पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२१२

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अजिण्ठा-अजिण्ठा पर्वत विदूषक कहता है-यह देखो! धनुहस्ता | अच्छा लगता है। लड़ाईके हथियार भी खूब वनमालाधारिणी यवनकन्यासे परिवृत हो मेरे प्रिय ही हैं। सीधी-तिरछी और छोटी-मोटी तलवारें, वयस्य इसी ओरको आ रहे हैं। तरह-तरह के भाले, गदा, धनुर्वाण, चक्र और विभिन्न चित्रके कोई नृपति और राजसभासद प्रजाका प्रकारको ढालें देखनेवालोंको वीररसमें डुबो देती हैं। आवेदन सुनते, कोई बणिकोंके साथ बात करते हैं। यूनानी कलंगी जैसी भी एक चीज़ बनाई गई और किसी स्थल में नौका और जहाज़ हैं। कोई नौका एक हो रथमें तीन घोड़े जोत कर दिखाये गये हैं। पर चढ़ते, कोई नौकापर बैठ घूमते हैं। हमें चित्रकारी बहुत ही चमकीले रङ्गमें हुई है। प्रकाश ऋग्वेदमें समुद्र-पोतको बात देख पड़ती है, उससे और छाया ठीक परिमाणसे पड़ी, जिसे देख विदित कितने ही पीछे भी समुद्रपोत विद्यमान रहे हैं। होता, कि चित्र मर्मरवाले चनेके मोटे तहपर उतारे इसका भी प्रमाण मिलता है, कि इस समयसे गये हैं। कई जगह रङ्ग बहुत ही गहरा चढ़ा है।' कोई दो सहस्र वर्ष पहले इस देशके बणिक् समुद्रपथ उपरोक्त नानाविध सुन्दर चित्रों के सिवा अजिण्ठेके हारा देशदेशान्तरमें बाणिज्य करने जाते थे। चित्रोंको गुहामन्दिरमें बुद्धजौवन-सम्बन्धीय बहुतसे जातक दृश्य देख यह बात स्पष्ट मालूम होती है, कि दो सहस्र | देख पड़ते हैं। इनमें शिशु बुद्धके निकट असितका वत्सर पहले हिन्दुओंमें विदेशयात्रा निषिद्ध मानी आना, बुद्धदेवको योगभ्रष्ट करनेके लिये सदलबल न जाती थी कामदेवका प्रलोभन दिखाना, शिविजातक और नाग- डाकर बरगसने अजिण्ठेको चित्रकारोके विषयमें जातक विशेष भावसे उल्लेख योग्य हैं। कहते हैं, कि निम्नलिखित मत प्रकट किया है,- मौर्य सम्राट अशोकवाले राज्यावसानके कुछ पीछेसे 'चित्रकारीको प्रशंसा लोग अधिक करते और भारतसे बौद्धप्रभाव विलोप होनेके कुछ पहले तक- कहते, कि जिस समय वह तय्यार हुई, उस समय प्रायः आठ सौ वर्षसे ऊपरवाला भारतीय बौद्धोंका युरोपमें वैसी कारीगरी न थी। मनुष्यको आकृति अपूर्व निदर्शन आजकलके चैत्यों और गुहामन्दिरों में प्रत्येक स्थितिमें दिखाई गई, जिससे अङ्गविद्याका इस समय भी प्रतिफलित हो रहा है। विज्ञान प्रकट होता है। चित्रोंको विषम रूपसे सन् १८०३-४ ई० में अंगरेजोंने झाड़-पोंछ इसे बनाने में चित्रकारोंने अनोखी सफलता प्राप्त की है। साफ कराया। सन् १८७८ ई० में डाकर बरगसने हाथ बहुत सुन्दर मालूम पड़ते हैं। बुद्धदेव, उनके जिस रंगामजीका वर्णन लिखा था, अब वह शिष्यों और भक्तोंके सिवा सड़की, जुलूसों, लड़ाइयों, अधिकांश उड़ गई। और भवनवाले अन्तःपुरोंके चित्र अच्छे बनाये गये, अजिण्ठा ग्राम-औरङ्गाबाद जिलेके भोकरदन ताल्लुक- जिनमें लोग अपने घराऊ काम करने लगे हैं। कहों का एक ग्राम। यह स्थान दक्षिण-हैदराबाद राज्यके प्रेम, कहीं विवाह और कहीं मृत्यु के समयका दृश्य अन्तर्गत सर सलारजङ्ग के वशको जागीर है चित्रित है। कहीं स्त्रियां तपस्या करती हैं। जङ्गली इसमें कोई ढाई हज़ार आदमी रहते होंगे। सन् भैंसेका भालेसे शिकार करनेवाले सवारों को देख १७२७ ई० में निजामने यहां कुछ किले बनवाये थे। चित्त प्रसन्न हो जाता है। हाथीसे ले बटेर तक- अजिण्ठा पर्वत (इन्ध्यादि) यह गिरिमाला नासिक- सब पशु-पक्षी बनाये गये हैं। सांप, मछली, जहाज जिलेके भनवाड स्थानसे मनमाडतक कोई पचीस किसी चीजकी कोई कमी नहीं। कोसके अन्तरमें ४००० फूट ऊंची फैली है। देखते ही बनते हैं। मट्टीका घड़ा, लोटा, पानी माड़के दक्षिण अशाईसे यह पूर्व की ओर राजपुरको पौनेका प्याला, कटोरी, थाल, सुन्दर सुराही ओर चली गई है। फिर कसारौसे इसको दूसरी और मसाला पीसनेका सिल और लोढ़ा बहुत ही शाखाने निकल अजिण्ठेके समीप खान्देशको औरङ्गा- - घराऊ बरतन मन-