पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३३१

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३२४ अदिति तैत्तिरीय और वाजसनेयसंहितामें ( यजुर्वेदमें) अदिति विष्णुको पत्नी बताई गई हैं :- "प्राजापत्यथरुरदित्य विषयुपत्न्ये चहरप्रये वैश्वानराय" ( वाजसनेय २६०, तैत्तिरीयस० ७०१४।) अध्यापक विलसनके मतसे अदितिका दक्षकन्या उल्लिखित होना ज्योतिषिक काण्डका रूपकप्रमाण- मात्र है। ज्योतिषग्रन्थमें अदिति नक्षत्राधिपति पुनर्वसुका नामान्तर है,-"दहनकमलनशशिशूलभृत् पदितिजीव।"ज्योतिषसार । अध्यापक रोथका कहना है, कि अदिति असीम और अनन्त हैं। मोक्षमूलरका मत भी प्रायः इसी प्रकार है। उनके कथनानुसार अदितिका अर्थ अनन्त, अक्षय, अमर, असीम और दितिका अर्थ ससौम है।* रेगनियर साहब कहते हैं, Aditi is the name of a divinity, a personification of the All, the mother of the Gods." (E'tude sur l'idiome des Vedas, p. 28.) वस्तुतः अदितिका इतिहास आद्योपान्त पढ़नेसे यह लिखना असम्भव हो जाता है, कि यह क्या और कौन थीं। कितनों हीको विश्वास है, कि वैदिक ऋषिगणने असौम-अनन्तमयी प्रकृति बतानेके लिये ही अदिति शब्दको व्यवहार किया था। इसीसे वेदमें माता, पिता, पुत्र, कन्या प्रभृति सब नामोंसे अदितिका स्तव मिलता है,- "अदितिद्यारदितिरन्तरीक्षमदितिर्माता स पिता स पुवः । विशेदवा अदितिः पञ्चजना अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥” (ऋक् १।८।४०, वाजसनेय २५२३ : निरुक्त ४ाधार, ऐतरेय-ब्राह्मण ३।३।७।) देवराजने निरुताटीकामें इसका यह अर्थ किया च सर्वमवेतद 'अदितिः' एव। एवमनेन मन्त्रण मन्त्रदृक् “अदितवि- भूतिमाचष्टे” देवमातुस्तत् सर्वमप्युपपद्यत एव ; माहाभाग्याइ वतायाः । तदुत्तरव (देवतकाए ७१४) वयामः । एवमैतिहासिकपक्षण ; नरुक्ती- पक्षण पुन: 'एतानि' द्युलोकादीनि सर्वाणि 'अदौनानि' अनुपक्षीणानि इति योज्यम् ; न हषां चयोऽस्तीति।' उक्त मन्त्र द्वारा स्पष्ट हो जान पड़ता है, कि अदिति सामान्य नहीं ; सर्वभूताधिष्ठात्री, मूल- प्रकृति, देवमाता अर्थात् द्योतनात्मक शक्ति और मध्यस्थान-देवता अर्थात् माध्याकर्षणवृत्तिरूपा हैं। फिर भी इस जगह कितने ही पूछ सकते हैं, कि अदिति दक्षकन्या क्यों कही गई, दक्ष कौन थे। सायणने ऋग्वेदके भाष्यमें इसका भी आभास दिया है,- 'अदितिमखण्डनीयामदीनां वा देवमातरम् । दक्ष सर्वस्य जगतो निर्माणे समर्थ प्रजापतिम् । यहा प्राणरूपेण सर्वेषु प्राणिषु व्याप्य वर्तमानं हिरण्य गर्भम् । प्रायो वै दक्ष इति श्रुतेः । (ऋग्वेद १।८।३। सायण) [दक्ष देखो।] अब ज्ञात हुआ, कि दक्ष स्वयं हिरण्यगर्भ प्राण हैं। अतएव द्योतनात्मक शक्ति-मूलप्रकृति अदिति प्राणको दुहिता हैं ; फिर प्राण प्रकृतिक पुत्रखरूप हैं। ऐसा होनेसे अदिति कश्यपपत्नौ क्यों कही गई? कश्यप स्वयं पुरुष हैं, इसीसे मूलप्रकृति अदिति उनके पनीरूपसे अभिहित हुई हैं। स्वयं भगवान् वामन जो अदितिके पुत्ररूपसे अभिहित हुए हैं, वह भी पौराणिक रूपकमात्र है। वामनपुराणमें स्वयं भगवान् कह रहे हैं,- "अहं त्वाच रहिष्यामि पात्मानच व नन्दिनि। न च पौड़ां करिष्यामि खस्तितेस्तु व्रजाम्यहम् ॥” (वामनपुराण २८१३). वामन आत्मा हुए। सुतरां वामनरूपी आत्माने अदितिका आश्रय लिया। यही कथन बहुत कुछ वामनावतारका रूपक प्रमाणित हो सकता है। वामन देखो। कितनो हौंको विश्वास है, कि अदिति शब्द केवल रूपकप्रयोगमात्र है, यह किसी व्यक्ति-विशेषका नाम नहीं। पहले ऋषि इसे आकाश और अन्तरीक्षके स्थानमें प्रयोग करते थे, इसके पश्चात् क्रमसे अदिति 'पदिति' एव देवमाता 'द्यौः', 'अदिति' अदितिरेव च 'अन्तरिचम्' अदिति एव 'माता' सर्वभूतनिर्मावी, 'स' एव पिता पालकः, 'स' एवहि 'पुवः', सेव हि परितुष्टा सती स्तोतार पुरुणो बहुनः पापात् वायते; अथवा सैव निपृणाति, सर्वभूतानां यन्निवर्तव्यं दातव्यमित्यर्थः। वेऽपि चैते 'विश्वेदेवाः' सर्व देवाः, एतेऽपि अदिति एव । 'पञ्चजना: 'पदितिः एव । सर्वथापि किं बहुना, यावदेतत् किञ्चित् 'जातं च 'जनिव" च 'जनिष्पमा

  • Muir's 0. S. Texts, Vol. V. p. 37: Max Müller's

Origin and Growth of Religion, p. 227-232 : Hillebrand's Uber die Gottin Aditi, 1876.