पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/११२

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अग्नि %3; ? अधिक स्थानमें केवल अग्निका स्तव किया गया है। २ मारुत, पुंसवनमें ३ चन्द्रमस्, शुङ्गाकर्ममें ४ शोभन, प्राचीनकालमें पृथिवीके प्रायः सभी देशों में अग्निदेवको सौमन्तमें ५ मङ्गल, ज्ञातिकर्ममें ६ प्रगल्भ, नामकरण- पूजा होती थो। आजकल भारतवर्षके केवल हिन्दू में ७ पार्थिव, अन्नप्राशनमें ८ शुचि, चूड़ाकरणमें । और पारसी ही इनकी अर्चना करते हैं । ईरानमें सत्य, व्रतमें १० समुद्भव, गोदान संस्कारम ११ सूर्य, अग्निपूजा प्राय उठ गई है। स्वाहा अग्निकी स्त्री हैं। समावर्तनमें १२ अग्नि, साग्निककै वेदको समापन- पुराने रोमक इनको वेष्टा (Vesta) नामसे पूजा क्रिया में १३ वैश्वानर, विवाहमें १४ योजक, विवाह- करते, किन्तु मन्दिरमें इनको कोई प्रतिमूर्ति न रखते से पीछे चतुर्थी-होममें १५ शिखो, धृति होमादिमें १६ अग्नि, प्रायश्चित्तात्मक महाव्याहृति होममें १७ "No image Vesta's semblance can express, विधु, वृषोत्सर्ग-गृहप्रतिष्ठादि कर्ममें १८ साहस, Fire is too snbtle to admit of dress." (Ovid) लक्षहोममें १८ वह्नि, कोटिहोममें २० हुताशन, यानी कोई भी प्रतिमूर्ति वेष्टाके रूपको प्रकाश नहीं पूर्णाहुतिमें २१ मृड़, शान्तिकर्ममें २२ वरद, पौष्टिक- कर सकती। अग्नि अति तेजःपुञ्ज हैं, इन्हें फिर कौन में २३ वलद, अभिचारमें २४ क्रोध, वशीकरणमें वेशभूषासे परिशोभित कर सकता है ? २५ शमन, वरदानमें २६ अतिदूषक, कोष्ठमें २७ पावक, पावमान और शुचि इनके पुत्र हैं। तैत्ति- जठर और अमृतभक्षणमें २८ क्रव्याद । रीय संहितामें लिखा है, कि प्रजापतिने अग्निको सृष्टि संस्कृत अग्नि और लेटिन इग्निम् (Iguis) इन कर देवताओंको उन्हें दूतस्वरूप दे दिया। उभय शब्दोंमें विलक्षण सादृश्य देख पड़ता है। यूनान यह कई एक अग्निके नामवाले पर्याय हैं देशमें प्राचीन कालको एक कहानी है, कि प्रमिथियस् वैश्वानर, २ वह्नि, ३ वौतिहोत्र, ४ धनञ्जय, ५ नामके कोई व्यक्ति विलक्षण ज्ञानी थे। पहिले वह कृपौटयोनि, ६ ज्वलन, ७ जातवेदस्, ८ तनूनपात्, मट्टीको पुतलियां बना और पोछ स्वर्गसे अग्नि लाकर ८ तनूनपा, १० वहिःशुष्मन्, ११ वर्हिस् १२ शुष्मन्, उसके द्वारा उन सबमें प्राणप्रतिष्ठा कर सकते थे। १३ कृष्णवमन्, १४ शोचिष्क श, १५ उषधंध, आर्य लोग अरणि मथकर अग्न्य त्पादन करते, १६ आश्रयाश, १७ बृहदानु, १८ कृशानु, १८ इसीलिये संस्कृत प्रमन्थ शब्दके साथ यूनानी प्रमिथियस् पावक, २० अनल, २१ रोहिताश्व, २२ वायुसखा, शब्दका सम्पूर्ण सादृश्य है। २३ वायुसख, २४ शिखावत्, २५ शिखिन्, २६ कि प्राचीन यूनान और इटलौके लोगोंने आर्यों के आशुशुक्षणि, २७ हिरण्यरेतस्, २८ हुतभुक्. २८ निकट अग्न्यु त्पादनका कौशल सीखा और उन्हींसे हव्यभुक्, ३० दहन, ३१ हव्यवाहन, ३२ सप्तार्चिस्, अग्निका नाम भी सुन पाया था। ३३ दमुनस्, ३४ दमूनस्, ३५ शुक्र, ३६ चित्रभानु, आदिम अवस्थामें मनुष्य अग्न्युत्पादन करना ३७ विभावसु, ३८ शुचि, ३८ अपित्त, ४० वषा- था। प्रथम मनुष्यको विद्युत् और दावानल ४२ मपिल, ४३ पिङ्गल, देख कर यह ज्ञान उत्पन्न हुआ, कि अग्नि क्या है। ४४ अरणि, ४५ अगिर, ४६ पाचन, ४७ विश्वप्सस्, आल्वारो डौ सावेडरा (Alvare de Suavadara) ४८ छागवाहन, ४८ कृष्णाचिस्, ५० जहूवार, ५१ नामक स्पेन-देशीय एक परिव्राजकने लिखा है, कि उदार्चिस्, ५२ भास्कर, ५३ वसु, ५४ शुष्म, ५५ प्रशान्त महासागरके मध्यस्थित लोस्जाडिन् (Leos हिमाराति, ५६ तमोनुत्, ५७ सुशिख, ५८ सप्तजिह्व Jardines) दीपके लोगोंने पहले कभी आग देखी ५८ अपपारिक, ६० सर्व देवमुख, ६१ अग्नि । न थो। समुद्रके कूलमें जहाज लगनेसे होपवामियोंने कर्म-विशेषमें अग्निके पृथक्-पृथक् नाम निर्दिष्ट आकर जहाजियोंके पास पहिले आग देखो। हैं-नवग्रहके प्रवेशादि कर्ममें १ पावक, गर्भाधानमें आंखके सामने यह भयङ्कर व्यापार देख सब अपने- मालूम होता है, जानता कपि, ४१ जुहूवाल,