पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६४०

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६४ ब्राह्मसमाज - उसके बाद राममोहनरायने ईसाई उपदेश-वाक्या-। और पंथखरूप हुए हैं। शिष्यों के प्रति ईसामसीहका वलीका संकलम कर (१८२० ई०में ) जो अपना अभि- यह उपदेश है कि-"तुम लोग जा कर समस्त जातियों- प्राय प्रकट किया, उसमें उन्होंने ईसाइयोंके त्रित्ववादको के मनुष्योंको शिष्य बनाओ ; पिता, पुत्र और पवित्र अमूल सिद्ध कर दिखलाया। उन्होंने यह भी कहा, कि आत्माके नामसे उन्हें अपनाभो।" (मथि १८, १६') ईसामसीह एक महिमान्धित पुरुष थे, उनका उपदेश ईसामसीहके नामसे धर्म प्रचारका यही मूल है। राम- पालन करनेसे सुख-शान्ति मिल सकती है। इस प्रन्धके । मोहन रायने इस वाक्यकी विवेचना करके दिखलाया है, प्रकाशमसे मर्माहत हो कर मिशनरियोंने आपत्ति खड़ी । कि ईसामसीहके नव-विधानिक शिष्यगण यहूदी धा की और कहने लगे, कि "ईसामसीह और परमेश्वर एक अन्यान्य जातियोंके साथ कहीं मिल न जाय, इसलिये ही हैं" इस तत्त्वमें तथा ईसाई प्रायश्चित्तमें विश्वास न ! उन्होंने संस्कार प्रक्रियामें ईश्वर के पुत्र बतला कर अपना करनेसे केवल उनका उपदेश-पालन करने मात्र कभी भी नाम प्रथित करनेकी व्यवस्था की है। परन्तु उससे परिवाण नहीं हो सकता। इस विषयमें ईमाई मिश- भी उन्होंने “रसूल अलाह" महम्मदकी तरह ईश्वरके मरियोंसे राममोहनरायका नाना प्रकार पादानुवाद प्रेरित धर्म वक्ताके सिया अन्य किसी मर्यादाको हुआ। इस कारण राममोहन रायन ईसाइयोंकी अब अकांक्षा नहीं रखी है। गतिके लिये क्रमशः तीन पुस्तके प्रकाशित की* । उक्त ___इस आलोचनासे मिशनरियोंके संस्कारानुयायी तीनों पुस्तकों में आपने हित्रु और ग्रीक भाषामें लिखित ईसाई मतकी दीक्षामें विपर्यय उपस्थित हुआ था। राम- . मूल बाइविलसे कोई कोई वाक्य उद्धत कर सिद्ध किया मोहन रायका उद्देश था कि, ईसाके विशुद्ध और सुनोति- है, कि अगरेजी अनुवादमें मूल ग्रन्थके भावको कई पूर्ण उपदेश द्वारा लोगोंको नीतिको शिक्षा मिल सकती स्थानोंमें विकृत कर दिया गया है। इस अनुवादसे हैं, पर दुर्भाग्यसे मिशनरियां उस मार्गको कण्टकाकोण राममोहन रायने प्राचीन और नवीन विधानकी वाइविल : किये डालती हैं। राममोहनरायका यह आन्दोलन बिल- पर ऊहापोहके साथ खूब विचार करके सिद्ध कर दिया कुल निष्फल नहीं गया। उन्होंने रेभरैण्ड आदम आदि कि, ईश्वर एक हैं, उनमें त्रित्व नहीं है ; ईसामसीहमें उदारचेता कुछ व्यक्तियोंको बाइविलका यथाथ अर्थ जो भी कुछ शक्ति और महात्म्य है, वह ईश्वर-प्रदत्त है, अतएव व ईश्वरप्रेरित एक महापुरुष मात्र हैं, ईसामसीह । समझा कर उनके द्वारा भारतीय एकेश्वर-क्रिश्चियन- . सद्धर्म के उपदेशके प्रभावसे मनुष्यों के परित्राणके हेतुभूत विना विचार नथ यरोप और अमेरिकाके एकेश्वरवादी समाजको प्रतिष्ठा कराई। उनके द्वारा प्रकाशित "बाइ- ईसाइयोंका मतपोषक हुआ था। इस विचारके पढ़नेसे वा धर्मप्रवर्तक इत्यादि नहीं समझते थे। उनके वेदान्तसार- . उनको आन्तरिक दृढ़ता उत्पन्न हुई और उनका संगठन • प्रथकी शङ्कारशास्त्री-कृत प्रतिवादमें उनके प्रति इस प्रकारका भी क्रमशः पुष्ट होता गया। राममोहनको इस बातका कलशारोप करने पर उन्होंने अपने पूर्वा लेखको सामने रख कर बड़ा आनन्द हुआ था, कि वे उन्हें उपनिषदोक्त ब्रह्मरसका स्पष्ट किया कि "में पूर्वापुरुषों के धर्मकी बात ही कह रहा हूं, मेरा आस्वादन करानेमें समर्थ हुए। .. निजी मंतव्य इसमें कुछ भी नहीं है।" आपने "A Defence .: of flindin Theism" और ".1 Second Deletice of ____ उपयुक्त शुभ लक्षणोंको देख कर राममोहन रायका the Monotheistical System of the reals" नामक उत्साह दूना हो गया। यहां तक कि मापने अपने दो पुस्तकोंमें उक्त शास्त्री महाशयकी पौरानिकता संम्बंधी प्रति- विश्वस्त मित्र मादम साहबको अपना सर्वस्व दान करने- • वादका खण्डन किया है। .... .. ... . का संकल्प कर लिया। उन्होंने आदम साहबको यहांके

  • 1, Il and IT1 Appeal to the Christia एकेश्वरवादी ईसाइयोंके गिर्जाका पादरी बना दिया और

APatric. ... ........ ... खय..बायाभवॉकसाथ उस. भजनालवाकर