पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१३१

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2 यूप। चीज। २ अग्निष्टोमयाजिन्–अग्निसार १२५ २ अग्निष्टोममें गाये जानेवाले सामवेदके मन्त्र । जायफल, जावित्री, गुर्चका बकला, तेजपत्र, इलायची, ३ सत्रपञ्चदशरात्रका पहिला दिन। ४ सोमलता। इमलीके बकलेकी भस्म , आपाङ्ग-भस्म, विष, ५ छठे मनुके पुत्रका नाम । पारद, गन्धक, लौह, अभरक, वङ्ग, लवङ्ग और हर अग्निष्टोमयाजिन् (सं० पु०) वह पुरुष जिसने अग्नि एक-एक भाग, अम्लवेतस २ भाग और शङ्खभस्म ४ ष्टोम कर लिया हो। भाग एकमें मिला पञ्चकोल, चितामूल और आपाङ्गके अग्निष्टोमसाम (सं० ली.) अग्निष्टोमयज्ञके शेषमें काढ़े और अम्ललोनौके रसमें तीन बार और नीबूके विहित सामगान-विशेष। सामवेदके वह मन्त्र जो रसमें इक्कीस बार भावना दे, फिर वेरके बराबर अग्निष्टोम यज्ञके अन्तमें गाये जाते हैं। गोलियां बना ले। अनुपान अवस्थाभेदसे मौरठौका अग्निष्ठ (सं० पु०) अग्नौ तिष्ठतीति, अग्नि-स्था-क । अर्क, आमरूलका रस और कपूरका पानी है। जो अग्निके ऊपर रहे, भर्जनपात्र। हण्डी, बटलोही, इससे अजीर्ण और क्षुधामान्य रोग नष्ट हो जाता है। तवा, कड़ाही इत्यादि। २ अश्वमेधयज्ञके इक्कीस यूप- अग्निसम्भव (स० पु०) अग्नि-सम् भू-अच् । १ अरण्य- मेंसे सबको अपेक्षा अग्निके समीप रहनेवाला ग्यारहवां कुसुम्भ, जङ्गली केसर। (लो) २ स्वर्ण, सोना, ज़र। (त्रि०) ३ अग्निसे उत्पन्न वस्तु, आगसे पैदा हुई अग्निष्वात्त, अग्निखात्त (सं० त्रि०) चिताको अग्निसे परीक्षित । यज्ञ न करने के कारण जिसको परीक्षा अग्निसहाय (स'० पु०) अग्नि-सह-अय-अच्, अग्निना चिताग्निसे की गई हो। सह अयते, ३-तत्। १ वायु, हवा। २ धूम, धुआं, अग्निष्वात्ता (सं० पु०) .१ पिगणका भेद। दूद। ३ वनकपोत, जङ्गली कबूतर। पृथ्वीमें जिसने यज्ञाग्निको अश्रद्धा की। ३ अग्नि- अग्निसाक्षिक (सं० त्रि०) अग्निः साक्षी यत्र, साक्षिन्- विद्याविद् । कन् । अग्निको साक्षी बना सम्पन्न किया जानेवाला। अग्निसंस्कार (सं० पु०) ७-३-तत्। अग्नि-सं-व-घञ् आगको गवाही कर होनेवाला। भावे। भावे । पा ३।३।१८। १ विधिपूर्वक अग्निहारा संस्कार। | अग्निसाक्षिकमयाद (सं० त्रि०) वह मनुष्य जो २शवदाह। अग्निको साक्षिस्वरूप मानकर दाम्पत्य-धर्म अक्षुम अग्निसंस्पशी (सं० स्त्री०) पर्पटौ नामका सुगन्ध द्रव्य । और अचल रखने की प्रतिज्ञा करे। अग्निसङ्काश (स. त्रि०) अग्नि-सं-काश-अच् । १ अग्नि- अग्निसात् (सं० वि०) विभाषा सातिका नये । पा ५।४।५२ । इति तुल्य तेजस्क, अग्नितुल्य दीप्तिमान्, आग जैसे रङ्गवाला, विकल्पे साति । अग्नीभूत, आग हुआ। जो समस्त आगकी तरह चमकीला । २ अग्नितुल्य पराक्रमशाली, अग्नि हो गया और हुआ जाता हो, जो बिल- आगको बराबर ताकत रखनेवाला । कुल आग बन गया और बना जाता हो। जला-भुना। अग्निसखा (सं० पु०) अग्निके मित्र, वायु, हवा । भस्म किया हुआ। अग्निसन्दीपन (सं० लो०) अग्नेः सन्दीपनं । जिस | अग्निसाद (सं० पु०) मन्दाग्नि, भूख न लगना, हज़म औषधक सेवनसे जठरानलको वृद्धि हो, हाज़मेको न होना। बढ़ानेवाली दवा। क्षुधा-वृद्धिकर औषध, जिस दवाके अग्निसाध्य (सं० त्रि०) जो अग्निमें जलाया जा सके, खानेसे भूख लगे। जिसे आग जला सके । अग्निदाहसाध्य । अग्निसन्दीपनरस-क्षुधामान्यरोगका औषध, भूख न अग्निसार (सं० क्लो०) अग्नी सारो यस्य, बहुव्री०। १ लगनेकी दवा। पौपल, पिपरामूल, चई, चितामूल, रसाञ्जन, आखमें लगानेको एक दवा । सू-घञ्, सारः, सोंठ, मिर्च, पञ्चलवण, शोरा, सज्जौखार, सुहागा, स स्थिरी। पा ३।३।१०। अग्नेः सारं ६-तत्। अग्निका जीरा, काला-जीरा, अजवायन, वच, मौरठी, हींग, सार, आगका निचोड़। ३२