पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२६२

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को भूल । २५६ अतिदोष-अतिपाण्डु कम्बला होता है-१ शास्त्रातिदेश, २ कार्यातिदेश, ३ निमि मनको खींचनेवाला, निहायत खुशबूदार, बहुत ही त्तातिदेश, ४ संज्ञातिदेश, ५ रूपातिदेश । सुगन्धित । अतिदोष (स० पु०) बड़ा भारीदोष, अधिक अतिवृत्रित् (वै० स्त्री०) एक वैदिक कविता, जिसमें तीन पद होते और प्रत्येक पदमें क्रमशः सात, अपराध। अतिधन्वन् (सं० पु०) अत्युत्कृष्टं धनुर्यस्य । १ उत्तम छः और सात खण्ड रहते हैं। धनुईर योहा। अतिक्रान्तं धन्वानं तवाम मरु। अतिनीच (सं• त्रि०) अधमसे अधम, बहुत छोटा, (त्रि०)२ मरुस्थल अतिक्रमकारी। निहायत रजील। ३ सौनक-गुरु, जिनका वर्णन छान्दोग्य उप- | अतिनो ( स० त्रि०) अतिक्रान्त नावम्। १ अतीत- नौक, नौकासे भी अधिक तैरनेवाला। निषत् और वंशब्राह्मणमें मिलता है। २ नावसे या अतिधवल (सं० त्रि.) बहुत सफेद । नाव छोड़ बजरी या पैरनेसे पार हुआ। अतिति (स'० स्त्रो०) अतिक्रान्ता धृतिम् । १ उन्नीस अतिपन्थ (सं० पु०) सुपन्थ, अच्छी राह, सन्मार्ग। अक्षरका छन्दोविशेष ; जैसे, शार्दूल विक्रीड़ित। अतिपक्वक्षौर (सं० क्लो०) खूब श्रौटा हुआ दूध । धृति छन्दमें अट्ठारह अक्षर होते हैं ; अतिधृति छन्दमें अतिपक्वमांस (सं० क्लो०) खूब पकाया हुआ गोश्त । उससे एक अक्षर अधिक रहता है। (त्रि.) २ धैर्य अतिपटाक्षेप (सं० पु०) नाटकका परदा उठाने- अतिक्रमकारी, अधैर्य, अंसन्तुष्ट, भड़भड़िया। अतिधेनु (सं० त्रि.) अपनी गीके लिये प्रसिद्ध । अतिपतन (सं० पु०) अतिक्रम्य पतनम् । अत्यय, अतिनाट (सं० पु०) उस मिले हुए रागको एक अतिक्रमण। शाखा, जिसे सङ्कीर्ण कहते हैं। अतिपत्ति (स० स्त्री०) अतिक्रम्य पत्तिं पतनम् । अतिनाभ (सं० पु०) हिरण्याक्ष राक्षसके जो नौ अतिक्रम, अतिपतन। लड़के थे, उनमेंसे एक। अतिपत्र, अतिपत्रक (सं० पु०) अतिशयितं बहत् अतिनामन् (सं० पु०) छठे मन्वन्तरके सप्तर्षि । पत्रमस्य । हस्तिकन्दवृक्ष, शाकक्ष । अतिनाष्ट्र (सं० वि० ) भयसे बाहर, खतरेसे अलग। अतिपत्रा (स० स्त्री०) बला, खरेली। अतिनिद्र (सं० अव्य.) निद्राके समयसे बाहर। अतिपथ (स० पु.) पन्थानमतिक्रान्तः । अतीतपथ । अतिनिद्रता (सं० स्त्री०) नींदकी बीमारी, नींदका अतिपथिन् (सं० पु०) अतिशयितः शोभनः पन्था। बहुता आना। सत्पथ, सुन्दर पथ, अच्छी राह, सुपन्थ । अतिनिद्रम् (सं० अव्य० ) निद्रा सम्प्रति न युज्यते । अतिपन्धः सुपन्थाच सत्पथचाचि तेऽध्वनि। (इत्यमरः )। १ निद्राके अयोग्य समय । (त्रि.) अतिक्रान्त अतिपद (सं० त्रि०) अतिक्रान्तं पदं चरणम्। वर्ण- निद्राम् । २ निद्रातिक्रमकारी, निद्रारहित, जो सोता वृत्तानुसारी छन्दके चरण, अतिक्रान्त । न हो, जिसे नींद न आती हो। ३ दीर्घनिद्रायुक्त, अतिपन्न (स• त्रि०) अतिक्रान्त । बहुत देरतक सौनेवाला, लम्बी नींद लेनेवाला। अतिपर (स० पु.) १ प्रवल शत्रु। २ शत्रुजित्, (स्त्री) अतिशयिता निद्रा। ४ दीर्घनिद्रा, शत्रुओंको जीतनेवाला। लम्बी नींद। अतिपरोक्ष (सं० त्रि.) अतिक्रान्तं परोक्षम्। अतिनिपुण (सं० त्रि.) अति चतुर। प्रत्यक्ष, आंखों देखी बात, चाक्षुष विषय । अतिनिर्हारिन् (स० त्रि.) अतिशयेन निर्हरति समाकर्षति अतिपरोक्षवृत्ति (सं० वि०) चालस बाहर, अवश्य' मनः। प्रतिनिहारी अत्यन्तसमाकर्षों। (इति महेश्वरः।) उठा हुआ। अत्यन्त सुगन्ध, मनोहर गन्ध, आमोद, समाकर्षी, | अतिपाण्डुकम्बला (स. स्त्री०) जैनियोंको सिद्ध- 1