पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/२०

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राजि। अंशुमन असुवाना अंशुमन (सं० पु० ) ज्योतिषोक्त ग्रहयुद्धभेद, इस ग्रह हुआ, इसके बाद । । अातोऽनुपसर्गे कः । पा ३।२।३ । युद्धमें राजाओंसे युद्ध, रोग और दुर्भिक्षादि होते हैं। आतो लोपः। उपसर्गहीन कम के उपपदके बाद यहयुद्ध देखी। आकारान्त धातुके उत्तर क प्रत्यय होता और अंशुमान् (सं० पु०) १ सूर्य । २ सूर्यवंशीय एक आकारका लोप हो जाता है। राजा, मगरके नातो और असमञ्जसके पुत्र । असत्रकोश (मंत्रि०) धन और कवच कोशस्थानी सगर और गङ्गा देखी। रूप जहा हो। "अमत्र का मिजता नपाग" ( काक १०।१०१७) अंशुमाला ( सं० स्त्री०) अंशोः माला ६-तत् । किरण 'असवकोश अमवाणि धनंषि कपचानि न कास्यानोवानि यस्मिन् ने' (माधण) अंशुमाली (सं० पु०) अशु-माला-इन् अस्त्यर्थे । १ सूर्य । अंसफलक (सं० क्ली०) अमयोः फलक ६ तत्। स्कन्धास्थि. २ बारहको संख्या। काँधका हाड़। अम-फलकै पृष्ठोपरि पृष्ठवंशम्योभयतः अशुल (सं० पु०) अशु-ला-क। अशें लातीति । स्कन्धसम्बन्धे। अस्थिमर्माणो अर्धाङ्गले वैकल्यकर, तत्र १ चाणक्य पण्डित। २ बुद्धिमान् मनुष्य । ३ मुनि। वाहोः शून्यता शोषश्च । पाठक ऊपर मेरुदण्डकी अशुहस्त (सं० पु०) अंशुहस्त इव यस्य । बहुव्री । सूर्य । दोनो ओर कांधकै जोड़की जगह जो हडडीवाला किरणरूप हाथद्वारा रसको खींचते है, इसके लिये स्थान होता है, उसे असफलक कहते हैं। उमपर सूर्यका नाम अंशुहस्त हुआ। चोट लगनेसे वाहुस्तम्भ हो जाता है । अंखादि-अशु, जन, राजन्, उष्ट्र, रोटक, अजिर, आर्द्रा, असभार ( सं० पु०) अम धृतः भारः। शाक-तत् । श्रवणा, कृत्तिका, अई, पुर, यही सब अशादि हैं।। असे भार अलुक् ममाम । कांधका बोझ ।। शाक- प्रतेरंशादयस्तत्पुरुष। पा ६।२।१८३ । यह शब्द तत्- पार्थिवादीनां मिय उत्तरपटलापम्यापमंग्व्यानम् । पुरुष समासमें अन्तोदात्त होता है। (कात्यायन ) शाकपार्थिवादि ममाममें उत्तरपदका अंस ( अन्स अदन्त चु०प०)। कम्मणि यत् अस्यः । लोप होता है। शाकप्रिय पार्थिव, यहां प्रिय शब्दका असे स्कन्धे भवः यत् अस्य। अंश देखी। लोप करके शाकपार्थिव रूपमिति हुई। अंस (सं० पु.) असौ स्कन्धौ, तो स्नायुमणी इस लिये पहिले जो बहुव्राहि ममाम हुआ अर्धाङ्गलो वैकल्यकरौ। तत्र वाहुस्तम्भः। स्कन्ध । उमौका यह उत्तरपद मालूम होता है ।। अनुगुत्तर- कांधा। जिसमें चोट लगनेसे बाहुस्तम्भ हो जाता है। पदे। पा ६।३।१। कभी-कभी ममाम होनम उत्तर- अंसकूट (सं० पु.) अंसः कूट इव उन्नतः। सांड़के पदके पर विभक्तिका लोप नहीं होता। कंधोंके बीचका ऊपर उठा हुआ भाग। कूबड़ । कुब। असभारिक, असभारिक (मं० वि०) अमभारंण हरति । जिस तरह बकरेका आख्ता करनेसे, सींग नहीं अंमभार-छन् । । भस्वादिभ्यः छन्। पा ४।४।१६ । बढ़ता और शरीरमें गन्ध नहीं आती,उसी तरह सांड़का जो कांधेपर भार ले जाये। ( स्त्री. ) अंमभारिको ।। कोष काट लेनेपर उसका भी कूबड़ नहीं बढ़ता। षिदगौरादिभ्यश्च । पाः ४।१।४१। पकार इत् हानेवाने अंसत्र (सं० लो०) अंस-वै-क। असं स्कन्धं वायते। स्कंध प्रत्ययके निष्पन्न शब्दके स्त्री-लिङ्गम और गारादि शब्दके रक्षाका कवचविशेष । *। आदेच उपदेशेऽशिति । उत्तर ङीष् प्रत्यय होता है। पा ६।१।४५। एजन्तो यो धातुरुपदेशे, तस्याकारादेशो अंसल ( सं० क्लो०) अस-लच् अस्त्यर्थ । । वत्सांसाभ्यां भवति, शिति तु प्रत्यये न भवति। उपदेश अर्थमें जो काम। पा ५२।८। बलवान् धातु अजन्त हैं, उनके पर आकार-आदेश होता है। असुआ, असुवा (हि. पु०) आँसू । परन्तु यदि प्रत्ययका शकार इत् हो, तो नहीं होता। अँसुवाना (हि• क्रि०) अश्रुपूर्ण होना। यहां वै धातुके ऐकार स्थानमें आकार होनेसे वा आना। आँसूसे भर जाना। डबडबा