पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/३

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हिन्दी विश्वकोष || अका 1 । । अ-स्वरवर्णका पहिला अक्षर। इसका उच्चारण “अ” लगाकर उच्चारण करना पड़ता है। कण्ठसे होता है; इसलिये यह कण्य वर्ण कहलाता सवर्णे दीर्घः पा ६।१।१०१। अर्थात् समान स्वर है। संस्कृत व्याकरणके अनुसार उच्चारण-भेदसे प्रकार मिलने पर दीर्घ हो जाते हैं। सन्धिके इसी सूत्रके अट्ठारह प्रकारका है। पहिले इस्त्र, दीर्घ और प्लत । अनुसार नव+अङ्कुर मिलकर “नवाङ्गुर” हो जाता है; इसके बाद उदात्त, अनुदात्त और स्वरित। फिर क्योंकि यहाँ वकारके अन्तमें अकार और अङ्गुरके इख उदात्त, इख अनुदात्त और इस्ख स्वरित। दीर्घ आदि में अकार है। इसलिये दोनों अकार मिलकर उदात्त, दीर्घ अनुदात्त और दीर्घ स्वरित। प्लुत आकार हो गया। पञ्जाबके उत्तर टिकरी प्रदेशमें उदात्त, प्लुत अनुदात्त और प्लत स्वरित। फिर इन टिकरी भाषा प्रचलित है, यह भाषा संस्कृत को नौप्रकारके उच्चारणोंका सानुनासिक और निरनुनासिक अपभ्रंश है; परन्तु उस भाषामें स्वरवर्ण व्यञ्जन- उच्चारण होता है। इस तरह अकारका उच्चारण वर्णमें नहीं मिलाया जाता। जैसे, यदि “का" लिखना सब मिलाकर अट्ठारह प्रकारका होता है। पड़ा तो “का” लिखा जाता है। इसी तरह हिन्दी भाषामें केवल हुस्ख और दीर्घ स्वर ही लिया “कि-कई" इत्यादि। "" इस तरहका जो एक वर्ण है गया है। अकारका दीर्घ आकार हो जाता है। जिस उसे लुप्त अकार कहते हैं। नवः अङ्गुरः = नवोऽङ्करः किसी अक्षरमें आकार लगा दिया जाता है उसका ऐसे स्थानमें वकारके बादका विसर्ग ओकार हो रूप इस प्रकारका हो जाता है। अ, आ, ये गया। * । अतो रोरप्लुतादप्लुते। पा ६।१।११३ । अप्लुत दोनों ही कण्ठय वर्ण हैं। संस्कृत भाषामें तथा अकार इस्त्र दीर्घ ) परमें रहने पर अनुत अकारके संस्कृतसे जिन भाषाओंकी उत्पत्ति हुई है, उन सबमें परस्थित रुके स्थानमें उकार हो जाता है। व्यञ्जन वर्णों का उच्चारण इसकी सहायतासे होता है। वर्णोद्धारतन्त्रमें अकारका रूप इस तरहका कहा जैसे, क, ख, इत्यादिका उच्चारण करनेमें क्+अ, गया है कि एक रेखा दक्षिण ओरसे घूमकर कुछ ख+अ, इत्यादि-इसी तरह सब व्यञ्जनोंके अन्तमें | सिकुड़ जायगी ; इसके बाद बाई ओर से एक रेखा