पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३८२

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अध्यापक-अध्यासन अध्यापक (सं० पु०) अधि-इङ्-णिच् -ख ल, अध्या कहः पोऽन्यतरस्याम् । पा०३४३ : १ चढ़ना, ऊपरका पयतोति। आचार्य, उपाध्याय, शिक्षक, उस्ताद, पहुंचना। २ आरोप, लगाव। ३ मिथ्याज्ञान, झूठी मुअल्लिम ; जो किसीको पढ़ाये। विष्णुका वचन समझ। रज्जु में सपको भ्रमसे देखना और सच्चिदा- है, कि जो वेदादि अध्ययन कराते, वह आचार्य नन्द परमेश्वरमें जड़धर्म लगाना आदि विषय अध्या- और जो वेतनादि ले शिक्षा देते, वह उपाध्याय कहाते रोपके हैं। हैं। (स्त्री) अध्यापिका। अध्यारोपण ( स० क्लो०) अधि-आ-रुह णिच् पादेशः अध्यापको (हिं. स्त्री०) आचार्यता, उपाध्यायी, ल्य ट्। १ धान्यादिका वपन, अनाज वगरहकी उस्तादो, मुअल्लमी। बोआई। २ अतिशय आरोपण, हदसे ज्यादा अध्यापन (सं० क्लो०) अधि-इङ-णिच्-ल्यट् भावे । लगाव । पाठन, शिक्षादान ; अध्ययनका कराना, किताबका | अध्यारोपित (सं० त्रि.) १ मिथ्याकल्पित, गलत पढ़ाना। अध्यापन तीन प्रकारसे होता है,-१ धर्मके समझा हुआ। २ धोखे या मुबालगेका। कारण, २ अथके कारण और ३ शुश्रषाके कारण । अध्यावाप (सं० पु.) अधि-आ-वप वञ्। १ बौनी, (स्त्री०) अध्यापना। शस्य या अनाजका बोना। २ शस्य बोनेका क्षेत्र, बीन अध्यापयिट (सं० पु.) शिक्षक, उस्ताद, पढ़ानेवाला। डालनेका खेत। अध्यापित (स० त्रि.) लिखा या पढ़ाया, तालोम अध्यावाहनिक (सं० लो०) अधि-श्रा-वह णिच्-लुट ; दिया हुआ। अध्यावाहनं पिटगृहात् भट ग्टहागमनं तत्काले अध्याप्य (सं० त्रि.) अधि-इङ-णिच्-यत् कर्मणि । लब्ध अस्मात्, लब्धार्थे ठन्। स्त्रीधनविशेष । पाठनीय, अध्यापनयोग्य ; पढाने या तालीम देने “यत् पुनल भते नारी नौवमाना हि पैटकात् । काबिल। अध्यावाहनिक नाम तत् स्त्रीधनमुदाहृतम् ॥” (दायभाग) अध्याय (सं० पु०) अधि -इङ-घञ्। अध्यायन्यायो 'पिताके घरसे चलते समय स्त्रियां पुनर्बार जो द्यावस'हाराश्च। पा ३।३।१२२॥ १ अध्ययन, तालीम। २ ग्रन्थ धन पातीं, वही अधावाहनिक कहाता है।' विभाग, मुकालह। ३ पाठ लेने योग्य समय, अधमास (सं० पु.) अधि-अस क्षेपे-घ । १ आरोप, तालीम पाने काबिल वक्त । इस शब्दके यह पर्याय लगाव। २ मिथ्याज्ञान, झूठा इल्म। शङ्कराचार्यका हैं,-सर्ग, वर्ग, परिच्छेद, उद्घात, अङ्क, संग्रह, वचन है, कि पहले कोई वस्तु देखनेसे हृदयमें उसके उच्छास, परिवर्त, पटल, काण्ड, स्थान, प्रकरण, पर्व, रूपादिका एक संस्कार जम जाता है; पोछे वैसी आङ्गिक, स्कन्द, स्तवक, उल्लास, पाद, उद्योत् और हो कोई दूसरी वस्तु देखनेसे रूपादि विषयमें किञ्चित् विरचन। सादृश्यकै कारण वह पहली हो वस्तु-जैसी समझ अध्यायशतपाठ (सं० पु.) १ शत अध्यायका सूची पड़ती है। जैसे,—कोई व्यक्ति यदि पहले सर्प देखता, पत्र, मौ मुकालहको फेहरिस्त। २ ग्रन्थविशेष । तो सर्पके अवयव-सम्बन्धपर उसके हृदयमें एक धारणा अध्यायिन् (स० वि०) पठनशील, पढता हुआ, जम जाती है; पीछे हठात् रज्जु देखनेसे उसी जो तालीममें लगा हो। सर्पका आकार उसके हृदयमें दौड़ पड़ता है। उस अध्यारूढ़ (सं० त्रि०) अधि-आ-रुह-क्त कर्मणि कर्तरि समय रज्जु सर्प दिखाई देती और उसी मिथ्याज्ञानको वा। १ समारूढ़, चढ़ा हुआ। २ आक्रान्त, ऊंचा, अधमास कहते हैं। ३ तुच्छ, हकौर। ४ अधिक, अतिशय ; अधयासन (स० लो०) अधि-पास वासे उपवेशने हदसे ज्यादा। वा-लुट । १ निवास, रहन। २ अधिष्ठान, बैठक । अध्यारोप (सं० पु०) अधि-आ-रुह-णिच् पादेशः घस् । ३ अधिरोहण, चढ़ाव। बड़ा।