१० भेद, चौज़। अनुप्रचा -अनुबन्धी ४०१ मतलब यह, कि जिसके पास दयिता (स्त्री) ऐसा अनुवन्ध अवश्य आयेगा। इससे गुण-वृद्धिका नही दिखाती, उसके लिये चन्द्र भी अग्नि-जैसा काम निकलता और प्रत्ययमें इसका लोप भी चमकता है। फिर जिसके पास दयिता रहती, लगता है। उसके पक्षमें अग्नि भी चन्द्र-जैसा झलकता है। इस अनु-बन्ध-भावे घन । ४ बन्धन, सम्बन्ध, रिश्ता, स्थानमें श्लोकके उभय अर्धपर 'दवदहन,' शब्दसे जकड़। ५ अनुवृत्ति, सीधा उतार। ६ प्रारम्भ, अग्नि एवं 'तुहिनदीधिति' शब्दसे चन्द्र समझ पड़ता आगाज। ७ उपक्रम, सिलसिला। ८ पूर्वलक्षण, है, अर्थमें कोई भी भेद नहीं। केवल पूर्वार्धके पहले आसार। है अविच्छेद, लगाव। तुहिनदीधिति शब्दमें दवदहनका एवं परार्धमें फ़र्क । ११ अनुरोध, इरादा। १२ आरोप, अन्दाज। दवदहन शब्दसे तुहिनदीधितिका विधान बंधा, इससे अनुवध्यते कर्मणि घञ्। १३ जन्य, पैदा होनेवाली- यह तात्पर्यमानभदसे लाटानुप्रास बना है। १४ अनित्य, जो शै मुदामी न हो। पदगत अनुप्रास समासमें भी पड़ा करता है। १५ पश्चाभावी शुभाशुभ, आगे आनेवाला भला-बुरा। वहौ फिर एक समास, भिन्न समास, समास या १६ लेश, छोटा हिस्सा। असमासमें प्रातिपदिकका सामा रहनेसे सजता है। अनुबध्नाति, कर्तरि अच् । १७ जनक, पैदाकरने- "सितकरकररुचिरविभा विभाकराकारधरणिधरकौतिः । वाला शख स। १८ प्रकृति, कुदरत । १८ वैद्यमतसे पौरुषकमला कमला सापि तथैवास्ति नान्यस्य ॥" वातादि दोषका अप्राधान्ध । २० गणितमें भग्नांशका हे विभाकराकार! (सूर्यतुल्य ). हे धरणिधर! संयोग, कसरका जोड़। वेदान्त-मतमें-अधिकारि- (पृथिवीपालक ) आप ही को कीर्ति चन्द्रकिरण विषयके सम्बन्धका प्रयोजन, जो वैदान्तिक तत्व जैसी निर्मल है, अन्यको नजर नहीं आती एवं उन अक्षुस्स रहे। प्रसिद्ध कमलान (लक्ष्मी) भी आपके पौरुषरूप: 'दोषोत्पादोऽनुबन्धः स्यात् प्रकृतादिविनश्वर । कमलमें ( पद्म) अधिष्ठान लिया है, दूसरेके नहीं। मुख्यानुयायिनि शिशौ प्रकृतस्यानुवर्तने ॥' (अमर) पदानुप्रास पांच प्रकारसे पड़ता है। तदेव पञ्चधा अनुबन्धक (सं० त्रि.) सम्मिलित, गठित, सम्बन्ध. मतः।” (कावाप्रकाश) असमास में एक-एक पद और अनेक विशिष्ट, मिला, लगा, सटा, गंठा । पदका सामा दी एव समासमें तीन-इसतरह पांच अनुबन्धन (स.ली.) सम्बन्ध, श्रेणी, सिलसिला, प्रकार निकलता है। रिश्ता, लगाव, जकड़। अनुप्रेक्षा (सं० स्त्री०) १ अक्षुस्स दृष्टिका देखना। अनुबन्धा (सं० स्त्री०) अनुबध्यतेऽतिखासन व्याप्रियते- २ शास्त्रार्थसाधन, किसी किताबी बातका गौर ऽनया , अनु-बन्ध-घञ्, गौरादित्वात् ङीष् । १ हिक्का- अनुप्लव (स० पु०) अनु-प्लु-अप्, अनु पश्चात् प्लवते रोग, हिचकी। २ तृष्णा, प्यास । आज्ञापालनपरतया सख्यतया वा शीघ्रं गच्छति। अनुबन्धित्व (सं० लो०) संसर्ग साधित होने की अनुचर, दास, सहाय, नौकर, चाकर, खिदमतगार, स्थिति, साथ रहनेको हालत, सहचारिता, मातहतो। हाजिरबाश। अनुबन्धिन् (सं० त्रि.) अनुबनाति, अनुबन्ध-णिनि । 'अनुबन्ध (स'० पु.) अनुबध्यते अनेन, अनु-बन्ध १ अनुगत, मातहत। २ सहचर, साथ रहनेवाला। १ बालक, बच्चा। २ शिष्य, शागिर्द। ३ अनुबन्धविशिष्ट, नतीजेका। ४ अविच्छिन, लगा- ३ व्याकरणवाले किसी उद्देश्य को सिद्धिके निमित्त हुवा। ५ अनुरोधी। ६ व्यापक, समाया। ७ अनु- कल्पित वर्ण, जो हर्फ़ नहवका कोई मतलब निका वर्ती, अगला या पिछला। लनेको मान लिया जाये। यह वर्ण कार्यकालमें अनुबन्धी (सं० पु० त्रि.) १-अनुबन्धिन् देखो। (स्त्री०) "इत्' रहता है। कोई विशेष सङ्केत समझानेको २-अनुबन्धा देखो।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४७८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।