पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३६८

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खिंचा हुआ। 1 अधिजिहक-अधिदेवता दासी बनकर रहना होगा।" सर्पा'ने वही किया। दृष्टिपात करनेसे ठीक मृगानुसारी पिनाको-जैसा उसीसे विनता हारों, कट्रकी जीत हुई थी। एक देख पड़ता है।' (वि.)२ प्रत्यञ्चा चढ़ा या रोदा दिन विनताके पुत्र गरुड़ने सर्यों से पूछा, कि किसतरह तुम हमारो जननीको दासीत्वसे मुक्त कर सकते हो। अधिज्योतिषम् (स० अव्य० ) सूर्यतारकादिज्योतिष- सर्प बोले,-"आप अमृत ला दीजिये। अमृत मिलने के अधिकारसे, रोशनी या दुनियावी सितारों और से ही हम तुष्ट होंगे और आपकी जननी दासोत्वसे सैयारोंको बाबत। मुक्त हो जायेंगो।" गरुड़ने यह बात सुन महाकष्टसे अधित्य (सं० अव्य०) ऊपर होकर, ऊ'चे चढ़कर। अमृतकुम्भ लाकर कुशके ऊपर रख दिया। उन्होंने अधित्यका . ( सं० स्त्री०) अधि-त्यकन् । उपाधिभ्या त्यकन्नास- ... अमृत रखकर सर्पो से कहा,-"अब तो, मेरी जननी बारूढ़योः । पा ५२३४। पर्वतके ऊपरको भूमि, पहाड़के दासीत्वसे मुक्त हुई। यह अमृत रखा है, आप ऊपरको ज़मीन, उच्च और प्रस्तरमय पृथिवी। (Table

नानाङ्गिक कर इसे पोजिये। सप स्नान करने चले land ) इसके . विरुद्ध. पर्वतको निकटवर्ती भूमि

। गये, देवराज इन्द्रने वह सुयोग देख चुपके-चुपके उस उपत्यका कहलाती है। कालिदासका वचन है,- अमृतभाण्डको चुरा लिया। सर्पो ने जाकर देखा, "अधित्यकायामिव धातुमय्यां लोधद्रुमं सानुमतः प्रफुल्लम् ॥"(रघु० २०२८।) अमृत नहीं पाया, किसीने चुरा लिया था। उसोसे वे 'पर्वतको धातुमयी अधित्यका प्रफुल्ल लोध्रद्रुम-जैसी मनमें दुःखित हो कुश चाटने लगे। कुशको तीक्ष्ण देख पड़ी।' धारसे सपोंकी जिह्वा फट जानेके कारण, उनका अधिदण्ड नेट (स० पु.) १ दण्ड देनेके लिये नाम 'द्दिजिह्व' पड़ा था। नियुक्त किया गया कर्मचारी, हाकिम जो सजा देनेके २ कण्ठगत मुखरोगविशेष, जीभको सूजन। लिये मुकरर हो। २ यम। अधिजिह्वक (सं० पु०) जिह्वागत रोगविशेष, जौभ- अधिदन्त, अधिदन्तक (सं० पु०) अध्यारूढो दन्तम्, की एक बीमारी। यह रोग कफ-शोणितसे उत्पन्न अत्या-तत्। दन्तमूलगत रोगविशेष, गजदन्त, दांतके होता, जिसमें जिह्वापर जिह्वाग्रवत् शोथ रहता है। ऊपरका दांत। घोड़ेके दांतपर कभी छःसे भी ज्यादा पक जानेसे यह असाध्य है। इसमें और उपजिह्वामें दांत निकल आते हैं, जिससे घास खानेपर उसका यही भेद है, कि यह जीभके ऊपर और वह जीभके मन भाग जाता है। सात या आठ दांत. जिस नीचे होती है। आयुर्वेदमें इस रोगका लक्षण यह घोड़े के दांतपर जम उठते, उसे अधिदन्त कहते हैं,- लिखा है,- "सप्तभिवाष्टभिर्दन्तैः स्यातश्चाधिकदन्तकः।", (जयदत्त अश्वचि० ३५०) "जिह्वाग्ररूपः श्वयथुः कफात्तु जिहाप्रबन्धौ परिरक्तमियः ।" अधिदाव (सं० त्रि.) काष्ठमय, लकड़ीका। (सुश्रुत नि० १६०) अधिदिन (सं० क्लो..) अतिरिक्त दिन जो सौरमास अधिजिह्वा, अधिजिबिका ( स० स्त्री०) जिह्वारोग पूरा करनेको जोड़ा जाये। विशेष, जीभको एक बीमारी। अधिजितक देखो। अधिदेव (स. पु०) अधिकतो देवो येन, प्रादि अधिज्य (सं० लो०) ज्या गुणमधिकृतं अध्यारूढ़ा बहुव्री । परमेश्वर सकल देवताओंका अधिप । ज्या यत्र वा। मौवी ज्या शिञ्जिनौ गुण'-इत्यमरः । आरोपित अधिदेवता (स. स्त्री०) अधिष्ठात्री देवता, शाक. गुणक धनुः, धनुष, जिसका गुण चढ़ा हो; खिंचे हुए तत्। देवात्तल । पा ५।४।१७। अधिष्ठात्री देवता, कुलदेवी। रोदेको कमान। शकुन्तलामें लिखा है,- हमारे हिन्दू शास्त्रानुसार एक-एक स्थान किंवा वस्तुमें "कृष्णसार ददचक्षुस्वयि चाधिज्यकाम के। .. एक-एक देवता अधिष्ठित हैं। यह उस-उस स्थान मृगानुसारिणं साक्षात् पश्यामौव पिनाकिनम् ॥" किंवा वस्तुको अधिष्ठात्री देवता हैं। जैसे, 'जलदेवता' कृष्णसार मृग और ज्या-युक्त-धनुर्धारी आपके प्रति कहनेसे जलकी अधिष्ठात्री देवता समझी जाती हैं, ८१