पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४८

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भरा । अक्षतयोनि-अक्षपटल । ४ धानका लावा। ५ यव । ६ वह कुमारौ जिसका ऊपर (Lenticular crystaline Lens) अथवा उसके । पुरुषसे समागम न हुआ हो। आवरणके ऊपर (Capsular Capsule) या इन दोनोके अक्षतयोनि (सं० स्त्रो०) १ वह योनि जिसमें वौर्य ऊपर (Capsule lenticular) एक प्रकारका जो आव- स्थापनको चेष्टा न हुई हो। २ वह कन्चा, जिसका रण या परदा पड़ता है, उसीसे दृष्टिशक्ति ढक जाती पुरुषसे संसर्ग न हआ हो। यह आवरण सिरस (Sterous) रममै अक्षतवीर्य (सं० त्रि०) अक्षतयोनिका उलटा, वह रहता है। पुरुष जिसका ब्रह्मचर्य अखण्ड हो। जिसका वीर्यपात फले या जाले नाना प्रकारके होते हैं। इनमस न हुआ हो। जिसने स्त्रीसंसर्ग न किया हो । कठिन और कोमल दो प्रकारके फले प्राय: संसारमै अक्षता (सं० स्त्री०) १ जिस स्त्रीका पुरुषसे संयोग न देखे जाते हैं। कठिनको अङ्गरेजोमें Sullusio dura हुआ हो। पुरुषसंयोगरहिता स्त्री। २ धर्मशास्त्रानुसार कहते हैं। यह कटावर्ण प्रायः बुट्टीको होता है। वह पुनर्भू स्त्री, जिसने पुनर्विवाहपर्यन्त पुरुषका कोमल फला (Sulfusio mollis) कुछ-कुछ नीला आर संयोग न किया हो। ३ अक्षतयोनि। ४ कर्कट- आकारमें भी अपेक्षाकृत बड़ा होता है। किसी- शृङ्गी। काकड़ासिङ्गो। किसो बच्चे को आंखोंमें फला गर्भसे ही पड़ा हुआ अक्षदर्शक (सं० वि०) १ जुआरौ। २ व्यवहारमें आता है। बहुतोंके माथे या आंख में चोट लगनमै यह निपुण। ३ धम्माध्यक्ष। ४ न्यायाधीश। न्यायकर्ता। रोग उत्पन्न होता है। किसी-किसी बालककी आंख- मामले-मुकद्दमे में चतुर । (स्त्री) अक्षदर्शिका । में खेत दूधको भांति फूला पड़ता है। यह फूला अक्षदृश (सं० पु०) १ न्यायाध्यक्ष, विचारपति । २ जुआ सोने और शिर घुमाने-फिरानसे इधर-उधर फिरता है। खेलनेवाला । (स्त्री) अक्षदृशा । जाला, मांडा, फूला, आंखके रोग हैं, इनमें बहुत ही अक्षदेवी (सं०) अक्ष-देव-णिनि। जुआ खेलनेवाला। थोड़ा अन्तर है। नेत्रके ऊपर एक प्रकारका परदा (स्त्री) अक्षदेविनी। पड़ जानेके कारण इसका नाम 'अक्षपटल' हुआ है। अक्षयूत (सं० पु०) १ पासा खेलने में निपुण। पासेके बङ्गालमें इसे छानी' कहते हैं। खेलका प्रेमी। (सं० क्लो०) २ पासोंका खेल। सुरही। अक्षपटलका कारण एक नहीं है। देहको टुर्ब- अक्षय तादि (सं० पु०) पाणिन्युक्त गणभेद । अक्षयूत, लता, पेशाबको पीड़ा, आंख या मस्तकमें चोट लगन, जानुप्रहृत, जङ्घाप्रहृत, पादखदन, कण्टकमद्दन, बालकोंके दड़का नामक रोग होने और लौकिक देह- गतागत, यातोपयात और अनुगत यह सब अक्ष स्वभाव अर्थात् पिताके फला रहनम पायः बच्चाको द्यूतादिगणमें पठित हैं। यह रोग लग जाता है। दूसरी तीव्र प्रकाशक सामने अक्षधर (सं० पु.) १ साखोका पेड़। २ विष्णुका चक्र । आंख भरकर देखनेसे आखें तिलमिला जाती हैं और ३ चाकको धुरी। (स्त्री०) अक्षधरा। (त्रि.) चक्र प्रायः यह रोग पैदा हो जाता है। अत्यन्त महीन धारक मात्र। कामको लगातार आंख फाड़-फाड़ कर देखने और अक्षधर (सं० त्रि०) १ पहियेको धुरी। २ पासेको धुरी। करनेसे भी फूला उत्पन्न होता है। मंडकको कुछ अक्षधूर्त (सं० त्रि०) १ जुआ या पासोंके खेलमें धूर्त । दिन चीनौ और नमक खिलाने और शराब पिलानेसे २ प्रतारक। ३ साखोका वृक्ष । देखा गया है, कि उसकी दोनो आखोंमें फला पड़ अक्षधतिल (सं० पु०) वृष, बैल । जाता अक्षन् ( सं० क्लो० ) नेत्र, आँख । एलोपेथी-फला रोगको प्रचलित चिकित्साएं नीचे अक्षपटल (सं० लो०) १ आँखको पलक। २ स्वच्छ दी जाती हैं-एलोपेथोके डाकर सबसे पहले दर्षण । ३ आंखोंका एक रोग विशेष । आंखको पुतलीके सुपथ्यको व्यवस्था करते हैं; जैसे दूध, अण्डा, -