पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४६७

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a अनुपति–अनुपन्यास रूप पतन, अच्छासा गिरना, गहरा गिराव। | अनुपदिन् (सं० त्रि०) पदस्य पश्चादनुपदं तयन्वेष्टा- २ गणितमें-राशि, भाग, जिन्स, टुकड़ा। इनि। अनुपद्यन्वेष्टा। पा ५।२।६० अन्वेष्टा, जो अन्वेषण अनुपति (स० अव्य०) पत्युः सामीप्यम्, अव्ययोः । निकाले, ढूंढनेवाला, जिसे किसीको तलाश लगे। पतिके समीप, खामौके निकट, खाविन्दके पास, अनुपदिष्ट (स० त्रि०) न उपदिष्टम्, नज-तत् । शौहरके नज़दीक, दूलहको बगल में । उपदेश न दिया गया, जिसे तालीम न मिली हो, अनुपतित (सं० वि०) १ निपतित, सवित, उहत, अशिक्षित, तालीम न पाये हुवा। गिरा-पड़ा, टपका, उतरा। २ पीछा किया गया, अनुपदीना (स. स्त्री०) अनु आयाम सादृश्य लगा हुवा। वा अनुपदं बध्वा-ख। अनुपदसर्वांन्नायानयं बद्धाभक्षयतिनेयेषु । अनुपथ (सं० पु०) अनुकूलः पन्थाः। १ अनुकूल पा रा । ठौक पैरके प्रमाणानुरूप पादुका, जो ज ता पथ, शुभ मार्ग, भली राह, मौके की गली, सोधी पैर के बराबर हो। सड़क। (त्रि०) २ सड़कके पीछे पड़ते हुवा, जो | अनुपदेष्ट्र (स० पु०) उपदेश न देनेवाला व्यक्ति, जो राह-राह जा रहा हो। ३ भली राह चलनेवाला, शखूश तालीम न बख़्शे। जो सौधौ सड़क पकड़े। (अव्य०) राह-राह, सड़कसे, | अनुपध (सं० पु०) अक्षर अथवा शब्दांश जिसके गलौकी बगलमें। पूर्व दूसरा प्रतिष्ठित न हो, अपने पहले दूसरा न अनुपद् (स' क्लो०) अनुपद्यते प्रतिदिन लभ्यते, रखनेवाला हर्फ़ या लफूज का टुकड़ा। अनु-पद-क्विप्। प्रतिदिनलभ्य, जो प्रत्यह प्राप्त हो, | अनुपधा (स० स्त्री०) धूर्तता, धोकेबाजी, वञ्चकता, रोज. मिलनेवाला। होलासाजी। अनुपद (सं० क्लो०) अनुरूपं योग्य पदम्, प्रा० स०। अनुपधि (सं• त्रि.) नास्ति उपधिश्छलं यत्र । अव्ययीभावश्च । पा ११२४१ । १ अस्थायी, मुखताल, मुखड़ा, १ निश्छल, कपटताशून्य, धोका न देनेवाला। (स्त्री०) गीतका वह हिस्सा जो कड़ीके बाद बार-बार गया नज-तत् । २ सरलभाव, सौधापन, सिधाई। जाता और गीतके आगे रहता है। २ अनुकूल- "कपटोऽस्त्रो व्याजदम्भोपधयश्चमकेतवे।" (अमर) पद, योग्यस्थान, अच्छा वोहदा, काबिल जगह। अनुपधिशेष (सं० पु०) वह व्यक्ति जिसमें मनुष्यत्व (अव्य०) ३ पद-पद, कदम-ब-कदम, प्रतिपदमें, न विद्यमान हो, जो शख स इन्सानियतसे डग-डग, पैर-पैर । पदस्य पश्चात्, (अव्ययो०)। ४ पीछे खाली रहे। पौछ। पदमनतिक्रम्य, अव्ययौ । ५ पद अतिक्रम न अनुपनाह (सं० पु०) बौद्ध मतसे-प्रगाढ़ प्रम करके, बे-कदम-उखाड़े, ठीक पैरपर पैर रखकर। अथवा भक्तिका अभाव, गहरी मुहब्बत या मुरब्बतका "पद' शब्द च वाक्ये च व्यवसायापदेशयोः । न मिलना। पादतच्चियोः स्थानवाचायोरइवस्तुनेः ॥” (विश्व) अनुपनीत (स० पु.) न उपनौतः, नञ्-नत्। अनुपदवी (सं. स्त्री०) पथ, मार्ग, राह, सड़क, १ उपनयनविहीन, जिसका उपनयन या यज्ञोपवीत गली, कूचा, डगर, बाट। न हुवा हो। (त्रि०) २ जो ज्ञानका विषयीभूत अनुपदसूत्र (सलो०)। ब्राह्मण-विशेषका भाष्य, न हो, समझमें न आनेवाला। ३ लाया न गया, जिसमें मूलका अर्थ शब्द-शब्द वर्णित है। जिसे लाये न हों। अनुपदस्वत् (वै• त्रि.) सूखते न हुवा, जो मुरझा अनुपन्यस्त (स० त्रि०) विशदरूपसे अनिर्मित, न रहा हो। अप्रतिष्ठित, साफ तौरपर न बनाया गया, जिसकी अनुपदिक (स त्रि०) अनुपदं अस्ति अस्य, ठन्। नौव ठीक-ठीक न पड़ी हो। पश्चाद्वत, पोछे रहा, जो पीछे कुट गया हो। अनुपन्यास (सं० पु०) न उपन्यासः, नत्र-तत् ।