पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१५२

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- मिले। १४६ अङ्कर भो .अधिक पत्ते रहते हैं। डण्ठलको पतलो ओर वीज सुखा कर रखनेसे उसके भीतर अङ्कुर नहीं जड़ लगती और मोटी ओर वृक्षका तना, लता और जमता। इस अवस्थामें वृक्षका जीवन ठीक जड़ पदार्थ- गुल्मादिका डण्ठल होता है ; वौजसे अङ्गुर निकल के समान (Dormant state) होता है। धान नेको अङ्गुर फूटना, अंखुआ निकलना, अंखुआना इत्यादि कितने ही शस्य एक वर्षमें ही पुराने हो जाते आदि कहते हैं। वीजमें किस तरह अङ्गुर निकलता हैं, बोनेपर किल्ला भलो भांति नहीं फूटता। दो सौ और पड़ों में जीवन कहांसे आता है-इसका पूरा वर्षका पुराना गेह खाया जा सकता है, परन्तु सात विवरण जौवगर्भाधान (Fertilization) शब्दमें देखो। वर्षसे अधिक पुराना होने पर उस गेहंसे वृक्ष नहीं वृक्षोंका जीवन अङ्गुर में हो रहता है। उपयुक्त लगता । इमली सेम, मटर प्रभृति जिन वृक्षों में फलियां स्थानमें प्रयोजनके अनुसार ताप और जल, वायु तथा लगती हैं (Leguminous plants), साठ वर्ष बाद धूप पहुंचनेसे ही अङ्गुर धीरे-धीरे बढ़ने लगता है। बोनेपर भी उनके वोजसे अङ्गुर उत्पन्न होता है। राई उसके बढ़ते हो किल्ला फूटता है । अङ्गुर फूटने के लिये एक सौ चालीस वर्ष तक रखनेसे भो नष्ट नहीं होतो, ईश्वरने कैसे सामान कर रखे हैं। पहले मट्टीके खेतमें बोनेसे उसमें अच्छा अङ्गुर फूटता है। तीन सौ रसमें भोजकर वीजका छिलका कोमल होता, इधर वर्षके पुरानो भुट्टे से अङ्गुर निकल सकता है। खुष्ट भौतरका सूतसा अंश भी कुछ फूल उठता ; उस जन्मके तीन सौ वर्ष बाद कुस्तुन्तुनियामें जो सब समय सहजमें हो झिल्ली फट जाती और अंखुआ समाधि दिये गये थे, उनमें कितने ही प्रकारके वीज निकल पड़ता है। पहले अङ्गुरसे जड़ निकलती कितने ही युग बीत जाने पर भो वह वीज और मट्टीको भेद नीचे जाती, इसके बाद डण्ठल नष्ट न हुए, बोये जाने पर उनसे अङ्गुर फूटा। इन और अंखुआ बाहर निकलता है। इसोको हम लोग सब बातों पर ध्यान देनेसे यह निश्चित हुआ, कि अङ्गुरोत्पत्ति कहते हैं। उद्भिद्का वौज कितने दिनमें नष्ट हो जाता और फिर कृषकोंको यह सब बात उससे वृक्ष नहीं होता। कितनों ही को विखास है, कि समझ लेना चाहिये, कि पुराने वीजके पेड़में पत्ते कम होते, परन्तु उनमें फल वीजसे जब तक वृक्ष नहीं म लगते हैं। उत्पन्न होता, तब तक अङ्गुर- नये अङ्गुरके प्राणधारणका उपाय ठोक जन्तुओंके के जीवनको किस तरह रक्षा समान है। गर्भ में जिस समय सन्तान रहती है, उस होती, कितने दिनमें वौज समय वह जड़वत् मांसपिण्डके अतिरिक्त और कुछ पुराना होकर नष्ट हो जाता भी नहीं। सिवा इसके गर्भमें दूधसे भरा स्तन नहीं, और उससे फिर वृक्ष क्यों यहां नये अडुरकी एक जिससे उदरपोषण हो सके। फिर उसे क्या खानेको नहीं होता। अण्ड पर झिल्लो प्रतिमूर्ति दी गई है। (३) मिलता है ? सब जानते हैं, कि पराव के बाद फूल जड़ मट्टीके भीतर चली गई रहती है, इससे वह जल्द नष्ट है। (आ) डण्ठल और तना (Placenta) झरता है। इसके बाद लड़केका नारा नहीं होता । चौटौ आदि कौड़े फैल उठा है। (ब-क)दोनो चौरना पड़ता है। यह फूल और नारा हो लड़कोंको भी इच्छा करनेसे उसे खा पत्ते अडुरमें लगे हैं। जीवनरक्षाका प्रधान उपाय है। जिस तरह नालो नहीं सकते। वौजके ऊपर भौ छिलका रहता बनाकर एक तालावका जल दूसरी जगह पहुंचाया है, इसीसे भौतरका पदार्थ सहसा नष्ट नहीं होता, जाता है, फूल और नारका काम भी ठीक उसो उसे जल्द कौड़े भी काट नहीं सकते। किसी-किसी प्रकारका है। प्रसूतिके शरीरका सत्त्व नाड़ी वीजमें छिलका नहीं रहता। उसको रक्षाका द्वारा सन्तानके शरीरमें आता है। उसीसे वह हृष्ट- विधाताने दूसरा उपाय कर दिया है। वौज देखो। -पुष्ट होती है। इससे प्रसवके बाद शिशुका शरीर ला ।