पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४४५

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४३८ अनिरुव-अनिर्णीत ! मिलेंगे? उषा लज्जिता हो फिर शिर लटका कर "तमसो ब्रह्मसम्भूत तमोमूला मृतात्मकम् ।' बोलती हैं,–'नहीं, वहां भी वह नहीं मिलनेवाले “सोऽनिरुड इति प्रोक्तस्तत्प्रधानं प्रचक्षते।" हैं। गन्धर्वमें भी उनका पता नहीं पाया जाता।' ३ दूत, चर, एलची, भेदिया। ४ शिव । ५ शाक्य- इसपर चित्रलेखा एक-एक कर राजावोंकी देखाने मुनिके सहयोगी किसी अर्हत्का नाम। (ली.) लगती है। यदुकुलके प्रति दृष्टि पड़ते ही उषा मानो ६ पशु बांधनेका रज्जु, जानवर जकड़नेको रस्सी। समुचित हो जाती हैं। वह देखते रहती हैं, राम, (त्रि.) ७ अबद्द, न बंधा हुवा। ८ अनिवारित, कृष्ण और प्रद्युम्नपर दृष्टि डाल उस ओर मुख घुमा रोका न जानेवाला। नहीं सकतीं। चित्रलेखा समझ सकनेसे अनिरुद्ध पर | अनिरुद्ध-इस नामसे कई संस्कृत ग्रन्थकार परिचित अङ्गुलि रख बोलती है,-'देखिये, देखिये। यही हैं,-१ भावदासके पुत्र और हीराके पिता। इन्होंने हैं !! इस मुखको क्या आप पहचानती हैं ? उषा सन् १४८६ ई० में शिशुबोधिनी भास्वतीकरणटीका वैसे ही मनके आवेगमें लज्जा छोड़ कह उठती हैं, नामक ग्रन्थ रचा था। २ सांख्यप्रवेशनवृत्तिप्रणेता। 'यही मेरे प्यारे हैं, इन्हीं सखाने स्वप्नमें मेरा मन ३ अनिरुद्ध भट्ट-इन्होंने चातुर्मास्यपद्धति, भगवत्तत्त्व- चोरा लिया है। इसके बाद चित्रलेखा छिपकर मञ्जरो और हारलता ग्रन्थ रचे थे। किसी-किसीको अन्तःपुरमें अनिरुद्धको लाती है। विश्वास है, कि यह गौड़ेश्वर बल्लालसेनके गुरु रहे ; यह संवाद वाणराजके कानमें पहुंचता, कि अनि इन्हींके साहाय्यसे बल्लालसेनने 'दानसागर'का रुद्ध उषाके साथ अन्तःपुरमें रहते हैं। वह महा सङ्कलन लगाया था। क्रुद्ध हो कृष्णपौत्रको नागपाशसे बांधते हैं। उधर अनिरुद्धपथ ( स० क्लो०) न निरुद्धा पन्था यत्र, नञ्- हारकामें अनिरुद्धको न पा यादव अतिशय व्याकुल बहुव्रौः । १ अबाध मार्ग, खुली राह । २ वायुमण्डल, हो रहे हैं। पौके महर्षि नारद जाकर सकल हवाका कुरा। (त्रि०) ३ न रुको हुई, खुली, साफ । विपदकी बात सुनाते हैं। इससे कृष्ण, बलराम और अनिरुद्धभाविनी (सं० स्त्री०) अनिरुतस्य भाविनी प्रद्युम्न वाण-पुरी जा पहुंचते हैं। वाणराजके सहस्र पत्नी, ६-तत्। अनिरुद्धकी स्त्री। यह वाणराजको बाहु हैं, दूसरे वह मृत्युञ्जयके वरपुत्र भी बने हैं। कन्या रहीं, उषा नामसे पुकारी जाती थीं। कृष्ण, बलराम प्रभृतिके वाण-पुरी पहुंचनेपर महादेव, उषाहरणका विवरण अनिरुद्ध शब्दमें देखो। कार्तिकेय और प्रमथगणको साथ ले युद्ध मचाने आते अनिरूपित (स' त्रि.) निरूपण न निकाला गया, हैं। इसी समय कृष्णके साथ शिवका घोरतर संग्राम अवर्णित, जिसका बयान न बंधा हो। चलता और महादेव यादवगणको अभिभूत बनाने के अनिर्जात (सं० त्रि.) न निर्जातं निश्चितं प्राप्त वा । निमित्त शिवज्वरकी सृष्टि सजाते हैं। अन्तमें कृष्ण १ अप्राप्त, नादस्तयाब, जो न मिला हो। २ अनि- वाणराजके समस्त बाहु चक्रसे काटते हैं, किन्तु शिवके श्चित, लायकौन, जिसका कोई ठौर-ठौक न अनुरोधसे उनके प्राण नह निकालते। इसके बाद युद्धमें जय पा यादव, अनिरुद्ध और नववधू उषाको अनिर्जित (सं० त्रि०) जीता न गया, जो फ़तेह न साथ ले हारका वापस जाते हैं। हुवा हो। (विष्णुपुराण ५।३२, ब्रह्मपुराण २०४-२०६ १०) अनिर्णय (स० पु०) निर्-नी-अच् ; न निर्णयः, २ वासुदेव, सङ्घर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध-इस अभावार्थे नत्र-तत्। अनिश्चय, अवधारणका अभाव, चतुव्यूंह परमेश्वरका अनिरुद्ध नामक अंश। यही फैसलेका न फैलना, बेएतबारी। आदिव्यूह है।महाभारतके मोक्षधर्मपर्वाध्यायमें लिखा | अनिर्णीतः ( स० त्रि.) अनिश्चित, अविचारित, है, कि इसी आदिव्यूहसे जगत्को सृष्टि सजी है, यकीन न किया गया, खयाल न जमाया हुवा।।। गंठा हो।