पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६२४

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६१८ ब्रह्माण्डपुराण-ब्रह्मापेत निर्मित ब्रह्माण्ड सौ उंगलीका होना चाहिये। उसके ब्रह्मादिजाता (स. स्त्रो० ) ब्रह्मण आदिजाता सम्भूता । पूर्वमें अनन्तशय्या, पूर्वदक्षिणमें प्रद्युम्न, दक्षिणमें प्रकृति गोदावरी। और सङ्कर्षण, पश्चिममें चारों वेद और अनिरुद्ध तथा ब्रह्मादित्य-विवाहपटल और प्रश्नशान या प्रश्नब्रह्मार्क उत्तरमें अग्नि और वासुदेवकी मूर्ति अङ्कित रहेगी। पीछे | नामक ग्रन्थके प्रणेता, मोक्षेश्वरके पुत्र । इनका दूसरा यथाविधान पूजा और होमादि करके सुवर्ण-ब्रह्माण्डका नाम ब्रह्मार्क भी था। तीन बार प्रदक्षिण करना होगा। प्रदक्षिण करनेका मन्त्र ब्रह्मानन्द (सं० पु०) ब्रह्मस्वरूप आनन्द, ब्रह्मज्ञानसे उत्पन्न इस प्रकार है,--- आत्मतृप्ति। यह आनन्द सब आनन्दसे श्रेष्ठ है। ब्रह्म- "नमोऽस्तु विश्वेश्वर विश्वधाम जगत्सवित्रं भगवन्नमस्ते। ज्ञानलाभ होने पर जो आनन्द होता है, उसीका नाम सप्तर्षिलोकामरभूतलेश गर्भया सार्द्ध वितरामि रक्षाम् ॥ ब्रह्मानन्द है। ये दुःखितास्ते मुखिनो भवन्तु प्रयान्नु पापानि चराचराणाम्।। ब्रह्मानन्द-१ मेरुशास्त्रीके शिष्य । इन्होंने षटचक्र दीपिका, त्वद्दानशस्त्राहमपातकानां ब्रह्माण्डदोषाः प्रलयं व्रजन्तु ॥" शाक्तानन्दतरङ्गिणी, भावार्थदीपिका आनन्दलहरीटीका, (मत्स्यपुराण २५० अ०) त्रिपुराच नरहस्य और ज्योत्स्ना ( हठ प्रदोपिका) नामक यह ब्रह्माण्ड दान करनेसे सभी पाप जाते रहते हैं। ग्रन्थ बनाये हैं। शिवलालामृतके प्रणेता। उक्त महापुराणके २५०वें अध्यायमें इसका विस्तृत ब्रह्मानन्दगिरि-श्रीमद्भावत्-गीता-टीकाके प्रणेता । विवरण लिखा है। बराहपुराणमें भी इस दानका विधान ब्रह्मानन्दभारती-१ भागवत पुराणैकदशस्कन्धसारके देखनेमें आता है। कार्तिक मासको शुक्लाद्वादशी वा प्रणेता। २ रामानन्द और गोपालानन्दके शिष्य । इन्होंने पूर्णिमाके दिन सुवर्णनिर्मित ब्रह्माण्ड दान करनेसे पृथिवी- शङ्कराचार्य कृत वाक्यसुधा और विष्णुसहस्र नाम भाष्य- स्थित सभी वस्तुके दानमें जो पुण्य है, वही पुण्य प्राप्त को टोका लिखो है। होता है। ब्रह्मानन्दयोगी-वैदिक सिद्धान्तके प्रणेता। "ब्रहमायडादरवर्तीनि यानि भूतानि पार्थिव । ब्रह्मानन्दसरस्वती..--१ आनन्ददीपनी करिस्तोत्रटोकाके तानि दत्तानि तेन स्युः समासात् कथितं तव ॥" प्रणेता । २ चित्प्रभा परिभाषेन्दुशेखर टोकाके रचयिता । ( वराहपु.) ३ ईशावास्योपनिषत्श्लोकार्थ, ईशावास्योपनिषद्रहस्य, ३ खोपड़ी, कपाल । ४ कृष्ण पिण्डास भेद। माण्डुक्योपनिषद्भाष्य और वेदान्तसूत्रमुक्तावली ब्रह्माण्डपुराण (स.पु.) अठारह महापुराणके अन्त- प्रभृति प्रन्थके प्रणेता। ४ पुरुषार्थप्रवोध प्रणयन- र्गत एक पुराण । यह पुराण पूर्व और उत्तर भागमें तथा कर्ता । ५ नारायणतीर्थ, परमानन्द सरस्वती और प्रक्रिया, अनुषङ्ग, उपोद्धात और उपसंहार नामक चार विश्वेश्वरके शिष्य। इन्होंने अद्वैतचन्द्रिका वा लघु- पादोंमें विभक्त है। इसकी श्लोक संख्या १२ हजार है। चन्द्रिका नामक मधुसूदनकृत अद्वैतसिद्धिको एक ५वीं शताब्दीमें यह महापुराण यवद्वीपमें लाया गया था। टिप्पनी और अतिसिद्धान्तविद्योतन, सिद्धान्तविन्दुन्याय और वहां कविभाषामें इसका अनुवाद हुआ था। विस्तृत रत्नावली, गौड़ ब्रह्मानन्दीय और ब्रह्मानन्दोय नामक विवरण पुराण और बालिद्वीप शब्दमें देखा । ग्रन्थ बनाये हैं। ये जनसाधारणमें गौड़ ब्रह्मानन्द नामसे ब्रह्मात्मभू (स.. पु०) ब्रह्मण आत्मनः शरीरात् भवतीति परिचित थे। ब्रह्मात्मन् भू क्विप् । अश्व, घोड़ा । वृहदारण्यक उपनिषद् ब्रह्मानन्दी-संन्यासपद्धतिके प्रणेता। में लिखा है, कि घोड़ा ब्रह्मके शरीरसे उत्पन्न हुआ है। ब्रह्मापेत (स.पु.) ब्रह्माणं ब्रह्मतेजास्वरूपं सूर्यमुपेत शङ्कराचार्य ने भाष्यमें उसका अर्थ इस प्रकार किया है, उपगतः, ततः पृषोदरादित्वात् साधुः। सूर्यमण्डल- 'अश्व नामक प्रजापति ब्रह्माके शरीरसे उत्पन्न हुए।' समीपवासो राक्षसभेद । माघके महीने में सूर्यमण्डलमें ब्रह्मादनो ( स० स्त्रो० ) हंसपदी, रक्त लज्जालु। त्वष्टा, यमदग्नि, कम्बल, तिलोत्तमा, ब्रह्मापेत, ऋतजित्