पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३४२

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अदृष्ट-अदेव ३३५ १ पहले .. भी मानते हैं। अदृष्ट मानने में यही दोष है, कि यदि समासात् परनिपातः । सह सुपा। पा २।१२ कपालमें जो लिखा है, वही होगा, तो हम निष्कर्मा जो देखने में नहीं आया। २ अनोखा, निराला। क्यों न बन जायें। सांसारिक काम करने में क्या फल अदृष्ट फल (सं० त्रि.) १ उन फलोंवाला जो देखे है? फिर इस बात का कोई जवाब नहीं, कि जब न गये हों। (क्लो०) २ फल जो देख न पड़े, पोशीदा पहले सृष्टि हुई थो, तब पूर्वजन्मार्जित कर्मफल नतीजा। किसका था और ऐसी अवस्था में लोग सुख-दुःखके भागी अदृष्टरूप (सं० वि०) अनदेखे रूपवाला, ऐसी कैसे बने। फिर यदि अदृष्ट न मानें, तो इसका क्या शक्लका, जो देखी न जाये। कारण होगा, कि संसारमें कोई सुख और कोई दुःख अदृष्टवत् (सं० वि०) १ भाग्य-सम्बन्धोय, किस्मतसे हुआ। भोगता है। इस समस्याको व्याख्या करना कठिन २ भाग्यवान्, खुशकिस्मत। ३ अभागा, बदबख्त। है। इससे लोग कर्मवादी बन जाते हैं। ईश्वर ही अदृष्टवाद (स० पु.) भाग्यपर विश्वास, विना जाने, कि असलमें बात क्या है। हम इसका उत्तर दे विचार शास्त्रानुसार प्रारब्धका स्वीकार। नहीं सकते। फिर हम देखते, कि अतिप्राचीन अदृष्टहन् (वै० पु.) विषमय कृमिको नाश करने- कालसे सकल देशों के लोग अदृष्ट मानते चले आये वाला सूर्य । हैं। क्या संस्कृत और क्या अरबी-फारसौकी पुस्तकें- अदृष्टाक्षर (सं० पु०) अक्षर जो देख न पड़े, न अदृष्टकी बात सभी जगह देख पड़ती है। हमारे दिखाई देनेवाले हर्फ। यह अक्षर बहुधा प्याज सुश्रुत नियति न मानते थे। उनका यहांतक विश्वास और नोबू जैसी चीजोंके रससे बनते और अग्निपर था, कि जो लोग नियति मानते, वह सब बुद्धिमान् तपानेसे देख पड़ते हैं। नहीं। क्योंकि, ऐसा विश्वास रख कोई भी सांपके अदृष्टार्थ (सं० त्रि.) इन्द्रियसे अज्ञात विषयपर मुंहमें नहीं घुसता, कि कपालमें जो लिखा है, वह विश्वास रखनेवाला । अवश्य होगा। वलि, मन्त्र और यागयज्ञका विधान अदृष्टाश्रतपूर्वत्व (सं० लो०) वह गुण, जिसका भी सब लोग करते हैं। यदि अदृष्टका लिखा न मिटे, कभी प्रत्यक्ष हुआ न हो। तो इन सब कामोंका क्या फल हो सकता है! अदृष्टि, अदृष्टिका (सं० स्त्री०) न दृष्टिः, नञ्-तत् २ भावी विपत्ति, नागहानी आफत । ३ बुद्धि या विरोधार्थे । १ दर्शनाभाव । २ क्रूरदृष्टि, कोपदृष्टि, परीक्षासे बाहर विषय, वह काम जिसमें अक्ल या गुस्म को नज़र। (त्रि०) ३ दृष्टिशून्य, अन्धा। आजमायश न चले। (पु०) ४ अदृश्य कृमि, कोड़े अदेख (हिं० वि० ) अदृश्य, अदृष्ट, गुप्त, पोशीदा, जो देख न पड़ें। (त्रि०) न दृष्टम् । ५ अकृतदर्शन, छिपा, जो देख न पड़े। अवीक्षित, न देखा हुआ। अदेखौ (हिं० वि०) देख न सकनेवाला, हसदी, अदृष्टकर्मन् (सं० वि०) जिसने काम-काज देखा जिसे किसीका वैभव देखनेसे डाह लगे। नहीं, अनुभवरहित। अदेय (सं० वि०) देयम्, दा-यत् ; नज-तत्। अदृष्टकाम (सं० पु०) कभी न देखी गई वस्तुका १दानके अयोग्य, न देने काबिल । (लो०) प्रेम, अनदेखी चीजका लालच । २ न्यायानुसार न देने या न समर्पण करने योग्य द्रव्य । अदृष्टनर, अदृष्टपुरुष (सं० पु०) न्याय जो वादी अदेयदान (सं० लो०) अन्याय दान, बेजा और प्रतिवादी आप ही कर लेते हैं। बखू शिश। अदृष्टपरसामर्थ्य (स• पु०) वह पुरुष जिसने शत्रुको अदेव (सं० वि०) १ जो देव-सम्बन्धीय न हो, देवतासे शक्तिका अनुभव प्राप्त न किया हो। सम्बन्ध न रखनेवाला। (पु.) २ वह जो देवता अदृष्टपूर्व (सं० त्रि.) न पूर्व दृष्टम्, सुप्सुपेति | नहीं। ३ राक्षस, निशाचर ।