पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/४०८

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अनन्वय-अनपत्यता ४०१ विशेष। न अनन्वय (सं० त्रि०) नास्ति अन्वयः परस्पर सम्बन्धो पहुंचाना। २रुपयका अदा न करना। नमायालय यत्र, बहुव्री० । अन्वयशून्य, जिसमें पदोंके परस्पर इस शब्दको इसी दूसरे अर्थमें लगाता है। अर्थ समझानेका लगाव न रहे। (पु०) २ अर्थालङ्कार अनपकर्मन् (सं० लो०) न अपकर्म अपाकरणं साहित्य-दर्पगमें इसका लक्षण इसतरह (निराकरणं ), अभावार्थे नञ्-तत् । १ अपात्रको लिखा गया है, सत्पात्र बुद्धिसे द्रव्य, या क्रोधादि द्वारा अपनी वस्तु 'उपमानीपमेयत्वमेकस्यैव त्वनन्वयः।' देकर फिर उसौका ग्रहण । २ ऋणका अपकर्म, 'जहां एक ही वस्तु एक वाक्यसे उपमान और कर्ज का अदा न होना। ३ अनिन्दित कर्म, तारोफका उपमेयके रूपमें दिखाई जाती, वहां अनन्वय अलङ्कार काम। होता है। उदाहरण,- अनपकर्ष (सं० पु०) उच्चता, श्रेष्ठता ; ऊंचापन, "राजीवमिव राजीवं जल जलमिवाजनि । बड़प्पन। चन्द्रश्चन्द्रद्रवातन्त्रः शरत्समुदयोद्यमे ॥" अनपकार (सं० पु.) अपकार न करनेका भाव ; शरत् आगमनके प्रथम कमल कमलसो फूल । बेगुनाही, सादापन, भोलापन। जल जलसो शोभा लही, चन्द्र चन्द्रसो झूल ॥ अनपकारिन् (सं० त्रि०) अपकार न करनेवाला, 'शरत् ऋतु आनेसे पहले कमल कमलको तरह, जो कुछ न बिगाड़े। जल जलकी तरह और चन्द्र चन्द्रको तरह खिल अनपक्रिया (सं० स्त्री०) अनपकर्म देखो । गया था। अनपकृत (सं० वि०) अपकाररहित, कुछ इस जगह कमल, जल और चन्द्र क्रमसे अपने- बिगाड़नेवाला। अपने-जैसे कहे गये हैं, इसौसे यह अनन्वय अलङ्कार अनपच (हिं० पु०) अजीर्ण, बदहजमी, खाई हुई हुआ। अनन्वयमें एक अर्थक विभिन्न शब्द रहनेसे चीजका-पेटमें न पचना। अलङ्कारको कोई क्षति नहीं होती। हम पद्मको अनपच्युत (सं० त्रि०) न-अप-च्यु-भावे क्त ; नास्ति कमल-जैसा और चन्द्रको सुधांशु-जैसा बता सकते हैं। अपच्युतं विनाशो यस्य, नञ्-बहुव्री० । १ विनाशरहित, किन्तु एक प्रकारके शब्द पानसे लाटानुप्रास बनता, न मिटनेवाला। २ अयोग्य स्थानमें अतिष्ठित, बेठिकाने जो सुनने में अधिक मिष्ट लगता है,- न पहुंचा हुवा। "अनन्वये च शब्द क्यमौचित्यादानुषङ्गिकम् । अनपजय्य (सं० त्रि.) जिसका विजयी व्यवहार अस्मि'स्तु लाटानुप्रासे साक्षादेव प्रयोजकः ॥" उलटना असम्भव हो, जिसको फतेहमन्द चाल बदलना उचित समझ अनन्वय अलङ्कारमें भी एक शब्दका मुमकिन नहीं। प्रयोग करनेसे अच्छा रहता, फलतः वह आनुषङ्गिक अनपढ़ (हिं० वि० ) अध्ययनरहित, निरक्षर, मूर्ख ; या अप्रधान है। किन्तु इस लाटानुप्रासमें एक शब्द नातालीम-याफू ता, बेपदा, अहमक । साक्षात् प्रयोजक है अर्थात् एक ही शब्द न रहनेसे अनपत्य (स' त्रि०) नास्ति अपत्यं सन्तानं यस्य, लाटानुप्रास बिगड़ जाता है। १ अपत्यरहित, सन्तानविहीन ; बेऔलाद, अनन्वित (सं० त्रि.) अन्वय-रहित, असम्बद्ध; जिसके कोई बाल-बच्चा न हो। (वै०)२ निःसन्तान बैरिश्ता, बेकायदा। २ शूना, खालौ। बनानेवाला, जो औलादको रोके । (क्लो०) २ अपत्य- अनप (संवि०.) न सन्ति आधिक्येन आपो यत्र, राहित्य, बौलादी, निपूतापन । अजन्त बहुव्री०। जल-शूना, आबसे खाली ; पानी | अनपत्यक (स० वि०) अपत्यरहित, लावल्द, निपूता।' न रखनेवाला। अनपत्यता (स. स्त्री०) अपत्यराहित्य, लावल्दी, अनपकरण (सं० ली.) १ हानि या चोटका न निपूतापन। 101 बहुव्री।