पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६०९

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ब्रह्मदेश म बिठा कर हसिनफ्यू श्मने स्वयं राजदण्ड धारण | सिलोन पर चढ़ाई कर दी। युद्ध में पराजित और किया। राजपद पर अधिष्ठित हो कर उन्होंने अपने विशेषरूपसे क्षतिग्रस्त होने पर भी ब्रह्मवासो निरुद्यम न .पिताके दिखलाये हुए पथका अनुसरण करके १७६६ हुए । ब्रह्मराजने १७८६ ई०में दलबल के साथ मा कर श्याम- ई०में राजधानीके निकटवत्ती देश पर अधिकार , राज्य पर धावा मारा। इस युद्धमें पहले अपमानका जमाया। यहां तक, कि श्याम और मणिपुर राज्य पूरा बदला तो नहीं मिला, पर १७६३ ई०को संधिके भी उनके दखलमें आ गया। इस प्रकार ब्रह्मसेना अनसार बह्मराजको श्यामराजले क्षतिपरणस्वरूप तेना जब धीरे धोरे देश जीतने लगी, तब यूनानप्रदेशसे प्रायः सरीम प्रदेश और मागुई तथा टाभय बन्दरगाह मिला । ५० हजार चीन सैन्यने ब्रह्मराज्य पर आक्रमण किया। १७९५ ई में तीन डकैत ब्रह्मराज्यसे अङ्गरेजाधिकृत शुकौशली ब्रह्मराजके चातुरी जाल में फंस कर उन्होंने चट्टग्रामप्रदेशमें भाग गए जिनको पकड़नेके लिए लगभग हार मानी। उतनी बड़ी सेनामेंसे एक भी स्वदेश न पांच हजार ब्रह्मसेना भारत सीमान्त पर आ धमकी । लौर सकी , सिर्फ ढाई हजार सेना ब्रह्मवासीका दासत्व अङ्गजोंने उनके साथ किसी प्रकार विवाद न कर करनेके लिए बन्दीरूपमें राजधानी लाई गई। चोनब्रह्म-: उक्त तीनोंको लौटा दिया और ब्रह्मराजके साथ मित्रता युद्ध में मौका पा कर १७७१ ई०में श्यामराजने अधीनता- कर ली। तोड़ देनेकी इच्छासे ब्रह्मराजके विरुद्ध अस्त्रधारण किया। अनन्तर राज्यपिपासु अङ्गरेजों और ब्रह्माके साथ उनका दमन करनेके लिए ब्रह्मसेना दक्षिणको ओर चल : घोरतर संग्राम छिड़ा । अगरेज लोग जिस प्रकार चली। रंगून नगरके समीप पेगु और ब्रह्मसैन्यमें मुठ- बंगालके पूर्व देश जीतनेकी इच्छासे धीरे धीरे कदम बढ़ा भेड़ हुई। पेगुसेनादलने वड़ी निष्ठुरतासे ब्रह्मसैन्यका रहे थे, उसी प्रकार ब्रह्मसेना भी पश्चिमकी ओर आसाम विनाश किया । १७७४ ई०में राजा हसिन-फ्यू इन मणिपुर जोत कर श्रीहट्टसीमा तक पहुंच गई थी। यहां स्वयं इस दस्युदलके किये हुए अपराधका समुचित अङ्रेजरक्षित कछार राज्यसीमामें उनको गति रोक दी दण्ड देनेके लिए अग्रसर हुए। पहली लड़ाईमें हो गई। ब्रह्मगण अङ्गरेजोंके बलकी परीक्षा करनेके लिए उन्होंने पेगुवासीसे मार्त्तवान प्रदेश और दुर्ग छीन सोमान्त प्रदेशमें रह कर उत्पात मचाने लगे । गुप्तभावसे लिया। दूसरे वर्षे वे दलबलके साथ इरावती पार अंगरेजोंके सेनादल पर आक्रमण, अङ्गरेजीप्रजाको हरण कर रंगून पहुंचे और अपने उद्दीप्त क्रोधको शान्ति करने करके पलायन, चट्टप्राममें बलपूर्वक पदार्पण और अन्तमें के लिए बूढ़े पेगुराजको मत्रीके साथ यमपुर भेज १८२३ ईमें नाफनदीके मुहाने पर स्थितअङ्गरेजाधिकृत दिया। १७७६ ई०में वे स्वयं अठारह वर्षके पुत्र सिंगु- शाहपुरी द्वोपका लुगटन तथा अङ्गरे या अटलेजहत्यारूप सैकड़ों मिडके हाथ एक विस्तीर्ण साम्राज्य सौंप कर इस अत्याचारसे ये लोग नृप्त न हुए. उनका नृशंम पिपासा. लोकसे चल बसे। नररक्तपिपासु यह बालक अपनो स्रोत दिन पर दिन बढ़ता ही गया। इस कठोर अत्या- यथेच्छाचारिताके दोषसे राज्यच्युत हुए। १७८१ ई०में : चारसे छुटकारा पानेके लिए. अगरेजोंने वारम्बार प्रार्थना उनके चाचा भोद्रौफ ( मेन्तरगि ) ने उन्हें मार कर राज- की ; किंतु उन्होंने एक भो न सुनी। आखिरकार सिंहासन अपनाया और १७८३ ई०में आराकान प्रदेश : १८२४ ई०में अगरेजगवर्मेण्टने ब्रह्मराजके विरुद्ध युद्ध ब्रह्मराज्यमें मिला लिया। उसी वर्ण वे नये अमरापुर ठान दिया। नगरमें राजधानी उठा ले गए। ___ अगरेजोंने एक बड़ी सेना इकट्टी की । सेनापति प्राण्ट पूर्वोक्त श्यामविद्रोहके बाद ब्रह्मगण फिर भी श्याम और कैम्पवेल (commodtore irant incl Sir trchi- राज्य प्राप्त न कर सके; किंतु मागुई उपकूलवत्तीaki Campbell ) ने युद्ध के अधिनायक होकर दलबल- कुछ स्थान उनके अधिकारमें था। १७८५ ई०में के साथ रंगूनशहरसे थोड़ी दूर पर लङ्गर डाला। भङ्गा- ब्रह्मसेनाने जङ्गीजहाज ले कर जलपथसे जाङ्क- रेजोंका गोला देख कर ब्रह्मवासी सुरके मारे नगर