पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४३८

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५ भक्ति अनास्थान-अनाहदवाणी ४३१ करे। (स्त्री०) अभावार्थे नञ्-तत् । २ अनादर, 'सूक्ष्म, चिक्कण, धौत, नूतन, कोरे और कभी न अपमान, बेइज्जती, सम्मानका न मिलना। पहने गये कपड़े को आहत वस्त्र कहते हैं। वह दैव ३ आस्थाका अभाव, तस्कीनका न रहना। ४ विचार और पिटकर्ममें प्रशस्त होता है।' का अभाव, बेखयाली, ध्यानका न जमना। २ तन्त्रसारोक्त सुषुम्ना-नाडीमध्यस्थित हृदयका विहीनता, नावफादारी। ६ निश्चेष्टता, बेफिक्रो । पद्म या चक्र। इस पद्ममें बारह दल होते हैं। षट्- अनास्थान (सं० त्रि०) आस्थीयते ऽस्मिन् आ-स्था चक्रनिरूपणमें लिखा है,- आधार ल्युट, आस्थानो भूप्रदेशः, न आस्थानः, नत्र - "तस्यो. हृदि पङ्कज' सुललित वन्धककान्ताज्ज्वलं तत् । १ भूप्रदेशभिन्न, बेजगह, बेठिकाना, जहां कार्द ह्रदशवर्णरुपहत' सिन्दूररागाञ्चितः । कोई बंधी बैठक न हो। २ आधार न बनानेवाला, नाबानाहतसंज्ञक सुरतरु' वाञ्छातिरिक्तप्रद जो बुनियाद न बांधे। वायोमण्डलमव धूमसदृश षट्कोणशोभान्वितम् ॥" अनास्राव (सं० त्रि०) आ-सु-ण आस्रावः, नास्ति 'उसके अर्श्वभागमें (नाभिके ऊपर) हृदयके मध्य आसावः क्ल शो यस्य यत्र वा। क्ले शरहित, तकलीफ़ बन्धूकपुष्पवत् उज्ज्वलकान्तियुक्त, ककारादिसे ठकार से बरी, दुःख न उठानेवाला। पर्यन्त बारह वर्णमें शोभित, सिन्दूर-जैसा रक्तवर्ण और अनास्वाद (सं० पु.) १ स्वादका अभाव, जायक- सुललित पद्म विद्यमान है। उसका नाम है-अना- का न जमना, फोकापन । (त्रि.) २ स्वादशून्य, हत। वह कल्पतरुकी तरह वाञ्छातिरिक्ति फल देता बेज़ायका, जिसके खाने में मजा न मिले। है। उसका वायुमण्डल धूम्रवर्ण और षट्कोण- अनास्वादित (सं० त्रि.) स्वाद न लिया गया ; विशिष्ट है।- जिसका जायका किसीने न चखा हो। "तन्मध्ये पवनाक्षरच मधुरं धूमावलीधूसरं अनाह, आनाह (स० पु.) नह-घज, नञ्-तत् । ध्यायेत् पाणिचतुष्टयेन लसितं कृष्णाधिरुदं परम् । विण्मूत्ररोधक व्याधिविशेष ; पाखाना-पेशाब रोकने- तन्मध्ये करुणानिधानममलं हंसाभमौशाभिध' पाणिभ्यामभयं वरञ्च विदधल्लोकवयाणामपि ॥" (षट चक्रनिरूपण) वाला खास आजार; अफरा । "आमं शवदा निचितं क्रमण भूयो विबद्ध विगुणानिलेन । 'उसके मध्य य वौजस्वरूप,माधुर्यविशिष्ट, धूमसमूह प्रवर्तमानं न यथास्वमनं विकारमानाहमुदाहरन्ति ॥" (माधव निदान) जैसे धूसरवर्ण, निर्मल हंसको तरह शुक्लवर्ण जो ईश आंव या पाखानेके क्रमसे इकट्ठा हो, कुपित वायुसे नामक महादेव हैं और जो हस्तहारा त्रिलोकको बंध जाने पर पेट फूलनेको पानाह कहते हैं। अभय और वर दे रहे हैं, उनका मैं ध्यान धरता हूं।' अनाहक, अनहक (हिं०-क्रि० वि०) ३ पुनर्वारको उपनिधि, दोबारको धरोहर। बेईमानी में। २ विना लाभ, बेफायदे। (त्रि०) ४ अगुणित, बेज़ब । ५ अनाघात, बेचोट। झूठ-मूठ। ६ नूतन, नया । ७ आघातसे प्रस्तुत न किया गया, जो अनाहत (सं० लो०) आ-हन-भावे. क्त, आहतं कुट कर न तैयार हुवा हो। छेदो भोगो वा ; नास्ति आहतं यत्र, नत्र -बहुव्री०। अनाहतनाद (सं• त्रि.) १ आघातसे न उत्पन्न १ नूतन वस्त्र, नया कपड़ा। कभी न पहने या धोये हुवा शब्द, धक्का लगनेसे न निकली हुई आवाज़। गये कोरे कपड़ेको अनाहत कहते हैं। अमरकोषमें योगी इस नादको दोनो हाथके अंगूठेसे दोनो कानके लिखा है,-"अनाहतं निष्य वाणि तन्त्रकञ्च नवाम्बरम् ।" कात्या छेद बन्द कर सुना करते हैं। २ ओं शब्द। -यनका मत यह था,- अनाहदगद-पञ्जाबके अन्तर्गत पटियाला राज्यक "ईषद्धौत नवं शक्त' सदश यन्नधारितम् । अपने नामवाली तहसौलका प्रधान नगर । पाहत तद्विजानीयाई वें पैव च कर्मणि ॥" अनाहदवाणी (हिं० स्त्री०) अनाहत वचन, आपसे १ अधर्मपर, ३ चमसे,