पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३०

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अकबर-अकबरनामा । . होते-होते १६.७ ईस्खोंमें परलोक सिधार। सम्राटको , अकबर (अरबी) श्रेष्ठ। बड़ा। महत्। जैसे अल्लः हो कब आगरे के पास फतहपुर सीकरीमें बनाई गई। अकबर, परमेश्वर श्रेष्ठ-यही कहकर मुअज्जिन मस्- सम्राट अकबरकै विषयमें कितनी हो किम्बदन्तियां जिदमें अजां देत अर्थात् नमाज पढ़नेवालोंको प्रचलित हैं। किसी-किसीका कहना है कि, पूर्व निर्दिष्ट समयपर नमाज पढ़ने के लिय बुलाते हैं। जन्ममें अकबर एक ब्रह्मचारी थे। उनका नाम मुकुन्द- अकबर-लाहोर और मूलतानकै बोचक एक गांवका राम था। एक दिन मुकुन्दराम प्रयागमें गङ्गा भागीरथी नाम है। यहां एक प्राचीन नगरका भग्नावशेष ढेर होकर और यमुनाके सङ्गम स्थानपर बैठकर तपस्या करत पड़ा है। उस नगरमें अब कुछभी नहीं है। केवल बड़े- थे। एक दिन मुकुन्दरामके एक शिष्यने दूध पीने के बड़े ढेहू और बड़े २ ईटक ढेर दिखाई देते हैं। लिये लाकर दिया। ब्रह्मचारौने दूध पीनेके बाद आजकल ११ इञ्चको ईटही बड़ी कहलाती है, परन्तु देखा कि, उनके मु हमें गोका एक रोआं लगा हुआ उस नगरको एक ईट २० इञ्च लम्बी, १० इञ्च चौड़ी है। गोका लोम, गोमांसके समान होता है, हिन्दु और साढ़े ३ इञ्च मोटी है उस नगरका क्या नाम ओंके लिये अखाद्य वस्तु है। उसी लोमको खाकर है, वहां कौन राजा राज्य करते थे, उस पुरीको नष्ट ब्रह्मचारी यवनत्वको प्राप्त हुए। मुकन्दरामको बड़ा हुए कितने दिन हो गये, ये बातें कोईभी बता न कष्ट हुआ। उन्होंने विचारा कि अब यवन होकर सका। १८२३ ईस्वीमें गुलाबसिंहन यह गांव जीवित रहना अच्छा नहीं। मुसलमान तो हो गये, बसायाथा। अकबरनगर-१७२२ ईखीम मुर्शिदकुली- परन्तु अब ऐसा उपाय करना चाहिये कि, अगले खाने बङ्गालको तरह भागांमं विभक्त किया। जन्ममें दिल्लीको बादशाहत मिले। यह विचार- उनमही एक भागका नाम अकबरनगर है। इन कर मुकन्दरामने एक ताँबेके टुकड़ेपर अपना सब तेरह भागा दो भाग उड़ीसामं चले गये । वृत्तान्त लिख अलक्ष्य देवौके सामने मिट्टीमें गाड़ नाम है-बन्दर बालेश्वर पश्चिममें हैं। इनके नाम दिया। इसके बाद अपनी अभीष्ट-सिद्धिकी कामना सप्तग्राम, वर्द्धमान, मुर्शिदाबाद, यशोहर और भूषणा करके प्रयागके कामकूपमें कूद पड़े । शिष्यने देखा छः भाग पद्मार्क उत्तर-पूर्वमें हैं, जिनका कि, मेरे हो दोषसे गुरुने प्राण त्याग किये हैं; अतः नाम अकबरनगर, घोड़ाघट, कड़ाईबाड़ी, जहांगीर- वह भी पुनर्जन्ममें गुरुके साथ रहनेको कामना करता नगर, श्रीहट्ट (सिलहट) और चट्टग्राम ( चटगांव) हुआ, उसी कामकूपमें कूद पड़ा। है। ये तेरह भाग १६६० परगनों में बांटे गये हैं। कामकूपमें जिस कामनासे जो प्राणत्याग करता, इन परगनोंसे १, ४२, ८८, १६६ रुपय राजस्व अदा उसको वही कामना पूरी होती है। मुकुन्दरामने होता है। यह भाग अकबरनगर मुन्दरबनके पास है। दिल्लीके साम्राज्यको इच्छासे प्राणत्याग किया था, दौनाजपुर जिलेमें अकबरनगर एक छोटा सा अतः उनकी इच्छा भी पूर्ण हुई। वही सम्राट अक गांव है। यह पिपली नदीके तटपर अवस्थित है। बर हुए. और उनका शिष्य अबुलफजल हुआ। ऐसौ इस गांवकी दूसरी ओर धनखाइल नामक गांव है। भी बदन्ती है कि, अकबरने वह भूमि खुदवाकर वर्तमान राजमहलको हो पहिले अकबरनगर कहा वह ताम्रपत्र निकलवाया था। इसमें कोई न कोई जाता था। सन्देह है ; परन्तु इन बातोंको सुनकर एक प्रकारको अकबरनामा-सम्राट अकबरके समयका इतिहास । श्रद्धा होती है। इसे शेख अबुलफज़लने लिखा था। अकबरनामाके [अकबरकी जीवनीका पूरा हाल जाननेके लिये बहरामखाँ, टोडरमल, तीन भाग हैं। पहिलेमें तैमूरका वंश-विवरण, बाबर- मानसिंह, अबुलफजल, फैजी, तानसेन, वौरवर, आदिको जीवनियां देखनी का राजत्व, सूरवंशकै राजाओं तथा हुमायूंका वृत्तान्त चाहिये। लिखा गया है। दूसरे भागमें अकबरके राज्यके पहिले उनका