पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३६१

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३५४ अधश्चौर–अधस्

'किन्तु से धका गड्डा भी तो कई तरहका होता नमस्कार करता है। घरमें दो आदमी सोरहे हैं। है, कमलके फ्ल-जैसा, सूर्य-जैसा, अईचन्द्राकार, आदमियोंको सोने दो, पहले अपने बचावके लिये दीर्घाकार, स्वस्तिक-जैसा और पूर्णकुम्भ-जैसा। अब दरवाजा खोल लू। दरवाजा पुराना हो गया, मैं किस जगह अपना हुनर दिखाऊ, जिसे कल किवाड़से आवाज. आती है! कहीं से थोड़ासा पानी शहरके लोग देखकर अचम्भे में पड़ जायें। इस ईटके ढुंढ लाऊ! पानौसे सावधान होकर किवाड़ आई पक्के मकान में पूर्ण कुम्भाकार-पानी भरे घड़े-जैसा करूं। पौछ मट्टी गिरनेसे आवाज आती है, पौठके गड्डा ही अच्छा लगेगा। इसलिये मुझे वैसा ही गड्डा सहारे कौवाड़ खोल लू। जो हो, अब देखना बनाना चाहिये। चाहिये, कि ये दोनो असलमें सोते हैं या नहीं 'वरदाता कुमार कार्तिकेयको नमस्कार है। भय दिखानेसे मालूम हुआ, कि असल में सो रहे कनकशक्तिको नमस्कार है। ब्रह्मण्यदेव देवव्रत, हैं। इनको हलकी सांससे नहीं जान पड़ता भास्करनन्दी और योगाचार्यको नमस्कार है। मैं कि इन्हें भय लगा है। क्योंकि खूब साफ और उनका पहला शिष्य हूं। उन्होंने तुष्ट होकर मुझे रह-रहके सांस चलती है, आंखें अच्छी तरह मुंद गई गोरोचना दी है। इसे शरीर में लगानेसे नगररक्षक हैं और पुतलियां भी घूमते नहीं देख पड़तों ; शरीरके मुझे देख न सकेगा और शरीरपर हथियार चलनेसे जोड़ ढीले पड़े और हाथ-पैर बिस्तरसे बाहर लटके चोट न लगेगी। यह बात कहकर शर्विलकने शरीर हैं। असलमें न सोनेसे आंखपर कभी दियेकी रोशनी में गोरोचना लगा ली। इसके बाद उसने कहा, नहीं सही जाती।' अरे ! सेंध नापनका गज़ तो मैं भूल आया। फिर मृच्छकटिक अति प्राचीन पुस्तक है। शविलक- कुछ सोच-समझकर वह बोल उठा,-गज न सही, को कथा सुननेसे जान पड़ता है, कि पूर्वकालमें इस अपने इस जनजसे नाप लेनेपर ही काम चल जायेगा। देशक चोर अपना व्यवसाय बहुत अच्छी तरह समझ- ब्राह्मणका जनेऊ बड़े ही कामको चीज़ है। विशेषतः ते-बूझते थे। एक ग्राम्य गल्प प्रचलित है, कि मेरे-जैसे ब्राह्मणको इससे कितना हो काम पड़ जाता आकाशसे जो वच गिरता, वह केले या सार नामक है। इससे सेंधका गड्डा नपता; गहना उतरता, वृक्षमें लगनेसे फिर निकल नहीं सकता, फंस जाता दरवाजा मज.बूतीसे बन्द रहनेपर किवाड़ा खुल जाता है। सेंध मारनेवाले चोर उसी वजके लोहेसे अपना और सांप या बिच्छके डङ्ग मारनेपर गांठ खन्ता बनवाते हैं। यह ठीक नहीं कहा जा सकता, बंधती है। कि इस गल्पकी उत्पत्ति कैसे हुई है। लोहारको 'इसके बाद उसने सेंधकी जगह नाप काम शुरू दुकानके पास एक जंगला रहता है। कहते हैं, कि कर दिया। गड्डे को गहराकर वह बोला, 'एक शायद सेंध लगानेवाले चोर उसी जंगलेमें रातको ईट और बाकी है, जिसके निकलते ही सेंध फूट लोहा और मजदूरीका दाम फेंक जाते हैं। लोहार जायेगी। अरे यह क्या ! क्या सांपने काट खाया ?' इशारेसे समझ सकता, कि किस चोरको खन्तेको तब उसने जनेऊसे उंगलौ बांधी, किन्तु विषसे ज़रूरत पड़ी है। वह चुपके से एक खन्ता बना उसी शरीर भभक उठा। इसके बाद चिकित्सासे चङ्गा जंगलेमें रख देता है। सेंध फोड़नेवाले चोर रातको होकर उसने सेंध फोड़ी। भीतर जाकर देखा, कि आ अपना हथियार ले जाते हैं। दिया जलता था। अन्तमें गड्डे को चौड़ाकर सोचने अधशिरस् (सं० लौ०) अधः अधोवर्ति शिरः लगा,-'अब तो भीतर घुस जाऊं। नहीं, एकबारगी मस्तकं यस्य । अवाङ मस्तक, मुंह लटकाये हुए हो घुस जाना अच्छा नहीं, पहले एक पुतलेको घुसेड़कर देखू। कोई तो नहीं। कार्तिकेयको अधस् (सं० अव्य.) अधर-असि । पूर्वाधरावराणामसि- 1 आदमी।