पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/६०२

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- ब्रह्मदेश- तब उसकी सीमा परिवर्तित हुई। पहले ब्रह्मराज्यकी है। इस विस्तीर्ण भूभागसे निकाली हुई प्रस्तरराशि जो सीमा थी, अंगरेज सरकार अब भी उसी विस्तीर्ण राजकोषमें हो रखी जाती हैं। यहांका चूना पत्थर सब साम्राज्यका शासन करती है। यह अक्षा० ६ ५६ से देशोंमें प्रसिद्ध है। २७२० उ० तथा देशा० ६२ ११ से १०१ पू०के नाफ नदीके मुहानेसे ले कर नेप्रोस अन्तरीप तक मध्य अवस्थित है। आराकान विभाग विस्तृत है। इसके उत्तर और पूर्व- अंगरेजोंके हाथमें आनेके बाद ब्रह्मराज्यमें किसी किसी सोमास्थित आराकानयोम, पर्वतमालाके अयङ्ग गिरि- देशी शिल्पकी अवनति के साथ साथ नाना विषयकी उन्नति सङ्कट हो कर इरावतीको उपत्यकाभूमिमें जा सकते हैं। भी हुई है। यद्यपि यह राज्य स्वाधीन था, तो भी यहां- समुद्रोपकलमें कई एक छोटे छोटे द्वीप हैं, उनमेंमे चेबूदा की प्रजा सुखस्वच्छन्दसे एक दिन भी न बितातो थी। और रामरी ही प्रधान हैं। ये सब उपजाऊ हैं। नाफ चोरी करना, दूसरेका धन छोन लेना, घर जला देना, नदीके सिवा यहां मयु, कुलदन, तलक और अयङ्ग, जीवोंको मारना आदि अनेक प्रकारके बुरे काम यहांके आदि कई एक नदियां हैं । कुलदन या आराकान नदीके अधिवासियोंका अङ्गभूषण था। किन्तु अंगरेजी शासनमें दक्षिण कूल पर आकायाब नगर बसा हुआ है। किन्तु सभी प्रकारके अत्याचार जाते रहे। पेगु और इरावती विभाग ही विशेष शस्यशाली है। यह देश पथरीला होनेके कारण यहां सालवीन नदी. यहां इरावती, हैड या रंगून, पेगु और सित्तोड आदि की अववाहिका प्रदेशमें धान, चना, मकई, गेहू. कलाई, नदियां बहती हैं। यही कारण है, कि उनके अववाहिका- तम्बाकू, कई, सरसों और नोल आदिको अच्छी खेती देश बहुत उपजाऊ हैं। लगभग १०४० मील पार कर होती है। इसके अलावा ब्रह्मवासीका अत्यन्त प्रिय- इरावती नदी बङ्गोपसागरमें मिलती है । इस नदीमें ६०० चायका पौधा ( Elacodendron persicum) और मोल तक नाव आ जा सकती है। अमरूद, केला, पपोता, इमली, नीबू, नारङ्गी आदि नाना- समुद्रोपकूल-स्थित तेनासरीम विभाग अक्षा० १० से जातिके फलवृक्ष भी यहां पाये जाते हैं। उत्तर ब्रह्ममें ! १८ उत्तरके मध्य बसा है। यहांको प्रधान नदो है इरावती नदीकी कैङ्ग-द्वङ्ग, मितङ्ग और शैले आदि । सालवीन । यह नदी कहांसे निकली है, इसका आज तक शाखाए वहती हैं । नाम-कथे नामक नदी मणिपुर और भी पता नहीं लगा है, किन्तु यूनान प्रदेशके समीप ही लुसाई गिरिमालाके बीच हो कर वहती हुई कैङ्गि इसका खरस्रोत अनुभव किया जाता है। इस विभागकी नदी में मिल गई है। इसके सिवा बहुत-सी नदियां इरा- पूवसीमामें जो पर्वतमाला दिखाई पड़ती है, वह पौग- वती सालवीन और थालवीन नदीका कलेवर बढ़ातो लौङ्ग पर्वतशाखा है। इसी पर्वतमालासे ब्रह्म और हुई भारतमहासागरमें गिरती हैं। | श्यामराज्य पृथक होता है। ____ यहांके जङ्गलमें बहुत-से शाल और सेगुनके पेड़ हैं राज्यमें प्रधानतः तीन गिरिश्रेणी देखी जाती हैं। तथा बढ़िया लाह और रबरका गोंद भी पाया जाता है। इसका सर्वपश्चिम आराकानयोमा-पर्वत आसाम प्रदेश- ये सब द्रव्य वाणिज्यके लिए उत्तर और दक्षिण ब्रह्मसे को नागागिरिमालासे उठ कर नेनिस अन्तरीपमें आ रङ्गण बन्दर में ला कर नाना स्थानोंमें भेजे जाते हैं। मिला है। इसकी अन्तिम शाखा पर 'क्षब्देन' नामक यह राज्य खनिज पदार्थका आकर है। यहां सोना, पागोदा ( मन्दिर ) अवस्थित है और बोचमें पेगुयोमा चांदी, तांबा, टोन, सोसा, रसाञ्जन, विस्माथ, एम्बार, गिरिमाला है। इरावती और सित्तौङ्ग उपत्यकाभूमिके कोयला, शिलातैल (Petrolium), गन्धक, सोडा, नमक, मध्य अवस्थित रहनेसे यह उक्त दोनों नदीके अववाहिका लोहा, ममर पत्थर आदि पाये जाते हैं । इसके अलावा प्रदेशको विभक्त करती है। यह पर्वतमाला उत्तर ब्रह्मकी मन्दालयके ३५ कोस उत्तर पूर्व में बढ़िया और वेशकोमती थेमेथिन् गिरिश्रेणीके सानुदेशसे ले कर दक्षिणकी ओर नील तथा बुन्नी पत्थर पृथिवीमें गड़ा हुआ मिलता इरावतीफे डेल्टा तक फैल गई है। यहां एक पर्वत