पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०६

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अजलम्बन २०० अजयपाल-अजस्तुन्द केन्दुविल्वग्राम (केंदुली) है। इसी जगह जय अजर्य (सं० लो०) न-जु-यत् सङ्गमने कर्तरि निपा- देवके कृष्णचन्द्र श्रीराधिकाके पैर पकड़े आंखोंसे त्यते ; न जौर्यतीत्यजयम् । अजय सङ्गतम्। पा ॥१॥१०५। आंसू बहाते जाते थे- सङ्गत, अनयाय। सुहबत, साथ । "प्रिय चारुशील मुञ्च मयि मानमनिदानम् ।" अजर्षभ (व पु०) सबसे अच्छा बकरा। ग्रीष्मकालमें अजयनदके बीच जल नहीं रहता। (स. क्लो०) अजलम्ब-ल्युट, अज इब केवल बालू छायापथकी तरह चमका करती है। लम्बत गृह्यते । स्रोतोञ्जन, रसाञ्जन, सुरमा। बालूके ऊपर जगह-जगह छोटे-छोटे झरने अपने अजलोमन्, अजलोमा (सं० पु०) अजस्य लोम इव मनोहर शब्दसे आकाशको मुखरित करते हैं। लोम यस्य, बहुव्री। १ केवाच । २ जिसके शरीर- वर्षाकाल अानेसे दुकूल उमड़ पड़ते हैं, ग्राम भूमि में बकरके से बाल हों। इस शब्दके पर्याय यह हैं- समस्त डूब जाती है। इसीलिये स्थान-स्थानमें ऊंचे गोशिष और शिखौ, केशी, महाइस्खा और अग्रपर्णी । ऊंचे बांध बंधवा दिये गये हैं। अजवल्ली (सं० स्त्री० ) मेढ़ासींगी। अजयपाल (सं० पु०-क्लो०) १ रागविशेष । २ कनौ- अजवस् (सं० पु०) न जवस, जु-असुन्। जकै एक नृपतिका नाम । ३ जमालगोटा। वेगशून्य। अजया (स. स्त्री०) नास्ति जयो मादकत्वेन अजवस्ति (हिं० पु०) अजस्य वस्तिरिव वस्तिर्यस्य । अस्याः । १ विजया। भांग, बूटौ। (हिं०) २ बकरी। ऋषिविशेष। अजय्य (सं० वि०) न-जी-यत् शक्याथै, नञ्-तत्। अजवाइन, अजवायन (हिं० स्त्री०) यवानिका, दुर्जय, जीतने के अयोग्य। यवानी। एकप्रकारका औषध। अजर (स० वि०) नास्ति जराऽस्य । १ पौड़ाशून्य । अजवाह (सं० पु०) अजं वाहयति यद्देशम्, अज- २ वार्धक्यशून्य। ३ भारो, जो पचाया जा न सके । वह-घञ् अधिकरण। देशविशेष । अजरक ( स० क्लो०) अजीर्ण, बदहजमी । अजवोथी (सं० स्त्री०) अजा अजाता नित्यकाल- अजरन्ती (वै० स्त्री०) न जौयंती जरारहितां। व्यापिनी इति वा वीथि नक्षत्राणां श्रेणी, कर्मधा । बुट्टी न होनेवाली, सदा तरुण बनौ रहनेवाली। छायापथ, हाथोकी राह। आकाशके उत्तर-दक्षिण- ( वाज० स० २१४५) व्यापिनी नक्षत्रमाला। अजरयु (वै. वि.) बुड्डा या नष्ट न होनेवाला। अजशृङ्गिका, अजशृङ्गी (सं० स्त्री०) अजस्य मेषस्य अजरस् (वै० वि० ) १ पौड़ाशून्य। २ वाईक्यशून्य। शृङ्गमिव फलं यस्याः, बहुव्रौ० । मेढ़ासींगी। इसके ३ गरिष्ट, मुक़व्वी। पर्याय यह हैं-विषाणी, विषाणिका, चक्रवेणी, सं० स्त्री०) नास्ति जरा अस्याः। घृत अजगन्धिनौ, मौर्वी, नेत्रौषधि, आवर्तिनी, वर्तिका, कुमारी, घोकुार। घृतकुमारी वृक्ष कभी सूखता सर्पदंष्ट्रिका, चक्षुष्या, तिक्तदुग्धा, पुत्रशृङ्गी और नहीं, इसीलिये इसका नाम अजरा पड़ा है। कर्णिका। यह गुणमें कटु और तिक्त होती है। अजराज (सं० पु०) अजोंके राजा या बादशाह । इससे कफ, अर्श, शूल, शोथ, खास, हृद्रोग, विषरोग, ऋग्वेदके एक मन्त्र में लिखा है, कि सुसादको अध्य कास, कुष्ठ, प्रभृति पोड़ायें नष्ट हो जाती हैं। क्षतामें हृत्सुसोंने अजोंको हराया था। अजश्री (सं० स्त्री०) फिटकरी। अजरायल (हिं० वि०) अजर, जो कभी पुराना न अजस (हिं० पु.) अजशः, अख्याति, बदनामी। हो। सदावसन्ती। सदाबहार। अजसी (हिं० वि०) अख्यात, बदनाम। अजराल (हिं० वि०) जो बुड्डा या पुराना न हो। अजस्तुन्द (वै • लो०) नगरविशेष, वेदोक्त एक शहरका शक्तिशाली। ताकतवर। नाम। अजरा । o