पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४७५

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अनुप्रवचन-अनुप्रास अनुप्रवचन स ली.) अनुरूपं प्रवचनं उच्चारणम् ।। अंश और शब्दको पुनरावृत्ति, एक जेसे हर्फ, टुकड़े अनुप्रवचनादिभ्यश्च । पा ५:१।१११॥ गुरुके कथनानुसार उच्चारण, और लफ्जका दुहराया जाना। किसी वाक्यमें पास उस्तादका बताया-जैसा तलफ फुज । अनुप्रवचनादिमें हौ पास समान वर्णका विन्यास बंधनेसे अनुप्रासा- निम्नलिखित शब्द रहते हैं, अनुप्रवचन, उत्थापन, लङ्कार बनता है। (Alliteration) मम्मटभट्टने अनु- प्रवेशन, अनुप्रवेशन, उपस्थापन, संवेशन, अनुवेशन, प्रासका यह लक्षण लगाया है, अनुवचन, अनुवादन, अनुवासन, आरम्भण, प्ररोहण, "वर्णसाम्यमनुप्रासः। अन्वारोहण । खरवसाय ऽपि व्यञ्जनसदृशत्व' वर्गसाम्यम् । रहस्यानुगतः प्रकृष्टी न्यासोऽनुप्रासः ॥” ( काव्यप्रकाश ) अनुप्रविश्य (सं० अव्य०) प्रवेश पाकर, दाखिल होके, पहुंचनेपर, घुसनेमें। वर्णको समता अनुप्रास कहातो है। स्वरको समता अनुप्रवेश (सं० पु०) अनुरूपः प्रवेशः । १ सूर्यके यथानु- न मिलते यदि केवल व्यञ्जनवर्णको हो समता सजे, रूप किरणका चन्द्रमण्डलमें प्रवेश, आफताबवाली तो भी समान वर्ण बन जाता है। वाक्यक रसादि- जैसी-को तैसी शुवाका चांदके घेरे में घुसना । २ अनु- जनक वर्णविन्यासका अनुप्रास नाम पड़ा है। रूप प्रवेश, वापसी। ३ घरके भीतर जानेकी राह । अनुप्रास काव्यका अलङ्कार है। यह अलङ्कार ४. प्रतिविम्बपतन, अक्सका पड़ना। (Reflection) भावसे नहीं, वर्ण और शब्दसे सजता है। इसीसे अनु- ५ प्रतिलक्षित होना, झलकका आना। ६.सदृशी प्रास, रचनाके ऊपरको शोभा है, इस अनुप्रास भौतरौ करण, नकल। अधिक गुण नहीं रहता। जिस समय कविको "अनुप्रवेशादिव बालचन्द्रमाः।” ( रघु ३२२२) सहृदयता अक्षुण रहती, तब वह अनुप्रास ढुंढते नहीं अनुप्रवेशन (सं० क्लो०) अप्रवेश देखो। फिरता, अनुप्रास उसे अच्छा भी नही लगता। वह अनुप्रवेशनीय (सं० वि०) प्रत्यावर्तन अथवा प्रत्या हृदयका चित्र खींच लोगोंको प्रसन्नता पहुंचाता है। गमन सम्बन्धीय, लौटने या दाखिल होनेवाला। इसीसे हिन्दुस्थानके प्रधान कवि तुलसीदास, सूरदास अनुप्रश्न (सं० पु. ) गुरु द्वारा पूर्वकथित विषयका और केशवको कवितामें अनुप्रासको मिठास नहीं प्रमाण देते हुवा अनुयायी प्रश्न, जो पिछला सवाल, पाते। कालिदासको शकुन्तला सीधी बातोंमें बनी है। उस्तादको पहले बतायो बातका हवाला रखे। शकुन्तला तपस्विकन्या रहीं, वनके भीतर बसती अनुप्रसक्त ( स० वि०) अतिशय संलग्न, खूब सटा थों। उन्होंने पट्टवस्त्रपर मणि-मुक्ता लगा झला- हुवा, जो पूरे तौरसे फंसा हो। झलीमें दुष्यन्तसे मुलाकात न की थी। अनुप्रसक्ति (सं० स्त्री०) घनिष्ठ सम्बन्ध, गहरा समाज निस्तेज जानसे जब मनुष्यको सहृदयता. लगाव। घटने लगती, तब कविको दृष्टि शब्दकी ओर ही अनुप्रस्थ (सं० त्रि०) प्रशस्त, चौड़ा, जो चौड़ाईके | झुकती है। हरिश्चन्द्र गद्य लिखने बैठ भी एक मुवाफिक रहे। छत्रमें विस्तर अनुप्रास सटाते थे। वाणभट्टके समय अनुप्रहरण (सं. क्लो०) धक्का, झोंक, गिराना, डालना। लोगोंमें अधिक सहृदयता नहीं रही ; इससे उन्होंने अनुपाप्त (सं० त्रि.) १ आगत, पहुंचा, प्रत्या कादम्बरीमें छोरसे ओरतक केवल अनुप्रास अड़ा वर्तित, लौटा। २ प्राप्त, मिला। दिया, जो कादम्बरी पड़नेपर अतिशय विरक्ति अनुप्राशन (सं० लो०) अनुरूप भक्षण, खा लेना, निकालता है। चतुष्पाठौके अध्यापकको भी अनु- खवायो। प्रास अथवा यमक बहुत अच्छा लगता, इसौसे. वह अनुप्रास (सं० पु०) प्राश्यते प्रकष्टमाक्षिप्यते प्रासः; दो. एक चोतुका सुनते. हौ आंखसे. आंसू टपका. अनुसदृशः प्रासः वर्णविन्यासः, प्रादिसः। सदृश वर्ण, देता है।