पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७४४

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गरतमद्ध-भरद्वाज कुल मिला कर, इसमें पोतलकी बनी हुई कई पार्कातन्त्रि-। आलू या अरुई आदिको भून कर उसमें नमक मिर्च काएं रहती हैं, जो पृथकरूपसे बजाई न जा कर प्रधान आदि डाल कर बनाया जाता है। कभी कभी उसे घी तारोंके कम्पनसे स्वतः ध्वनित होती हैं। भरतबोणा- या तेल आदिमें भी छौंकते हैं। का नायको तार लोहेका होता है, अन्य तार धातुके न भरताग्रज ( स० पु०) भरतस्य अप्रजः । दाशरथि, हो कर तन्तुमय होते हैं। इस बीणाकी ध्वनिको मधु श्रीराम ।। रता रवाव वा कच्छपोके समान नहीं, बल्कि अपेक्षाकृत भरतार (हिं० पु०) १ पति, खसम । २ स्वामी, मालिक । कुछ नीरस-सी मालूम होती है। ( यन्त्रकोष ) भरताश्रम ( सं० पु०) भरतस्य आश्रमः। भरतमुनिका भरतमल्ल ( स० पु० ) एक वैयाकरण। आश्रम। भरतमल्लिक--वैद्यकुलोत्पन्न एक सुविज्ञ पण्डित । संस्कृत- भरतिया ( हिं० वि० ) १ भरत अर्थात् कसकुट धातुका भाषामें इनको पिलक्षण व्युत्पत्ति थी। करीब दो शताब्दी बना हुआ। (पु०) २ कसकुट के वर्तन या घंटे आदि पहले आप जीवित थे। आप कल्याणमल्लके आश्रित · ढालनेवाला, भरत धातुसे चीजें बनानेवाला । और धैद्यकुलतिलक हरिहरखानके वंशधर गौरागमल्लिक भरती ( हि० स्त्री० ) १ किसी चीजमें भरे जाननेका भाव, के पुत्र थे। उपसर्गवृत्ति, एकवर्णार्थसंग्रह, कारकोलास, भरा जाना। २ दाखिल या प्रविष्ट होनेका भाव, प्रवेश किरातार्जणोयटोका, कुमारसम्भव टीका, घटकपरटीका, तोना। ३ वह नाव जिसमें माल लादा जाता हो। ४ द्र तवोधण्याकरण और द्रुतबोधिनी नामक उसकी नक्काशी, सित्रकारो या कशोदे आदिमें बीच वीचका खाली व्याख्या, भट्टिकाध्य टीका, अमरकोष टीका, सुलेखन स्थान इस प्रकार भरना जिसमें उसका सौंदर्य बढ़ जाय । .नामके आपके रचे हुए कई प्रन्थ पाये जाते हैं। वैद्यः | ५ समुद्रके पानीका चढ़ाव, ज्वार। ६ वह माल जो कुल पञ्जिका भो आप ही की बनाई हुई हैं। नावमें भरा या लादा जाय। ७ जहाज पर माल लादने- भरतसेन देखो।। को किया। ८ नदीके पानीकी बाढ़। पशुओंके चारे- भरतसेन - प्रसिद्ध वैद्यकवि भरतमल्लिकका नामान्तर । ये के काममें आनेवाली एक प्रकारको घास। १० सांवों गौराङ्गसेनके पुत्र और हरिहरखानके वंश-सम्भूत थे। नामक कदन्न । अपनो विद्यावत्नाके कारण इन्होने महामहोपाध्याय और भरतेवरतीर्थ ( स० क्ली० ) एक तीर्थका नाम । यशश्वन्द रायको उपाधि पाई थी। ये राढोय वैद्योंके भरतोद्धता (म० पु० ) केशवके अनुसार एक प्रकारके एक प्रधान कुलीन थे। उनकी बनाई हुई वैद्यकुल- छन्दका नाम । पञ्जिका पढ़नेसे मालूम होता है, कि वे द्विज और वैद्योंके भरथ सं० पु०) विभत्तौति भृ-ञ् (भृश्चित् । उण ३। सेवक तथा राजपण्डित थे। उनकी उपसर्गगृत्तिके ११५) इति अथ, सच चित्। लोकपाल । शेष श्लोकसे पता चलता है, कि ये १७५८ शकमें विद्य- भरथ हि० पु० ) भरत देखो। 'मान थे। । भरथरी ( हिं० पु.) भत्त हरि देखो। भरतस्वामी.. एक प्राचीन पण्डित, नारायणके पुत्र ! ये भरदूल ( हिं० पु. ) भरतपक्षी देखो । होसलाधीश्वर रामनाथके प्रतिपालित थे। १३वों भरद्वाज (सपु०) द्वाभ्यां जायते इति जन-3 ततः पृषी- 'शताब्दीके शेषभागमें श्रीरङ्गमें रह कर इन्होंने सामवेद दरादित्वात् द्वाजः सङ्करः, भियते मरुभिरिति भृ-अप भर, विवरण ( देवराजने इस वेद भाका उल्लेख किया है ) भरश्वासौ द्वाजश्चेति कर्मधा। मुनिभेद, एक मुनि । और वौधायनकल्पसूत्र-विवरण नामक दो अन्य लिखे इनके जन्मका विवरण भागवतमें इस प्रकार लिखा है, -.. थे। २ एक ज्योतिर्विद। आलवरुणोने इनका उल्लेख एक दिन उतथ्यको पत्नी ममताकी ससत्त्वावस्था किया है। वृहस्पतिने छिप कर अपनी भातृभार्या के साथ मैथुन भरता (हिं० पु० ) एक प्रकारका सालन। यह बैंगन, , किया। परन्तु उस समय ममताके गर्भ में एक सन्तान