पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४२१

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४१४ अनवस्थ-अनवेक्षण शून्य, चञ्चल। अनवस्थ (सं० त्रि०) नास्ति अवस्था यस्य। अवस्थिति- अनवह्वर (सं. त्रि०) न अव-ह-कौटिला अप् ; नञ्-तत् । अकुटिल, सरल ; सीधा, जो टेढ़ा न हो। "अशरोरं शरीरेषु अनवस्थेष्ववस्थितम् ।” ( कठोप० २।२२) अनवाँसंना (हिं॰ क्रि०) नूतन पात्रको प्रथमतः अनवस्था (सं० स्त्री० ) न अव-स्था-अङ्, अवस्थितिः, कार्यमें लगाना, नये बरतनसे काम शुरू करना। नज तत् । पातयोपसग। पा ३।३।१६ । १ अवस्थितिका अनवाँसा (हिं० पु.) १ कटे हुए खेतका पूला। अभाव, हस्तीको नामौजदगी। २ तर्कका विशेष २ अनवांसो जमीनमें पैदा हुआ अनाज। (वि.) दोष, बहसका खास ऐब ; स्थिर किये जानेवाले ३ काममें लाया गया। विषयमें कल्पित विषय डाल तर्कका करना, साबित | अनवाँसो (हिं० स्त्री.) १ बिस्वांसोका बीसवां की जानेवाली बातमें अन्दाज़ो बात मिलाकर बहस भाग। एक बिख में चार-सौ अनवाँसी होती हैं। बढ़ाना। "प्रामाणिको अनवस्था न दोषायति" (जागदीशी) तर्क देखो। (वि०) ३ काममें लायो गयो, बरती हुई। ३ चञ्चलता, चुलबुलापन। ४ व्याख्याका अनन्त अनवाच् ( स० त्रि०) मौनशून्य, खामोशोसे खाली; विकाश, बयानको बेहद रवानगी। जो चुपके न रहे। अनवस्थान (सं० क्लो०) न अव-स्था-लुप्रट, नञ् तत् । अनवाञ्च् (सं० त्रि.) निम्नभागको न झुकते हुआ, १ अवस्थितिका अभाव, ठहरावका न टिकना । (त्रि०) जो नौचेकी ओर नज़र न डाल रहा हो; सौधे नास्ति अवस्थानं यस्य, नञ् बहुव्रीः । ताकनेवाला। अस्थिर ; चुलबुला, न ठहरता हुआ। अनवानता ( स० स्त्री०) प्रचलित रहनेको दशा; अनवस्थायिन् (सं० त्रि०) चञ्चल, जल्द गुजर जाने सिलसिलाबन्दी। वाला; जो ठहरता न हो। अनवानम् (स अव्य०) १ विना प्रश्वास, बेसांस साधे ; अनवस्थित (सं० त्रि.) न अवस्थितम्, न-तत् । एक खासमें, सांस लेकर; विना विक्षेप, दखल न १ चञ्चल, चुल-बुला। २ अस्थिर, नापायदार । ३ व्यभिचार-दोष-युक्त, बुरे चालचलनवाला। ४ आधार अनवाद (हिं० पु०) कठोर कथन, बरौ बात । रहित, बेचारा। अनवाप्त (सं० त्रि०) न अवाप्तम्, नञ्-तत् । अप्राप्त, अनवस्थितचित्त ( स० त्रि०) चञ्चलहृदय, चुलबुले लाहासिल ; जो हाथ न आया हो। मिज़ाजका ; जिसका दिल डावांडोल रहै । अनवाप्ति (सं० स्त्रो०) अप्राप्ति, हासिल न होनेको अनवस्थितचित्तत्व (सं० ली.) १ मनका चाञ्चला, हालत। दिलका चुलबु लापन । २ वायुरोग, हवाकी बीमारी। अनवाय, अनवय (सं० त्रि० ) नञ्-बहुव्री० । 'अनवय- अनवस्थितत्व (सं.ली.) चाञ्चला, चुलबुलापन ; शब्दस्य अनवायभावः । (देवराज) १ निरवयव, निराकार; न ठहरनको हालत। बेअजा, बेशक्ल ; जिसके हाथ-पैर या रङ्ग-रूप न हो। अनवस्थिता (सं० स्त्री०) व्यभिचारिणी, बुराकाम (वै० अव्य०) २ विना विक्षेप, बैठहरे हुए। करनेवाली औरत। अनवेक्ष (सं० त्रि०) १ ध्यानविहीन, बेदिल । अनवस्थिति (सं० स्त्री०) न अवस्थिति ; नञ्-तत् । (अव्य.)२ विना ध्यान ; बेदिलीसे । १ अवस्थितिका अभाव, ठहरावका न रहना ; अधैर्य, अनवेक्षक (सं• त्रि०) न अवेक्षकम्, नज-तत् । चाञ्चला; बेसब्री, चुलबुलापन । २ आचरणको १ पर्यालोचनाहौन, गौर न करनेवाला। २ सत् और ढिलाई, चालचलनका ढीलापन । असत्को विवेचनासे शून्य, भले-बुरेकी पहचान न अनवहित (सं० त्रि०) ध्यानरहित, बेखयाल ; जो रखनेवाला। दिल न लगाता हो। अनवेक्षण (सलो०) अनवेचा देखो। देते हुए।