पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२२०

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२१४ अञ्जन-अञ्जन महाराज भिन्न अर्थ द्वारा अन्य भाव घटाया जा सके, तो है। पान, रूईका कपड़ा और बांसको टोकरी शब्दकी इस शक्तिको अञ्जनावृत्ति कहते हैं। प्रभृति द्रव्यादि यहां प्रचुर परिमाणसे बिकते हैं। १४ शाक्यवंशीय राजविशेष। यह राजा देव स्थानीय व्यवसायका यह एक केन्द्रस्थल है। द्वितीय दहके पुत्र और देवदह नगरमें उत्पन्न हुए थे। महाराष्ट्रयुद्धके अवसान पर सन् १८०३ ई० को जयसेनको कन्या यशोधराका इनके साथ विवाह ३०वीं दिसम्बरको इस नगरमें दौलतराव संधिया हुआ। इनके दो कन्या, माया और प्रजापति, और और अंगरेजोंकी जो सन्धि हुई, उसके पत्र में उस दो पुत्र दण्डपाणि और सुप्रबुद्ध रहे। (महावंश २ परि० । ) समयवाले बड़े लाट मारक्विस वेलेसलीके अनुमत्यनुसार अञ्जनराजका राजत्वकाल अनुमानत: सन् ई०से जनरल अर्थर वेलेसलौने दस्तखत किये थे । ७११ वर्ष पूर्व था। पहले इन्होंने अञ्जनाब्द चलाया था। अञ्जनगाँव-बाड़ी-बरारके अन्तर्गत अमरावती “बुद्धो नाबाजनमुतः की कटेषु भविष्यति ।" (भागवत ११३२४) जिलेका एक नगर या कसबा । यह अमरावतीसे १५ अब्द विशेष। अञ्जन नामक देवदहके पांच कोस दूर है। इसमें कोई तोन हज़ार आदमी महाराजने यह अब्द पहले प्रचलित किया था। रहते होंगे। ब्रह्मदेशीय धर्मपुस्तकमें उनका नाम 'इट्ज़ेन' लिखा अञ्जनगिरि (सं० पु० ) सितोदा नदीका पूर्वतीरस्थ इस अब्दके ६८वें वर्ष बुद्धदेवने जन्मग्रहण पर्वतभेद। (लिङ्गपु० ४६।५०) किया। ब्रह्मवासी अपने ताज मासवाले शुक्लपक्षके अञ्जनगुड़िका (सं० स्त्री०) विशूचिकाका औषध । प्रथम शनिवारसे इस अब्दका पहला दिन गिनते अञ्जनत्रय (सं० क्लो०) कालाञ्जन, स्रोतोञ्जन और हैं। अजातशत्रुके राजत्वकालमें यह अब्द लोप हो रसाञ्जन। गया था। १४८ अञ्जनाब्दमें बुद्धदेवके निर्वाण बाद अञ्जननामिका (सं० स्त्रो०) नेत्ररोगान्तर्गत वर्मज इसी नामका एक नया अब्द प्रचलित हुआ। इस रोगविशेष । नये अञ्जनाब्दके तीसरे वर्ष अजातशत्रुने वैशाली "दाहतोदवती ताया पिड़का वम सम्भवा । पर आक्रमण किया। मृदी मन्दरुजा सूया जेया साञ्जननामिका॥” ( भावप्र०) अञ्जनक (वै० पु.) अञ्जन शब्दयुक्त वेदमन्त्रभेद । अञ्जनपर्वत–पूर्णोद या कास्पिअनके (Caspian ) पास अञ्जनकर्म (सं० लो०) नेत्रप्रसाधन, काजल । एक पहाड़। इसका दूसरा नाम कृष्णपर्वत है। अञ्जनकेश (सं०पु०) दीप, चिराग, लम्प, दिया। यहां अनेक बृहदाकार सर्प देख पड़ते हैं। (वायुपुराण) । अञ्जनकेशिका, अञ्जनकेशी (सं० स्त्री०) अञ्जनमिव ईरानी इसे आन्हेम कहते हैं। कृष्णवर्ण: केशो यस्याः, बहुव्रौ। नखी नामक एक अञ्जनपर्वा-महावीर घटोत्कचके एक पुत्र। कुरु- प्रकारका गन्धद्रव्य। इसे लगानेसे बाल अत्यन्त क्षेत्रके युद्धकालमें इनके साहस और वीरत्वकी बड़ी कृष्णवर्ण हो जाते हैं। अमरके टीकाकार महेश्वरका प्रशंसा थी। उसी समय द्रोणाचार्यके हाथों यह कहना है, कि यह द्रव्य देखने में बहेड़े के पत्ते जैसा मारे गये। (महाभारत, ट्रोणपर्व १५ १०) होता है। इसे हनु, हट्टविलासिनी, धमनी, नली, अञ्जनपेड़-कोकण प्रदेशका एक नगर और दुर्ग, यह , शुक्ति, शङ्ख और खुर भी कहते हैं। समुद्रके किनारे अवस्थित और बम्बई नगरसे ५० कोस अञ्जनगाँव-बरार प्रदेशवाले अमरावती जिलेके दूर है। सन १८१८ ई० में यह अंगरेजी फौजके हाथ अन्तर्गत दरियापुर ताल्लुकका एक नगर। अक्षां' २१° समर्पण किया गया था। २ अर्जुनवृक्ष। १० उ०, और द्राधि० ७७° २० पू० के मध्यमें यह अञ्जनभैरव (सं० पु०) सन्निपात ज्वरका एक रस, अवस्थित है। इसको लोकसंख्या कोई पौने नौ जो अांख में लगाया जाता है। हजार होगी। यह नगर सान्हर नदोके तौर बसा अञ्जन महाराज-वाराणसी काशीके एक विख्यात