पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२१३

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भेद। ८ अजित-अजितात्मन् २०७ बादसे पृथक् किया है। पूर्व की ओर बरारके बुल अवस्थित है। इसकी उत्तर ओर एक पुरातन डाना, अकोला और येवतमाल और दक्षिण की ओर नगरका निदर्शन देख पड़ता है। प्रसिद्ध चीन हैदराबादके परभनी और निज़ामाबाद जिलोंमें भी परिव्राजक उअङ्ग-चुआङ्ग इस स्थानको एक अद्भुत इसका विस्तार देख पड़ता, जहां इसे सह्याद्रिपर्वत कहानी इसतरह लिख गये हैं-'जनक राजाने अजय- कहते हैं। सह्याद्रि पछत्तर और अजिण्ठा पर्वत पुरमें एक गन्धहस्ती पकड़ा था। बुद्धदेवने उसी पचास कोस लम्बा है। पुराने समयमें व्यवसायी हस्तीके औरससे जन्मग्रहण किया। पहले अजय- और योद्धा अजिण्ठा पर्वतको राह ही गुजरात और पुरमें मार्तण्डपुष्करिणी नामक एक सरोवर था। मालवेसे दक्षिण पहुंचते थे। अनेकोंको विश्वास है, कि आजकल उसी पुष्करिणी- अजित (सं० त्रि.) न-जि-त, नज-तत्। १ परा को लोग बुद्धकुण्ड कहा करते हैं। प्रति वत्सर बुद्ध- जितभित्र, न हारा हुआ। (पु.) २ विष्णु । कुण्डपर अनेक लोगोंका समारोह होता है। ३ शिव। ४ चतुर्दशमन्वन्तरका सप्तर्षिभेद। ५ द्वितीय | यात्री स्नान के बाद पास-पास बैठ गयाके निकट- तीर्थङ्कर। अजितनाथ देखो। ६ मैत्रेय बुद्ध । ७ तेलौषध वर्ती समस्त तीर्थस्थानोंका नाम लेते हैं। एक प्रकारका ज.हर-मोहरा । ८ एक अजितबला (सं० स्त्री०) जैनियोंकी देवी विशेष, प्रकारका जहरीला चूहा। जो अहंत अजितके आदेशानुसार कार्य करती हैं। अजिततैल (सं० ली.) नेत्ररोगका तैलविशेष, अजितविक्रम (सं० पु.) १ अपारशक्ति रखने- आंखको बीमारीका एक तेल। इसके बनानेकी यह वाला। २ द्वितीय चन्द्रगुप्तको उपाधि । विधि है,-तिलका तेल ३२ या ६४ तोले और अजितसिंह-१ मारवाड़-जोधपुरके जनक राठौर आंवलेका रस और दूध दो सौ छप्पन छप्पन तोले महाराज। इनका जन्म सन् १६८१ ई० और मृत्यु डालकर खूब पकाये। कल्कके लिये एक पल यष्टि- सन् १७२४ ई० में हुई। इन्होंने राजरूपाख्यात मधु भी छोड़ देना चाहिये। नामक एक पुस्तक लिखाई, जिसमें सन् ४६८ ई० से अजितनाथ-द्वितीय जैन तीर्थयार, जैनियोंके दूसरे पीछेका इतिहास सन्निवेशित किया गया। तीर्थङ्कर । इनके पिताका जितशत्रु और माताका नाम पुस्तक तीन भागोंमें बंटी है। पहलेमें नयनपालका विजया था। चवणतिथि वैशाख-शुक्ला त्रयोदशी, विमान अजयपालको मार जयचन्द्र के समय तक कन्नौजमें नाम विजय, तिथि माघशुक्ला अष्टमी और रोहिणी शासन करना, दूसरेमें सन् १६८१ ई० के समय नक्षत्र में इन्होंने जन्मग्रहण किया। यह विनीता नगरीमें महाराज यशोवन्तसिंहका शरीर छोड़ना और तीसरीमें रहते थे। इनको जन्मराशि धनु, चिह्न वृषभ, शरीरमान | सूर्यवंशीय क्षत्रियोंका सन् १७३४ ई. तक इतिहास ५०० धनु, आयुमान ८४ लक्ष पूर्व, कुल इक्ष्वाकु, दिखाया गया है। इनके पुत्रका नाम महाराज गणधरसंख्या ८४, साधु ८४०००, साध्वी ३०००, अभयसिंह था, जो सन् १७२४ ई० में उत्पन्न और चतुर्दश पूर्वी ४७५०, केवली २००००, श्रावक सन् १७५० ई० में वर्गवासी हुए थे। चूड़ामणि कविने ३५००००, श्राविका ५५४०००, ज्ञानतिथि फाल्गुन भी अपनी पुस्तकोंमें महाराज अजितसिंहको बड़ी कृष्णा एकादशी, दीक्षावृक्ष वटवृक्ष, मोक्षासन प्रशंसा की है। २ युक्तप्रदेश-प्रतापगढ़के जनक पद्मासन, मोक्षतिथि माघ कृष्णा त्रयोदशी, मोक्षस्थान खर्गीय महाराज। मातादीन शुक्ल इनके दरबारमें अष्टपद, प्रथम गणधर पुण्डरीक और १ली आर्या जाते, जिन्होंने ज्ञान-दोहावली लिखी थी। ब्राह्मी है। अजिता (सं० स्त्री०) भाद्रकृष्ण-एकादशी। अजितपुर, अजयपुर-एक प्राचीन नगर, जिसका अजितात्मन् (सं० त्रि०) जिसने आत्माको न जीता, आधुनिक नाम बक्रूर है। यह फला नदीके कूलमें इन्द्रियोंके वशीभूत। -