पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५२९

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बोधघनाचाय-बोधन विहार प्रभृति खण्डकीर्तियां प्रत्नतत्त्वानुसन्धित्सुओं-, कल्पारम्भ हो कर सायंकालमें बिल्वतरमूलमें देवीका को नूतन आलोक प्रदान करती हैं। बोधन किया जाता है। कृष्णा-नवमीसे ले कर शुक्ला- १८७E में ब्रह्मराजने तीन कर्मचारियोंको बोधि- दशमी अर्थात् विजयादशमी तक प्रति दिन देवीकी पूजा मन्दिरका संस्कार करनेके लिए भारतवर्ष भेजा। १८७७ करनी चाहिये। नवमी बोधन आश्विन मासमें ही कहा ई०को कर्मक्षेत्र में पहुंच कर जब वे उक्त कार्यसाधनमें गया है। अन्यत्र इस प्रकार लिखा है। असमर्थ ठहरे, तब बङ्गालके छोटे लाट ( Sir Ascly "आर्द्रायं बोधयेहवीं मूलेनैव प्रवेशयेत् । Eden )ने पहले बेगलर साहब ( M, J, D, Beglar )को तिथिनक्षत्रयोर्योगे बोरेवानुपाकनम् । तत्त्वावधारक नियुक्त कर भेजा । इससे तृप्त न हो कर योगाभावे तिथिर्माह्या देव्याः पूजनकर्मपि । उन्होंने पुनः राजा राजेन्द्रलाल मित्रसे कार्यपरिदर्शन कृष्णानवम्यामार्द्रायोगो विधौ मन्त्रं च भयते ॥" करनेके लिये प्रार्थना की। उन दोनोंके उद्योग और ब्रह्म- लिङ्गपुराणके मतसे--- वासियोंके यत्नसे बोधगयाका संस्कार साधित हुआ । कन्यायां कृष्णपक्षे तु पूजयितत्वाद्रभे दिया। यहाँ तक कि, इस महाबोधिमन्दिरने उच्च चूड़ावलम्बो । नवम्यां बोधयेद्दवी महाविभव विस्तरः" (तिथितत्त्व ) हो कर पुनः बौद्धस्मृतिको जगा दिया । किन्तु अब भी आर्द्रा नक्षत्रमें देवीका बोधन करना चाहिए । इससे यहांको कितनीही सम्पत्ति कलकत्तेके जादूघरमें सर मालूम होता है, कि आर्द्रानक्षत्र-युक्त नवमी तिथि ही क्षित हैं। बोधनके लिए प्रस्ति दिन है। परन्तु प्रति वर्ष वायुपुराणीय गयामाहात्म्यमें बोधगया भी एक गौणाश्विन कृष्णानवमीमें आयोग सम्भवपर नहीं, हिन्दू तीर्थके जैसा गिना जाता है। यहाँका नोधिवृक्षका | भर्थात् किसी वर्ष पड़ा और किसी में म पड़ा, पेसी दशामें दर्शन तथा उसके नीचे पिण्डदान अत्यन्तपुण्यजनक है। 'आर्द्रायां बोधयेत्' किस प्रकार सम्भव हो सकता है। बोधधनाचार्य (सं० पु. ) एक उपाध्याय। ये बोधानन्द- इसकी मीमांसा शास्त्रों में इस प्रकार है, कि नवमी के दिन घन और अहोवलशास्त्री नामसे प्रसिद्ध थे। ही बोधन होगा: हां, यदि उस नवमी मार्दा नक्षत्रका योग बोधन (सं० पु०) बोधं अभिप्रायं जानातोति ज्ञा-क । अभि- हुआ तो बहुत ही उत्तम है। अन्यथा आर्द्रा नक्षत्रके बिना प्रायवेत्ता, श्रीकृष्ण। । बोधन हो नहीं हो सकता, ऐसा नहीं है। बोधन (सं० क्ली० ) बुध-णिच् ल्युट । १ गन्धदीप, गंध- 'भकालमें बोधन करना चाहिए' यहां अकाल शब्दको दीप देना।वेदन मापन, जताना। विज्ञापन इस्त-1 मथ देवताओंकी रात्रि है। कारण, उत्तरायण देवताभोंके हार। ४ उद्दोपन, अग्नि या दीपक आदिको प्रज्वलित : दिन हैं और दक्षिणायण उनको राति । देवताओंकी रात्रि- करना । ५ शान । ६ चैतन्य सम्पादन । यथा -दुर्गादेवीका में कोई भी कार्य करना प्रशस्त नहीं। इसलिए "नकाले बोधन । आश्विन मासमें अकालमें रामचन्द्रने रावण, ब्रह्मणा बोधः" इस प्रकार कहा गया है। रात्रि निद्राका बधके लिए भगवती दुर्गाका बोधन किया था। शास्त्रमें समय है, इसलिए बोधन करके पूजा की जाती है। बोधनकी व्यवस्थादिके विषयमें इस प्रकार लिखा है,- । "अथैतद्दतियायन देवानां रात्रिरिति एवचा। "इथे मास्यसिते पक्षे कन्याराशिगते रखो। रात्रावेव महामाया ब्रह्मणा बोधिता पुरा । "नवम्या बोधयेद्दवीं क्रीड़ाकौतुकमङ्गलः।" तथैव च नराः कुर्यु: प्रतिसंवत्सरं नृपः ।।" अत्र कृष्णादित्वादिषे इत्यपि गौग्णाश्विनपरं ।' (तिथितत्त्व) नवमी तिथि यदि उभय दिनमें पूर्वाह्नमें ही प्राप्त हो रविके कन्याराशिमें पहुंचने पर, अर्थात् आश्विन मास- और दूसरे दिन नक्षत्र-लाभ अर्थात् आर्द्रा नक्षत्र हो, तो में कृष्णपक्षकी नवमी तिथिमें देवीका यथाविधान बोधन दूसरे दिन ही बोधन होगा। युग्मादर होनेसे पहले दिन करना चाहिए । इस स्थानमें 'आश्विन' पदसे मतलब नहीं होगा और दोनों ही दिन यदि पूर्वाह-लाभमें और गौणाश्विन-से है। नवमी आदि कल्पस्थलमें प्रातःकालमें नक्षतका योग न हो, तो पूध दिनमें बोधन होगा । कारण,