पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६२०

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अमरत-ब्रह्मसदन बमक्ष (संपु० ) तदाल्यया प्रसिद्धो वृक्षः वा ब्रह्मणो करना होता है। जो यह व्रत करते हैं उन्हें ब्रह्मलोकका घेरकर्मार्थ यो वृक्षः। १ पलाश वृक्ष। २ उड़ म्बर, | प्राप्ति होती है। गूलरका पेड़। ब्रह्मशल्य ( स० पु० ) ब्रह्म व सूक्ष्म शल्य अग्रमागो यस्य, ब्रह्मवृत्ति ( स० स्त्री० ) ब्रह्मणो ब्राह्मणस्य वृत्तिजीवनो ___ अति सूक्ष्मानत्वात् तथात्व। सोमवल्क, बबूलका पेड़। पायः। १ ब्राह्मणका जीवनोपाय, बाह्मणकी जीविका। ब्रह्मशाला ( स० स्त्री० ) १ तीर्थभेद । २ घेद पढ़नेका २ ब्रह्माकार अन्तःकरणावृत्ति। घर। ब्रह्मवृद्ध ( स० त्रि०) जप तप द्वारा वर्द्धितशक्ति वा तत्- ब्रह्मशासन ( स० क्लो०) ब्रह्मणः शासन निणयो उपदेशो सम्पन्न । वा यस्मिन् । १ ब्रह्मविचार गृह। इसका पर्याय धर्म- ब्रह्मवृन्द ( स० क्ली०) ब्राह्मण-सभा। कीलक है। २ ब्रह्माकी आज्ञा या उन सब कार्यों में ब्रह्म ब्रह्मवृन्दा ( स० स्त्री०) ब्रह्मप्रतिष्ठित नगरभेद । कत्तूक नियोजन । ३ वेद या स्मृतिकी आशा। आशा- ब्राह्मवेद ( स० पु०) ब्रह्मणो वेदः ज्ञानं ६-तत् । ब्रह्म लड्डनकारी ब्रह्मद्वषोको नरक होता है। ४ विधाताका पान । २ बमप्रतिपादक वेदभाग। ३ वेदान्त। अनुशासन वा कर्त्तव्यरूप उपदेश । ५ वेद । ६ नवद्वीप- बलव दमय (सं० त्रि०) बमवे दयुक्त।। के पूर्व-दक्षिणकाणमें गङ्गाके दूसरे किनारे अवस्थित एक बह मवेदो (सं० स्त्री०) यह मणो वेदिरिव । १ देशविशेष । प्राम। ७ वह प्राम या भूमि जो राजाकी ओरसे ब्राह्मण- २ब्रहमाके बैठनेका आसन । को दी गई हो। ग्रह मवेदिन (स० वि०) ब्रहम-विद्-णिन् । ब्रह मविद्, ब्रह्मशिर (सं० क्लो०) अस्त्रभेद । इसका उल्लेख रामायण ब्रहमतवक्ष। और महाभारत दोनोंमें है । इस अस्त्रका चलाना अगस्त्य- ब्रह्मवैवर्त (स. क्लो०) विवृतिरेव वैवर्त स्वार्थे अण, ब्रह्मणो से सीख कर द्राणाचायने अर्जुन और अश्वत्थामाको सिखाया था। (भारत सौप्तिकप० १२ अ०) वैवतं विशेषेण विवृतियंत्र । १ वह प्रतीति मात्र जो ब्रह्मशुम्भित (सं०नि०) अभिषषसाधन मन्त्र द्वारा ब्रह्मके कारण हो। २ ब्रह्मके कारण प्रतीत होनेवाला अलंकृत। जगत्, प्रहका विवर्स जगत्। विवस और विकारका ब्रह्मश्री (स.नि.) सामभेद । लक्षण इस प्रकार है। ब्रह्मस शित ( स० वि०) ब्रह्मणा संशितः ३ तत् । मन्त्र "सतत्त्वतोऽन्यथाप्रथा विकार इत्युदाहृतः। द्वारा तीक्ष्णीकृत। अतत्त्वतोऽन्यथाप्रथा विवत इत्युदाहृतः ॥" ब्रह्मसंसद (स. स्त्री०) ब्राह्मलोक वा ब्रह्मसदन । (वेदान्तद.) ब्रह्मसंस्थ ( स० वि०) १ ब्रह्ममें सम्पूर्णभावसं स्थित । २ एक प्रकारकी वस्तु अन्य प्रकारकी होनेसे विकार ब्रह्मज्ञानमय । और अन्यथा प्रतीत होनेसे विवत होता है। दूधसे ब्रह्मसंहिता (स. स्त्रो०) वैष्णवाचारसिद्धान्त अध्यायशता- वही होना विकार और रज्जुका साकारमें प्रतीत होना | | त्मक ग्रन्थभेद, भगवत्सिद्धान्त संग्रहग्रन्थविशेष । विवर्स है। जगत् ब्रहमका विकार नहीं है, किन्तु ब्रह्मसती (स. स्त्री०) सरखती नदी। विवत है। इसीको ब्रह्मवैवर्त कहते हैं । ३ अठारह ब्रह्मसत्र (सलो .) ब्रह्म वेदस्तत्पाठलपं सलं । ब्रह्मयश, पुराणों से एक पुराण जो कृष्ण-भक्ति सम्बंधी है। इसमें विधिपूर्वक वेदपाठ। ब्रह्माका अच्छी तरह विवरण किया गया है, इसीसे ब्रह्मसलिन् (स.नि.) ब्रह्मसन-अस्त्यर्थे इनि । प्रलयाह- इसका नाम ब्रह्मवैवर्त पड़ा है। विस्तृत विवरण पुराण | कारक। शब्दमें देखो। ब्राह्मसदन ( स० क्लो०) सादत्यस्मिन् सद-आधारे ल्युट् ब्रह्मवत (सक्ली० ) व्रतविशेष । यह व्रत-सौ वर्ष तक ब्रह्मणः सदन ६ तत्। यहमें प्रामा नामक ऋत्विकका