पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/७३९

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भरत-मरतपक्षी ७३३ गत होगया, बप्पाका कीर्तिस्तम्भ उन्मूलितप्राय हो चुका, भरतगढ़-बम्बई प्रदेशके रत्नगिरी जिलेका एक गिरि- आश्चर्य नहीं कि कुछ दिनोंमें चित्तोरसे पप्पा रावलका दुर्ग। यह बालबलि खांडोके दक्षिणी किनारे अवस्थित नाम तक मिट जाय, यह चिन्ता एक उन्नतमना कुलपाठका है। इस दुर्गके शिखर पर खड़ा होनेसे मसूरका मालवन चार्ग (.राजभार ) के हृददमें समुत्थित दुई। उन्होंने इस ग्राम दष्टिगोचर होता है। गढ़के चारों ओर जो प्राकार है अनिष्टपातके प्रतिविधानके लिए भरतके पास जा कर वह ८ फुट ऊंचा और ५ फुट मोटा है । उसके उत्तर-पूर्व उन्हें सारा वृत्तांत कह सुनाया। अपने पूर्वापुरुषों के प्रनष्ट और दक्षिण-पश्चिम कोणमें दो बुर्ज है। एतद्भिन्न गढ़के राज्य और गौरवके उद्धार के लिए भरत सिंधुदेशीय सेना- वहिः प्राचीरके ऊपर प्रायः १२ अद्ध गोलाकार बुर्ज देखने- दलके साथ मेवाडराज्यकी तरफ अग्रसर हुए। में आता है । यह प्राचीर भी चौड़ाई में १२ फुट है। प्राचीर. चित्तोरेश्वरके अधीनस्थ समस्त सरदारगण इस शुभ के सामनेमें एक बहुत लवी चौड़ी खाई है। . समाचारको सुन कर बड़े आनन्दके साथ अपने उद्धार- भरतद्वादशाह ( स० पु० ) भरत कृत द्वादशाहसाध्य यज्ञ- कर्ताकी प्रोडीन पताकाके नीचे आ इकट्ठे हुए । पल्लो नाम- भेद । कात्यायन श्रौतसूत्र में इस यज्ञका विधान विशेष के स्थानमें प्रतिद्वन्द्वी शणिगुहवंशीयोंको युद्धमें पराजित रूपसे लिखा है। इस यज्ञमें सभी प्रकारके अग्निष्टोम कर भरतने सिंहासन अधिकार किया। करने होते हैं। ___ इस घटनाके कुछ दिन बाद भरतके पुत्र राहुप “सर्वाग्निष्टोमः भरतद्वादशाहः" (कात्या० श्री० २४।७१२) चित्तोरके सिंहासन पर अधिष्ठित हुए । राज्याभिषिक्त होने भरतपक्षी---स्वनाम प्रसिद्ध पक्षि जति विशेष (Alauda के कुछ ही दिन बाद नागौर नामक स्थानमें यवनसेना gulgult ) । विज्ञानविदोंने इस जातिको (Allulilac) पति समसुद्दीनके साथ उनका युद्ध हुआ, जिसमें वे श्रेणीमें शामिल किया है। साधारणतः धानके खेतोंमें पराजित हो गये। राहुपके राजत्वकाल में उनके राज्यमें : इस जातिके पक्षी विचरण करते हैं। कृषकोंसे भगाये दो प्रधानघटनाएं हुई थी। इससे पहले, मेवाड़के राज- : जाने पर यह जितना ही ऊँचा ऊपर उठता है उतना ही पूतगण गिहोट कहलाते थे, परन्तु अबसे वे इस नामके : उसकी सुमधुर कलध्वनि मानवके श्रुतिगोचर होती है। बदले सिसोदिया नामसे प्रसिद्ध हुए। इसके सिवा वह गीतध्वनि मानव हृदयको मोहित कर डालती है। बप्पाके वंशधरोंकी उपाधि रावल' के बदले "राणा" इङ्गलैण्डमें इस जातिके पक्षीको Sky Laik (:11 u- प्रचिलत हुई। dia arvensis ). फ्रान्समें Alouette, इटली में Lodola, राहुपने अत्यन्त दक्षताके साथ ३८ वर्ष तक अपने जर्मनीमें Fell l.erche, स्काटलैण्ड में -- Lasrock, पश्चिम राज्यका शासन किया था। राहुप देखो। भारतमें-भरत, भरुत, बंगालमें भ6ई, तैलङ्गमें बरुतपिट्ट, भरत-एक टीकाकार। इन्होंने अपने ज्येष्ठ रामचन्द्र-कृत तामिलमें मनव-बड़ि, ब्रह्ममें बि-लोन और सिंहलमें गोम- समरसार और समरसार-संग्रह प्रथकी टीकाएं रिट कहते हैं। सारे भारत-साम्राज्य, सिंहल, अन्द - लिखी हैं। मन भीर निकोवर द्वोप, हिमालय पर्वत और यूरोपमें भरत (हि. स्त्री०) मालगुजारी। इस शब्दका प्रयोग जगह जगह इस जातिके पक्षी देखनेमें भाते हैं। स्थान- दोल्लीवासी करते हैं। विशेषमें उनके शरीरका रंग भी पलट जाता है। भरतभाचार्य-एक सङ्गीताचार्य । इन्होंने नाट्यशास्त्र वा भारतमें सब जगह वैशाखसे भाषाढ़ मासमें और भरतशास्त्र और सङ्गीतनृत्यकर नामके दो प्रथ रचे ब्रह्ममें पौषसे चैत्रमासमें मादा एक बारमें प्रायः ४ या ५ अंडे देती है। इस समय घे मट्ठीके ऊपर धासके भरतखण्ड (स'• क्लो०) १ भारतवर्ष के अन्तर्गत कुमारिका घोंसले बनाती हैं । इङ्गलैण्डके भी A, arvensis पक्षियों- खण्ड । २ राजा भरतके किए हुए पृथ्वीके नौ खण्डोमेंसे के अंडे पीलापन लिये सफेद और धूसर बिन्दुयुक्त एक खण्ड, भारतवर्ष, हिन्दुस्तान । | होते हैं। Vol. xv. 184