७४ भवभूति प्रबन्ध, प्रौढ़मनोरमा, सरवटे कण्ठागरण और साहित्य-! दासत्यमें नस्वलि पल थी। अघोरघण्ट और दर्पण आदि ग्रन्थों में भवभूतिका उल्ले, परन्तु उससे कपाइकुण्डला इस पिशाच प्रकृतिके चरम निदर्शन हैं। कविके काल-नि विशेष सहायताहीं मिलती। विके वीरवरित और उत्तरचरितके पढ़ाई __ भवभूति कृत मालतोमाधवप्रकरणको अभिनिवेश- समाजके विशिष्ट लक्षणोंका परिक्षान हो जाता पूर्वक पढ़नेसे तत्सामयिक बौद्ध और तावित्रक समाजकी लव और कुशका जातकर्म, चूड़ाकरण, जानयन आभ्यन्तरीण अवस्थाका आभास पाया जाता है । कुमारिल और वेदाध्ययन, रामचन्द्रका दीक्षा-ग्रहण, गोदान आदि उस बौद्धमत-प्लावित भारतमे ब्राह्मण्य धर्म और मङ्गल और विवाहादि संस्कार तथा भाण्डायनादिका वैदिक क्रियाकलापादिके स्थापनमें जैसे वद्धपरिकर हुए ब्रह्मचर्य, अतिथिमत्कार और उसको प्रयोज- थे, कवि भवभूतिने अपने नाट्यकाव्यमें परोक्षभावसे उसी नीयता आदि वैदिक आचार बिशदरूपसे विवृत मतका पोषण किया है। परिब्राजिका कामन्दकीके | हुआ है। भवभूति द्वारा अङ्कित प्राचीन समाज-चित्र- कार्यकलापका अवलोकन करनेसे, उस समयको वौद्ध का धर्मशास्त्रकारोंने भी अनुमोदन किया है। किस प्रकार समाजको भग्नावस्थाका परिचय मिलता है। मालती- उनका पालन किया जाता है, प्रन्थकारने दोनों ही राम- माधवको विवाहसूत्रमे आवद्ध करना और मालतोका चरित्रों में इस बातका आभास दिया है। इसके सिवा सौभाग्यवृद्धि के लिए कृष्णचतुर्दशाम शिवपूजनार्थ पुष्प वेद, उपनिषद्, धर्मसंहिता, पुराण, रामायण, महाभारत चयन देख कर अनुमान होता है, कि उस समय हिन्दू- आदिसे मत उद्ध,त कर उन्होंने वैदिक-समाजका आदर्श धर्म पुनरभ्युदित हुआ था। वस्तुतः उस समयके बौद्ध गठन किया है। बौद्ध और तान्त्रिक धर्मसे प्रतिनिवृत्त गण शिवाराधना करें या बुद्धमार्गका अनुसरण करें, हो कर जनसाधारण जिससे वैदिक आचार घ्यवहारका कुछ स्थिर न कर सके थे। उस समय बौद्ध और हिंदू अनुवर्तन कर सके, यह गूढ उद्देश तीनों ही नाटकोंमें सम्प्रदायमें परस्पर वैरभाव नहीं था। ब्राह्मणमन्त्री : विमिश्रित है। कवि द्वारा वर्णित वैदिक-समाजको परि. भूरिवसु और देवरातने बौद्ध-कन्या कामन्दकी और सौदा- वता, महत्ता तथा तान्त्रिक क्रियाकलापकी भीषण नीति- मिनी आदिके साथ एक हो गुरुको पाठशालामें अध्ययन भ्रष्टता और हिंसाप्रवणताका अनुधावन करनेसे मालूम किया था। द्वितीय अङ्कके "गीतश्चायमर्थोऽङ्गिरसा" : होता है कि, वे सनातन आर्यधर्म के विशेष पक्षपाती थे। इत्यादि वाक्यमें बौद्धोंके हिंदूसंहिताका अध्ययन सूचित ____ काव्य, अलङ्कार और व्याकरण-शास्त्रको भांति वेदा- हुआ है। न्तादि दर्शनशास्त्रोंमें भी आपकी विलक्षण व्युत्पत्ति भवभूतिके समसामयिक तान्त्रिक समाजकी अवस्था थी। * उत्तररामचरितको जरा ध्यानसे पढ़ा जाय तो अतीव शोचनीय थी। सौदामिनी, कपालकुण्डला ! मालूम हो सकता है कि भवभूति शङ्कराचार्यके पूर्व प्रादु- और अघोरघण्टके चरित्रमें सम्पूर्णतः इसका प्रति- भूत हुए थे । भवभूतिका विद्याप्रभाव चारों ओर भास है। सौदामिनीचरित्रमें बौद्धोंके स्वधर्मत्याग- * “विद्याकल्पेन मरुता मेघानां भूयसामपि। पूर्वक अघोरी शैव वा तान्त्रिक उपासनाका आभास ब्रह्मणीव विवर्तानां क्वापि विप्रलयः कृतः॥" पाया जाता है। पहले सौदामिनी बौद्धधर्मावलम्बिनी थीं,। ( उत्तरच०६) पश्चात उन्होंने अघोरघण्टको शिष्या हो कर गुरुचर्या, इसमें विवर्त्तवादका कछ कल आभास दिया गया है। तपस्या, तम्ब, मन्त्र, योग, अभियोग आदिके अनुष्ठान उक्त ग्रन्थके ४र्थ अङ्कके "अन्धतमिस्त्राह्यसूर्या नाम ते द्वारा सिद्धिलाभ किया। उनके तांत्रिकधर्म ग्रहण करने लोकाः तेभ्यः प्रतिविधीयन्ते ये आत्मघातिन इत्येवं ऋषयो मन्यन्ते पर बौद्धोंने विशेष विद्वेषभाव नहीं प्रकट किया था। इस वाक्यको देख कर अनुमान होता है कि, ग्रंथकारने वाजसनेय- पञ्चमाङ्कमें चामुण्डाके समक्ष बलिदानकी व्यवस्था संहितोपनिषदके निम्नलिखित श्लोकोंका आश्रय प्रहण किया देख कर अनुमान किया जा सकता है, कि उस समय । था-
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