पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०१

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अजमायु-अजमेर 3B अजमायु (सं० पु०) बकरेकीसी भिंभिहाहट, यह संवाद केलासमें पहुंचा। फिर क्या था, बकरेका सा शब्द। त्रिशूलीके कोपसे त्रैलोक्य कम्पित होने लगा। अजमार, अजमारक (सं० पु०) अज-मृ-णिच-अण, पातालमें नाग भयभीत हुए, शून्यमें यक्षरक्ष घबराये अजान् मारयति ; उप-तत् । कुर्वादिभ्यो ण्यः । पा ४।१।१५१ । और सारा जगत् उथल-पथल हो गया। शिव कसाई, जो बकरेको मार उसका मांस बेचे; मांस विरूपाक्ष प्रभृति महावीरों को लेकर दक्षालय गये विक्रयी, गोश्त बेचनेवाला। पागलने जिस पापमुखसे उनको निन्दा की थी, अजमीढ़ (सं० पु०) अजमीढ़ो यज्ञे सिक्तो यत्र । उसको उन्होंने काटकर दूर फेंक दिया। अवशेषमें १ देशविशेष, अजमेर। २ राजा युधिष्ठिर । ३ महोत्र दक्षकी पत्नीने आकर दामादसे अनेक स्तवस्तुति के एक पुत्र। अजमेर देखो। की। इसीसे दक्षको पुनार प्राण वापस मिला, अजमुख (सं० पु०) अजस्य छागलस्य मुखमिव मुखं किन्तु जन्मको तरह इन्हें छागलका मुण्ड पहनकर यस्य। दक्ष प्रजापति, सतीके पिता, शिवके श्वशुर । रहना पड़ा। दक्षने नारदको बातमें पड़कर शिवको कन्यादान कितने ही लोग अनुमान करते हैं, कि हरि- दिया था, किन्तु कुटुम्बिता भली भांति बराबरमें न हारके निकटमें कनखल और हरिको-पैढ़ी इन्हीं सब हुई। दक्ष महाराज चक्रवर्ती थे ; इनका कितना स्थानोंको लेकर दक्षराजको राजधानी सुशोभित थी। विभव और कितना सुखैखयं रहा। किन्तु इनके अज़मूदा, आज़मूदा (फा० वि०) परीक्षित, जांचा दामाद श्मशान-वासौ भङ्गड़ भोलानाथ थे, जो शिरमें हुआ। भस्म लगाते और भाँग खाते रहे। देवताओंको अजमेर, अजमेरु–राजपूतानेके अन्तर्गत अजमेर- सभा लगनेपर दामादको ज्वालासे दक्षराजको मरवाड़का एक प्रधान नगर। कोई कोई कहते हैं, अपने शिरपर हाथ रखकर बैठना पड़ता था। अन्तमें कि सूर्यवंशीय अजमीढ़ राजाने पहले इस नगरको इन्होंने चिन्ताकर शिवका अपमान करनेके लिये एक निर्माण कराया था। किसौके मतसे महाभारतके यज्ञको आरम्भ किया। त्रिभुवनको निमन्त्रणका पत्र वनपर्वमें उक्त विदुर राजाका यह राज्य है, कालक्रम- भेजा गया। केवल प्राणको नन्दिनी सती बाकी रह से ध्वंस हो गया है। पौछ चौहान राजाने इसे गई; फिर सतौके सम्पर्कसे जिनके साथमें सम्पर्क पुनार निर्माण कराया। था, वह शिव भो निमन्त्रणका पत्र पानेसे छूट गये। अजमेर पहले चौहानवंशीय राजपूतोंके अधीन किन्तु जब बापके घरमें धूमधाम होतो, तब स्त्रीका रहा। इस वंशके अजय राजाने पहले नाग- मन निमन्त्रण न पानेपर भी चुलबुलाया करता है। पर्वतमें एक दुर्गको निर्माण करानेके लिये चेष्टा सती विना आह्वान ही पित्रालयमें यज्ञ देखनेको जा को थो, किन्तु उनका यत्न निष्फल हो गया। इसके पहुंची। दक्षने सतीको देख जो मनमें आया, बाद उन्होंने तारागढ़ पहाड़में गढ़-बितली नामके वही कहकर सभाके मध्य शिवको निन्दा की। शिव एक दुर्गको निर्माण कराया। सन् ११०. ई० में प्रेमभिखारिणी सतीके हृदयमें वह कटुवाक्य इन्द्रकोट नामक उपत्यकापर अजमेर नगर स्थापित वाण जैसे चुभ गये। उन्होंने यह कहकर प्राणत्याग किया गया। गुजरातके सोमनाथवाले मन्दिरको किया,-"आप पिता हैं, मैं कन्या होकर अधिक क्या लूटने जाते समय महमूद अजमेरके भीतरसे कहंगी। किन्तु जिस मुखसे आपने शिवको निन्दा निकल गये थे। राहमें यहांके अनेक देवालय को है, वह मुख आप देखेंगे, कि बकरेकासा हो और देवमूर्तियां उन्होंने विनष्ट कर डाली। अजयके जायेगा।" बोलते-बोलते सतीमें फिर सती न रहीं, पुत्रका नाम अना या अर्णोराज था, जिहोंने अनासागर उन्होंने सबके सम्मुख यज्ञस्थल में प्राण छोड़ दिया। निर्माण कराया।