पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१८७

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तअज्जु ब, हैरत। १८० अचमन-अचलवसन्त अचमन (हिं० पु०) १ आचमन। २ मुंह धोना। | अचलकन्या (सं० स्त्री० ) अचलस्य हिमालयस्यः ३ पौना। कन्या, ६-तत्। पार्वती, दक्षयज्ञमें देहको त्याग अचमौन (हिं० पु०) आश्चर्य, तअज्जु ब । कर इन्होंने मेनकाके गर्भ और हिमालयके औरससे अचम्भव (हिं. पु०) आश्चर्य, तअज्जु ब जन्मग्रहण किया था। अचम्भा (हिं० पु०) आश्चर्य, हैरत । अचलकौला (सं० स्त्री०) अचलाः कोला इव यस्याः । अचम्भित (हिं० वि०) विस्मित, मुतअज्जिब, पृथिवो, जमीन। भौचका। अचलजा (सं० स्त्री०) अचल-जन-ड, ५-तत्। अच- अचम्भो, अचम्भी (हिं० पु०) आश्चर्य, विस्मय ; लात् जायते। १ पर्वतजाता, पार्वती। २ पर्वतजाता लतादि, पहाड़से पेदा बेलें वगैरह। अचर (सं० त्रि.) न चर-अच्, नञ्-तत्। स्थिर, अचलत्विष् (सं० पु० ) अचला स्थिरा विट कान्ति- ठहरा हुआ ; चलनशून्य, बिना चालका। ज्योतिष- यस्य, बहुव्री०। १ कोकिल, कोयल । २ स्थिर कान्ति- के मतसे मेष, कर्कट, तुला और मकर-यह चर युक्त पदार्थ, वह चीज़ जिसकी चमक टिकाऊ हो। और वृष, सिंह, वृश्चिक और कुम्भ-यह अचर लग्न अचलदेव-महारुद्रपद्दति-रचयिता। हैं। मिथुन, कन्या, धनुः और मौनको चराचर अचलद्दिष् (सं० पु०) अचलेभ्यः पर्व तेभ्यः दृष्टि, अर्थात् द्विस्वभाव लग्न कहते हैं। अचल-द्दिष्-क्विप ; ४-तत्। इन्द्र। इन्होंने पर्वतीका अचरज (हिं० पु०) आश्चर्य, तअज्जु ब। पक्षच्छेदन किया था। अचरम (सं० त्रि०) न चरमः, नञ्-तत्। शेष नहीं, अचलति (सं० स्त्री०) छन्दोविशेष। 'दिगणित-वमु- मध्य । अखोर नहीं, यानी दरमियान्। लघुभिरचलतिरिह।' अर्थात् यह छन्द सोलह वर्णसे ग्रथित अचण्ड विलतान-मन्द्राज-प्रान्तीय तिनेवेल्ली जिलेको होता है, जिसके सकल हो वर्ण लघु रहते हैं । यथा,- श्रीविल्लीपुत्र तहसौलका कसबा। इसमें कोई दो भजह सकल सियपति जु चहहु मुख । तीन हजार मनुष्य रहते और पांच-छः सौके लगभग अकथ कहहु जनि मुनर ! विमल मुख ॥ सम्पा० घर होंगे। काया-कूदी नदीके वाम तटपर यह अचलनारी (सं० स्त्री० ) अचलस्य हिमाचलस्य नारी, अवस्थित है। ६-तत्। मेनका, हिमालयको स्त्री। अचरित (सं० त्रि०) १ अप्रचलित। चालसे बाहर। अचलपति (सं० पु०) अचलानां पतिः, ६- ६-तत्। २ न खाया गया। ३ जिसे किसीने स्पर्श न किया पातेर्डति । उण् ४।५७ । गिरिराज, हिमालय। हो। नूतन, नवीन। अचलभ्राट (सं० पु०) जैनियोंके एकादश गणाधिप। अचल (सं० पु०) न चलः, नञ्तत्। १ पर्वत, अचलमित्र-सिद्धान्तसंग्रह नामक संस्कृत ज्योतिर्ग्रन्थ- पहाड़। २ वृक्ष, पेड़। ३ खूटा-खूटो। (वि.) ४ न चलनेवाला। ५ बना रहनेवाला। अचलराज (सं० पु०) अचलानां राजा, अच् समासे अचला वसुधायां स्वादचलः शैलकौलयोः । ( मेदिनी) षष्ठौ। राजाहःसखिभ्यष्टच् । पा ५।४।११। हिमालय, जो सब अचल-सूक्तिकर्णामृतमें लिखे गए एक प्राचीन कवि । पहाड़ोंका राजा है। २ आह्निकदीपक और निर्णयदीपक नामक स्मार्तग्रन्थ- अचलवसन्त-उड़ीसा-कटकके अस्मिया पहाड़की रचयिता। ३ वत्सराजके पुत्र, जो शाङ्खायनानिकके चोटी। इसके नीचे माझीपुरका भग्नावशेष पड़ा है, रचयिता थे। जहां पुराकालके हिन्दू आधिपत्य करते थे। अब अचलउपाध्याय-वाक्यवाद नामक संस्कृत वैयाकरण केवल स्वर्णहार, प्रस्तरप्राङ्गण और भङ्गभित्तिके ही अंग्य-रचयिता। चिह्न देख पड़ते हैं। (हेम० ३२) रचयिता।