकर मृतदेहके साथ कुब्रमें गाड़ दिया जाता था। इसका तात्पर्य यही है-राजा संसार छोड़ जब चल बसे, तब इस भव- समुद्रके पार उन्हें न जाने कितनी दूर जाना पड़े,- कहांतक पहुंचने बाद लोकान्तर मिले; इसलिये साथमें साथी ज़रूर चाहिये। यही कारण है, कि राजा अपनो प्रियतमा राणी और दासदासी साथ ले जाते थे। यह निष्ठुर प्रथा आज तक हबशी लोगों में चली आ रही है। यूनान देशके हेरोदोतस्ने लिखा है, कि थेस प्रान्तमें किसी पुरुषको मृत्यु होनेसे उसके बन्धु-बान्धव पहले उसे मिट्टी देते, पोछे उसकी जो ज्यादा प्यारी स्त्री होतो, उसे उसी कब्रपर काट डालते थे। गेटो और ओसेनियाके लोग भी विधवा स्त्रियोंको इसीतरह मृतपतिके पास बलि चढ़ाते रहे। "देशान्तरमते पत्यौ साध्वी तत् पाटुकाइयम् । निधायोरसि स'शुद्धा प्रविशत् जावेदसम् ॥” (ब्रह्मपुराण) देशान्तर में पतिको मृत्यु. होनेसे साध्वी स्त्री उसका पादुकाहय गोद में उठा, शुचि साध अग्निमें प्रवेश पहुंचाये। किन्तु ब्राह्मणके पक्षमें यह विधि निषिद्ध है। यथा स्मृति-"पृथक् चिति' समारुह्य न विप्रा गन्तुमर्हति।" महाभारतमें बताया है,- "भानुमरणं काले याः कुर्वन्ति तथा विधाः । कामात् क्रोधादभयान्मोहात् सर्वाः पूता भवन्ति ताः ॥" स्वामौके सहमरणकालमें काम, क्रोध, भय, किंवा मोहसे जो स्त्री पतिके साथ मरेगी, उसके सकल ही पवित्र पड़ जायेंगे। अति प्राचीन कालमें पृथिवीके प्रायः सकल स्थानमें