पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५९१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ब्रह्मा भृगु, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, अङ्गिरा, मरोचि दक्ष, ब्रह्माका ध्यान इस प्रकार है अत्रि और वशिष्ठ पे नौ ब्रह्माके मानस पुत्र हैं। ये भी "बृहमा कमंडलुधर चतुर्वक्त चतुर्भुजः । ब्रह्मा कहलाते हैं। कदाचिद्रक्तकमले हंसारुष्टः कदाचन ।। • मत्स्यपुराणके तृतीय अध्यायमें ब्रह्माके चतुर्मुख वणे न रक्तगीराङ्गः:प्रांशुम्तुङ्गान उन्नतः । होनेका कारण इस प्रकार लिखा है,-ब्रह्माके शरीरसे एक कमंडलुमिकर स वो हस्ने तु दक्षिणे । कन्या उत्पन्न हुई। ब्रह्मा उम कन्याको देख कर कामसे दक्षिणाधस्तथा माना वामाधश्च तथा सुवः। पीड़ित हुए। पश्चात् वे उस कन्याकी ओर सतृष्ण आज्यस्थानी वामपाश्च वेदाः सर्वेऽग्रतः स्थिताः॥ दूष्टिसे देखते रहे और 'अति आश्चर्य रूप है' 'अति सावित्रीवामपार्श्वस्था दन्तिगास्था सरस्वती। आश्चर रूप है' बार बार ऐसा कहने लगे वह सर्वे च पयो व्यग्र कुर्यादेमि च चिन्तनम् ॥" कम्या ब्रह्मके भाषको ताड़ गई और उनके चारों तरफ ( काग्निकापु०८२) प्रदक्षिणा देने लगी। इस तरह चारों ओरसे कन्या इस मंत्रसे ब्रह्माका ध्यान करना चाहिए। “पद्मा- दृष्टिगोचर हो, इसलिए ब्रह्माके चारों ओर चार मुग्ब हो सनाय विद्महे हमारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मन् प्रचो. गये। (मत्स्यपु० ३०) दयात्” यह ब्रह्माकी गायत्री है। नेत्र-रअनके अतिरिक्त सृष्टिके प्रारम्भमें ब्रह्माके दश मानसपुत्र उत्पन्न हुए; : सभी उपचार ब्रह्माको दिये जा सकते हैं। रक्तवर्ण कौपेय पहले मरोचि, फिर अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु' वस्त्र ब्रह्माको परम प्रीतिकर है। आज्य, खीर और तिल- प्रचेता, वशिष्ट, भृगु और नारद। युक्त घृत ये तीन ब्रह्माके प्रधान भोज्य पदार्थ हैं । ब्रह्माके ब्रह्माको शरीरसे दश प्रजापतियोंकी उत्पत्ति हुई। पार्श्व में विष्णु और शिवको पूजा करनी चाहिए । ब्रह्माके दक्षिण अंगुष्ठसे दक्षप्रजापति, स्तनान्तसे धर्म, हृदयसे : करस्थित स्रवादि, सरस्वती, सावित्री, हंस औह पद्म कुसुमायुध, भूमध्यसे क्रोध, अधरसे लोभ, बुद्धिसे मोह, : इनकी भी पूजा करना विधेय है। इनका अर्घ दुग्ध द्वारा अहकारसे मद, कण्ठसे प्रमोद और लोचनसे मृत्युका : और प्रणाम दण्डवत् हो कर करना चाहिए । उदय हुआ था। दश प्रजापतियोंका विषय उन उन शब्दोंमें : (कालिकापु० ८२०) तथा प्रजापति शब्दमें देखो। गृहदाहादि होनेसे ब्रह्माकी पूजा की जाती है। महाभारतमें शान्तिपर्वके १८२वें अध्यायमें ब्रह्माकी ६ ऋत्विक भंद, एक प्रकारके ऋत्विक । होम करते उत्पत्तिका विवरण लिखा है। लेख बढ़ जानेके भयसे समय ब्रह्मकी स्थापना करनी चाहिए । वेद विद् ब्राह्मण- यहां अधिक नहीं लिखे गये। के अभाव में कुशपत्र द्वारा ब्रह्मा बना कर उसमें स्थापना कल्पके प्रारम्भमें ब्रह्मा सृष्ट होते हैं और कल्पके को जाती है। क्षयमें उनका ध्वंस होता है। ब्रह्माकी पूजा आदिके "ऊर्ध्वकेशो भवेत् यह मा अधः केशस्नु विष्टरः।" विषयमें कालिकापुराणमें इस प्रकार लिखा है। (उद्वातहत्त्व) ब्रह्माका मन्त्रोद्धार,- कुशमय ब्रह्माको यथानियम बना कर उसका अग्रभाग "पतृतीयश्च वह्निश्च शेषस्वरसमन्वितः । ऊंचा कर देना चाहिए। जिनके अप्रभाग स न हों, चन्द्रविन्दुसमायुक्तो ब्रह ममन्त्रः प्रकीर्तितः ॥” (कालिकापु०) ऐसे ५० कुशपत्रोंसे ब्रह्माका निर्माण करना उचित है । पवर्गके तृतीयवर्ग 'ब' के नीचे रकार जोड़नेसे 'ब्र'; अग्निसे पूर्वकी ओर प्रागप्र कुशा बिछा कर उसके ऊपर और उसमें औकार तथा चन्द्रबिन्दु लगानेसे ब्रह्माका ब्रह्माका स्थापन किया जाता है। भवदेवमें इसकी मन्त्र “नौं" होता है। यही ब्रह्माका बोजमन्त्र है। इस प्रणाली विस्तृतरूपसे लिखी है। मन्त्र के द्वारा ब्रह्माकी पूजा करनेसे अभिलषित वस्तुकी ७ विष्कुम्भ आदि सत्ताईस योगोंमेंसे पचीसवां प्राप्ति होती है। योग। इस योगमें सभी प्रकारके शुभ कर्मादि किये जा Vol. xv, 147