पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४०९

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४०२ अनपत्यवत्-अनपिहित नहीं। अनपत्यवत् (वै. त्रि.) अनपत्यक देखो। निकासको नामौजूदगी। (पु.) २ बलात्कारसे अनपत्रप ( स० त्रि०) नास्ति अपत्नपा अन्यहेतुका दूसरेको कोई वस्तु अपहरण करनेवाला व्यक्ति, जो लज्जा यस्य, बहुव्री० । अन्य हेतुक लज्जाहोन, दूसरेको शख्स जबरन किसीकी चीज दबा बैठे। शर्म न रखनेवाला ; निर्लज्ज, बेशर्म । अनपस्पृश् (वै० त्रि०) अस्वीकार न करनेवाला, जो अनपनिहित (सं० त्रि.) न घटाया या कम किया इनकार न करे ; हठी नहीं, जो जिद्दी न हो। गया, जिसका काट-कूट न हुआ हो। अनपस्फ र, अनपस्फर (वै० त्रि.) न उटकती हुई, अनपभ्रंश (सं० पु०) न अपभ्रंशः, नञ्-तत् । अप जो दूध देने में लात न फटकार। यह विशेषण गौके भ्रंश-भिन्न शब्द, बिगाड़से अलग लफ्ज ; क्षरण- साथ व्यवहार किया जाता है। रहित, जो न मिटे ; व्याकरण-निष्पाद्य साधु-शब्द, अनपहतपाप्मन् (सं० त्रि०) पापसे अपृथक, जो जो लफ़्ज़ नहवके कायदेसे कायम किया गया हो। गुनाहसे अलग न रहे। अनपयति (वै० अव्य०) सूर्योदयसे पहले, जब पौ अनपहृत (सं० त्रि०) अपहरण न किया हुआ, न फटे ; बहुत सवेरे या तड़के। जो चुराया न गया हो। अनपर (सं० त्रि.) . द्वितीयरहित, जिसके कोई | अनपाकरण, अनपाकर्मन् ( स० क्लो०) न अपाकर्म दूसरा न हो। २ शिष्यविहीन, जिसका कोई चेला अपाकरणं (निराकरणं ), नञ्-तत्। अनिराकरण, ३ पूरण, समूचा। इस अर्थमें यह शब्द, ऋणादिक परिशोधका न होना ; नाअदायी, कर्ज का ब्रह्मका द्योतक है। चुकाया न जाना। अनपराद्ध (सं० वि०) १ अनाहत, जिसके चोट न अनपाय (संत्रि०) १ हानि न उठाये हुए, जो लगी हो। (अव्य०) २ विना आघात, चोट न लगनेसे । कम न पड़ा हो। २ अविनाशी, लाज़वाल । अनपराध (स' त्रि०) अपराधविहीन, बेकुसूर । ३ हानि या रोने-धोनेसे पृथक्त्व, नुकसान या हाय- २ निदोष, बेऐब। हायसे छुटकारा। ४ अविनाशिता, हमेशगी। अनपराधत्व (स' लो०) अपराधसे अलगाव, कुसूर ५ शिवका एक नाम । से छुटकारा। अनपायिन् (स. त्रि.) न अपेति अपगच्छति ; अनपराधिन् (सं० त्रि. ) निरपराध, बैकुसूर । अप-इण-णिनि, नञ्-तत् । १ निश्चल, स्थिर; ठहरा अनपलाषुक (सं० त्रि०) अषित, जो प्यासा न हो। हुआ, न डिगनेवाला। २ अविनाशी, कभी न अनपवाचन (वै त्रि.) १ जिसका वर्तालापमें मिटनेवाला। निकल जाना सम्भव न हो, बातोंमें उड़ाया जानेको अनपायिपद (सं० पु०) निश्चल पद, जो जगह नामुमकिन । २ अभिलाषसे बहिष्कृत होनेके अयोग्य, डिगे नहीं ; परमपद, मोक्ष ; दुनियासे छूट परमेश्वर- जो ख्वाहिशके बाहर न निकल सके । का मेल। अनपज्य (वै० त्रि०) घृणायोग्य अशुद्ध पदाथों से अनपायी, अनपायिन् देखो। अलग, जिसमें परहेज़ कोजाने काबिल नापाक चौतें अनपावत् (सवि०) अपावर्तनं अपावृत्, अप-आ- न छ गई हो। वृत्-भाव क्किए ; नास्ति अपात् पुनरावृत्तिर्यस्य, नज- अनपव्ययत् (वै० त्रि०) १ सदा उपस्थित रहनेवाला, बहुव्री० । पुनरावृत्तिशून्य, न दोहराया गया। मुदामी। अनपाय (सं० त्रि.) किसीके वशका नहीं, स्वाधीन ; अनपसर (संत्रि.) १ अनुपयुक्त, गैरवाजिब। किसीका मातहत न रहनेवाला, आजाद । २ अप्रचलित। अनपिहित (सं. त्रि०) न अपिहितं आवरणं, अपि- अनपसरण (सं० क्लो०) १ बहिःहारका अभाव, धा-भावे त ; तन्नास्ति यस्य। आवरणशूना, बेपरदा ।