पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६२७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ब्राह्म-ब्राह्मण ६२१ बाहुई रहते हैं। साधारणतः इनके ७४ थाक हैं। प्रत्येक अंगुष्ठके उत्तर जो रेखा है, वही ब्राह्मतीर्थ है। उसी थाकके ऊपर एक एक सरदार आधिपत्य करते हैं। ये रेखा पर जल ले कर आचमन करना होता है। लोग कहीं भी एक जगह स्थिर होकर नहीं रहते । तोमन २ ब्रह्मपुराण ।३ ब्रह्मदेवताके अस्त्रादि। (पु०) नामक पशमनिर्मित तम्बू ही इनका वासगृह और शयन ब्रह्मणोऽपत्यं पुमान् इति अन् । ४ नारद । ब्रह्मण इवाय- तथा भोजनोपयोगी पात्रादि ही इनका असवाब है। ये मिति अन् । ५ विवाहविशेष, ब्राह्मविवाह । महर्षि सबके सब हानवेली सम्प्रदायभुक्त सुन्नी मुसलमान हैं। मनुने ब्राह्म, प्राजापत्य, दैव आदि ८ प्रकारके विवाहोंका इनका विश्वास है, कि स्वयं महम्मदने विशेष उल्लेख किया है। इनके धर्मका पर्यवेक्षण करने के लिये ४० साधुओंको भेज कन्याको वस्त्रालङ्कारादि द्वारा आच्छादन करके दिया था। बलुचिस्तानके उत्तरदिगवती चिहल-तौ! विद्या और सदाचारसम्पन्न वरको यथाविधि अर्चना- नामक पर्वत पर उक्त ४० जनोंकी समाधि हैं। उक्त ४०. पूर्वक जो कन्या-सम्प्रदान किया जाता है, उसीको ब्राह्मण- के अलावा उनके मध्य पोर, मुल्ला या फकीर आदि दूसरे विवाह कहते हैं। विस्तृत विवरण विवाह शब्दमें देखो । साधु-मुसलमान नहीं हैं। सैकड़ों हिन्दू और भिन्न भिन्न ६ मुहर्त्तविशेष, ब्राह्ममुहत्त, रात्रिके शेष चार दण्ड । सम्प्रदायी मुसलमानगण इस पवित्र पर्वतके बर्शन करने ७ मनुक्त राजाओंका धम विशेष, राजाओंका एक धर्म आते हैं। जिसके अनुसार उन्हें गुरुकुलसे लौटे हुए ब्राह्मणोंकी पठान और बलूची जातिसे इनके शारीरिक गठनमें पूजा करनी चाहिये । ८ नक्षत्र । ६ ब्रह्मसम्बन्धी दिन । बहुत फर्क पड़ता है। कच्छ गण्डवके प्रखर सूर्याकर १० सम्प्रदायविशेष । ब्राह्मसमाज देखो। (त्रि०) ११ ब्रह्म- और पार्वतीय शीत तथा हिमका सहन करके ये लोग सम्बन्धीय।। स्वभावतः वलशाली हो गये हैं। ये लोग कर्मदक्ष ब्राह्मक ( स० त्रि.) ब्रह्मणा कृत' कुलादित्वात् बुन्। कृषिकार्य-निरत, सहिष्णु, सत्साहसी, उद्यमशील, विप्रकृत, ब्राह्मणका किया हुआ। शिकारी और योद्धा हैं। अर्थागृध्नु होने पर भी ये ब्राह्मकृतेय ( स० पु० ) ब्रह्मकृतका गोत्रापत्य । विश्वासी, विवादशून्य और हिंसावृत्तिहीन हैं। ब्राह्मगुप्त : सपु.) १ आयुधजाति वर्गभेद । स वर्गो- शोत अथवा ग्रीष्म ऋतुमें इनका पहनावा एक ही येषां त्रिगर्तादित्वात् छ। २ ब्राह्मगुप्तीय-आयुधजाति- तरहका रहता है। तलवार, ढाल और बन्दूक इनका वर्ग भेदयुक्त । प्रधान युद्धास्त्र है। आजकल वृटिश-सरकारके बम्बई- ब्राह्मण ( स०पु० ) ब्रह्मणो विप्रस्य प्रजापतेर्वा अपत्य, सेनादल में बहुत-सी बाहुई सेना काम करती हैं। ब्रह्म वेदस्तमधीते वा ब्रह्मण-अण। ( ब्राह्मोऽजाती। पा खिलातके खाँ स्वयं ब्राहुई वंशके और कुम्भराणी ६४१७१ ) इति न, टिलोपः। विप्र जातिभेद, ब्राह्मण- शाखाके प्रतिष्ठाता कुम्भरके वशधर हैं। इस शाखाके त्वजाति, ब्राह्मण जाति । पर्याय-द्विजाति, अग्रजन्मा, तीन थाक हैं। अह्मदजई, खानी और कुम्भराणी। भूदेव, वाड़व, विप्र । ( अमर ) द्विज, सूत्रकण्ठ, ज्येष्ठ- कुम्भराणी थाकके लोग शेष दो थाकोंको कन्या लेते वर्ण, अप्रजातक, द्विजन्मा, वक्त्वज, मैत्र, वेदवास, नय, हैं। खिलातपात बाहुई जातिके प्रतिनिधिरूपमें राज- गुरु । ( शब्दरत्नाकर) ब्रह्मा, षट्कर्मा, द्विजोत्तम । (राजनि.) नैतिक-सम्बन्धको रक्षा करते हैं। ब्राह्मण समस्त वर्गों में श्रेष्ठ होते हैं । लक्षद्वीपमें इनको ग्राम (स' क्लो० ) ब्रह्मण इद, ब्रह्मन् (तस्यदं । पा ४॥३॥ संशा हंस हैं। शाल्मलद्वीपमें श्रुतिधर, कुशद्वीपमें १२०) इत्यण (नस्तद्धिते । पा ६।४।१४४ ) इति टिलोपः।। कुशल, क्रौञ्चद्वीपमें गुरु, शाकद्वीपमें ऋतव्रत कहलाते १ ब्रह्मतीर्थ। यह तीर्थ वृद्धांगुष्ठके मूलमें अवस्थित हैं। पुष्करद्वीपमें सभी एक वर्ण हैं ( भाग० ) "ब्राह्मणो- है। आचमन करते समय ब्राह्मणको इस तीर्थ पर अल ऽस्य मुखमासीत्" (श्रुति ) रख कर आचमन करना चाहिये। हाथके दक्षिण और ब्रह्मके मुखसे ब्राह्मण उत्पन्न हुए थे। मनुसंहितामें Vol. XV. 156,