पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष भाग 1.djvu/१०३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अगम्यागमन-अगरवाल ६७ जाते। अगम्यागमन (स० पु०) सम्भोग न करने योग्य स्त्रौ से | अगरबत्ती (हिं० स्त्री०) धूपको बत्ती जिसमें अगर या सहवास। अगरु तथा कुछ और सुगन्धि वस्तु दो जाती हैं। अगर (हि. पु०) वृक्षविशेष, एक पेड़। अगरु देखो । अगरवानौ-भागलपुर जिले में सुपौल तहसीलकी एक (फ़ा० अव्य०) यदि, जो। क्षुद्र जाति । इस जातिके लोग दूसरी जगह नहीं देखे अगर–१ बम्बई प्रसिडेन्सोकै रेवाकण्ठ जिलेके अन्त वह कहते हैं, कि उनके पूर्वपुरुष नेपालसे गत एक क्षुद्र राज्य । इसका विस्तार १७ वगमौल है। वहां गये थे। वह लकड़ी चौर जीविकाको उपार्जन अगरके राजा बड़ोदेके गायकवाड़को वार्षिक कर करते और खैर वृक्ष के निर्याससे कत्था बनाते हैं। २ ग्वालियर राज्यका एक परगना। अगरवाल, अगरवाला-उत्तर-भारतके प्रसिद्ध धनौ इसके प्रधान नगरका नाम भी अगर है। यह नगर वणिक् (वैश्य) सम्पदायको शाखा-विशेष। इस नामकरण- एक इदके ऊपर अवस्थित है। यहां एक प्रस्तरमय के उत्पत्ति-विषयमें विभिन्न मत प्रचलित हैं। कोई. दुर्ग बना है। कहते हैं, कि इस नगरके नामसे ही कोई कहा करते, कि यह अगर या अगरका व्यव- अगरवाल नामको उत्पत्ति है। अगरवाल देखो। साय करनेवाले बताये जाकर अगरवाल नामसे अभि- अगर-अतर-एक प्रकारका गन्धद्रव्य या इत्र। आसाम हित हुए हैं। फिर दूसरौ यह बात प्रचलित है, कि सिलहटके अन्तर्गत पथरिया नामक स्थानके पहाड़ी पुराकालमें कश्मौरके बीच बहुतसे अग्निहोत्रो ब्राह्मण लोग पिताकरा या अगर (Aquilaria agallocha) वास करते, और एक श्रेणौके वैश्य उनके यज्ञार्थ नामक वृक्षका निर्यास खींच यह इत्र बनाते हैं। अरब, अगर या अगरु काष्ठ ले जाते थे। महावीर सिकन्दरने तुक स्थान प्रभृति स्थानोंको यह भेजा जाता है। भारतवर्षपर आक्रमण कर इन सब ब्राह्मण-अग्निहो- अगरई (हिं० वि०) कालापन लिये हुए सुनहला- त्रियोंके यज्ञकुण्ड ध्वस किये, यागयज्ञ बन्द हो गया। इसौस यज्ञके लिये काष्ठ संग्रह करनेवाले वैश्यों- अगरखेड़-विजयपुरके अन्तर्गत एक बड़ा गांव। यह को अन्य उपायसे जीविका निर्वाह करनेके लिये ग्राम भीमा नदौके तौरमें अवस्थित है। ग्रामको नाना स्थानों में जाना पड़ा। उनमें अधिकांश हौआगरी- दक्षिण ओर शङ्करलिङ्ग देवका एक प्राचीन मन्दिर के पास आ कर बसे थे। इससे यह भविष्यत्में अगर- विद्यमान है। सम्भवतः सन् १८०० ई में यह खेत वाल नामसे परिचित हुए। कितनों ही को ऐसा विश्वास मर्मरमय लिङ्गमूर्ति स्थापित हुई थी। किन्तु मन्दिर है, कि पञ्जाब-हिसार ज़िलेके अन्तर्गत अगरोहा सुप्राचीन है। पहिले इस देवालयमें जो विग्रह था, नामक प्राचीन नगरके नामसे अगरवाल नामको उत्- उसके स्थानान्तरित होनेसे लिङ्गमूर्ति प्रतिष्ठित हुई। पत्ति हुई है। इस अगरोहा नगरमें राजा अग्रसेन या इसके सिवा इस ग्राममें हेमाड़पन्थियोंका भी एक अगर-सन द्वारा लाखों वैश्य प्रतिष्ठित किये गये थे। यही मन्दिर है । सन् १२५० ई०का उत्कौर्ण एक शिलालेख पौछे अगरवाल नामसे प्रसिद्ध हुए। शहाबुद्दीन गोरी- इस मन्दिरके गात्रमें संलग्न है। के सन् ११८५ ई० में अगरोहा नगर लूटनेपर अगरवाल अगरचे (फ़ा. अव्य०) गोकि, यद्यपि । हिन्दुस्थानके नाना स्थानों में भागकर जा पहुंचे। यही अगरतला-पार्वत्य त्रिपुराको राजधानी। कुमिल्लेसे मत कितना हो समाचौन मालूम होता है। कारण, ३८ मोल उत्तर, अक्ष २३ ५० उ. और युक्तप्रदेशके सभी अगरवाल अगरोहके सर्पराज गुग- द्रा' ८१. २३५०“पू० के बीच में अवस्थित है। यहां पौरका पूजा करते हैं। फिर ऐसा भी मत प्रच- राजप्रासाद, अस्पताल, जेल प्रभृति बने हैं । विपुरा देखो। लित है, कि उज्जैनसे कोई बौस कोस दूर अवस्थित अगरना (हि. क्रि०) .१ आगे बढ़ना । २ भागना। ग्वालियर राज्यके अन्तर्गत अगर-नगरके नामपर अगरपार (हिं० पु०) क्षत्रियोंका एक विभाग। अगरवाल नाम रखा गया है। २५ सन्दलो।