पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३९७

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३६० अनन्तता-अनन्तदेव उत्पन्न हुए, जिस समय कृत्तिका नक्षत्रसे मीनराशि अनन्तख (सली०) अनन्तता देखी। निकल पड़ी थी। इनका चिह्न सौचाणा, शरीर-मान अनन्तदीक्षित-एक विख्यात वैदिक पण्डित, विश्वनाथ पचास धनु, और आयुमान तीस लाख वर्ष रहा। दीक्षितके पुत्र। इन्होंने आश्वलायनके मतानुसार रङ्ग सुवर्ण-जैसा चमकता था। इन्हें राजाको उपाधि संस्कृत भाषामें प्रयोगरत्न या स्मार्तानुष्ठानपद्धति और दी गई, और इनका विवाह हो गया था। इनके महारुद्रप्रयोगपद्धति रचा था। साथ एक हज़ार साधुओंको कायिल्य नगरीमें दीक्षा अनन्तदृष्टि (स० पु०) अनन्ता अनेका दृष्टयो नेत्राणि मिली। यह दीक्षालपके दो उपवास उठाते और यस्यं । १ इन्द्र, जिनके हजारो नेत्र हैं। २ परमेश्वर, प्रथम पारण टुग्धसे साधते थे। इनका पारण- भगवान् । ३ शिव। स्थान जयराजग्टह रहा, एक वर्ष में दो दिन ही अनन्तदेव (म० पु०) अनन्तो देव इव । १ शेषनाग। पारण-काल पड़ता था। माघ-शुक्ल चतुर्थीको इन्हें अनन्ते शेषनागे दीव्यति, दिव-अच् । २ शेष-सर्पशायौ दीक्षा दी गई थी। इनके छमस्थ दो मास थे, और नारायण, शेषनागपर सोनेवाले भगवान् । ३ कश्मीर- ज्ञाननगरी काम्पिल्य रही। यह आठ मास और के एक राजा। इन्होंने पैतीस वत्सर राजत्व चलाया ; इक्कीस दिन गर्भमें रहे थे। इनका कुल इक्ष्वाकु, इनके पिताका नाम संग्रामराज या क्षमापति और गणधर संख्या पचास, साधु छांछठ हज़ार, केवली माताका नाम श्रीलेखा था। सूर्यमतीके साथ इनका पांच हजार, श्रावक दो लाख और छः हजार, विवाह हुआ था। कश्मीर देखो। श्राविका चार लाख और तेरह हजार थीं। वैशाख अनन्तदेव-१ एक बहुशास्त्रविद् पण्डित और कवि । कृष्णा-चतुर्दशी इनको ज्ञानतिथि रही, और दीक्षावृक्ष यह बाजबहादुर चन्द्र के आश्रित रहे। इन्होंने संस्कृत अशोक था। यह कायोत्सर्ग मोक्षासनपर बैठे और भाषामें कृष्णभक्तिचन्द्रिका नामसे नाटक, भगवद्भक्ति- चैत्र शुक्ल पञ्चमीको मुक्त हुए थे। इनका मोक्षस्थान निर्णय नामसे भक्तिग्रन्थ, चातुर्मास्यप्रयोग, नक्षत्रसत्र- समेतशिखर, प्रथम गणधर-यश, और प्रथम भार्या प्रयोग और देवतास्वरूपविचार नामक मीमांसा-ग्रन्थ, पद्मा थी। प्रायश्चित्त-प्रदीपिका और स्मृतिकौस्तुभ नामसे धर्म- अनन्तता (सं० स्त्री०) असौमता; बका, हमेशगी। ग्रन्थ और वाक्यभेद नामसे न्यायग्रन्थ बनाये थे। इन्हें अनन्ततान (स त्रि०) प्रशस्त, लम्बा-चौड़ा। छोड़ मीमांसा न्यायप्रकाशटौका, सम्प्रदायनिरूपण अनन्ततीर्थंकृत् (सं० पु०) अनन्तानि अनेकानि तत्त्वप्रक्रियाटीका (वेदान्तानुसारी), और लक्ष्मी- तीर्थानि शास्त्राणि करोतीति, क्व-क्विप। १ जिनविशेष । धर-रचित भगन्नामकौमुदी ग्रन्थको 'प्रकाशाख्य' टोका अनन्तजित् देखो। २ अनन्तजित् नामक एक लेखक भी लिखौ थी। २ यजुर्वेदीय काखसहिताके भाष्य- जिन्होंने अनेक शास्त्र बनाये थे। (त्रि०) ३ अनेकतीर्थ कार ; यह वैदिकप्रयोग और पद्धतिके कितने ही गमनकारी, कितने ही तीर्थ घूमनेवाला। छोटे-छोटे बैदिक ग्रन्थ सस्कृतमें लिख गये हैं। अनन्ततीया (सं० स्त्री०) अनन्ता तृतीया। भाद्र, ३ गोत्रप्रवरनिर्णय-रचयिता। ४ दत्तकपुत्रविधानकार। अग्रहायण और वैशाख मासको शुक्लातीया, भादों ५ निर्णयविन्दुप्रणेता। ६ कुण्डोद्योत-दर्शनकार। अगहन और वैशाख महीनेको मुदीवाली तीज । ७ बालसायखण्डन और बलाबलाक्षेपपरिहार नामसे यह दिन विष्णु भगवानन्के पूजनको शुभ समझा मीमांसा-ग्रन्थकार। ८ एक प्रसिद्ध श्रोत पण्डित । जाता है। इनके रचित श्रौतसूत्रीय भोजनसूत्र, यजुःसन्धा, अनन्ततीयाव्रत (सं० पु०) वशाख शुक्लतीयाका रुद्रकल्पद्रुम और सर्वव्रतोद्यापन प्रभृति संस्कृत ग्रन्थ अनुष्ठेय व्रतभेद। भविष्योत्तर-पुराणके चौबीसवें मिलते हैं। ८ मथुरामाहात्मा-विषयक 'मथुरासेतु'- अध्यायमें इस व्रतको कथा लिखी है। रचयिता। १० विष्णुयागकार । ११ वृद्धिशादीपिका-