पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५२७

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बोधगया ५२१ बौद्धधर्मके इतिहासमें उरुबिल्वाका ही प्रसङ्ग मिलता है। हिन्दूगण प्रतिहिंसापरवश हो कर उविल्याको प्राचीन महावंश पढ़नेसे जाना जाता है कि, "बुद्धघोष सिहलसे . बौद्धकोत्तिकी उपेक्षा करते थे. ऐसा प्रतीत नहीं होता भारतमें आ कर बा (बोधि वृक्षकी पूजा करनेकी इच्छासे है। उन्होंने यह स्थान जंगलमें परिणत देख इसका मगधके अन्तर्गत उरुवेलय प्राममें उपस्थित हुए।" शाक्य- परित्याग किया। कालक्रमसे अङ्गारेजोंकी अनुकम्पा सिंहके यहां पर तपस्या करनेके पहले यह स्थान उरुबिल्वा. और ब्रह्मराजके अर्थसाहाय्यसे यह लुमप्राय महाबोधि- नामसे प्रसिद्ध था, इसमें सन्दे नहीं। क्योंकि. शाक्यके मन्दिर नवकलेवरमें शोभित हो जनसाधारणके दृष्टि- बुद्धत्व पानेके पूर्व इस स्थानका "वोधगया" नाम होना पथ पर आरूढ़ हुआ है। बुद्धगयाके इस महाबोधि- नितान्त असम्भव है। सुजाताके पिता सेनापति नन्दिक मन्दिरका जीर्णसंस्कार होनेके समय कहीं कही थोड़ा कोकटराजके अधीन काम करते थे। गयानगरी उस परिवर्तन भी हुआ है। समय मगधराज्यको राजधानी थी। ८वीं और यथार्थमें किस समय यह स्थान जङ्गलसे परिपूर्ण हवीं शताब्दीमें हिन्दुप्राधान्य स्थापित होनेके बाद हुआ था, यह स्थिर करना मुश्किल है । ४थी उरुविल्वाके अशोकप्रतिष्ठित बौधमन्दिरादिसे गयाक्षेत्रको शताब्दी में बौद्ध प्रभावके अवसान अथवा ब्राह्मण्यधर्म- स्वातन्त्ररक्षाके लिए हिन्दूगण इस स्थानको 'बोधगया सेवो गयालियोंके अभ्युत्थानके ममय महाबोधि-मन्दिर नाम कल्पित करते हैं ।* कारण, गयालीगण गया-- जो अनादूत हुभा था, उसमें मन्दह नहीं । धाममें प्रतिष्ठा लाभ र गयाको कीर्ति और तीर्थसमूह- हिन्दुआंने जब बौद्धनोथ का विलोप करना चाहा, तब की रक्षा करने में यत्नवान् थे। उविल्वा (बुद्धगया की भिन्नादेशीय बौद्ध धर्मावलम्बियाने यत्नपूर्वक यहांकी पूर्व पूर्वतन अशोककीर्तियां क्रमशः ध्वंसप्राय हो रही थी। तन बौद्धस्मातकी रक्षा को । इस पवित्र मन्दिरके वृक्ष- लतादि समाच्छादित ध्वंसराशिमें परिणत होने पर भी

  • पहले ही लिखा जा चुका है, कि अमरदेवकी १०वी

बौद्धगण समयानुसार इम पुण्यतार्थमे आ कर यथा- बौडरा समयानमार शताब्दीकी उत्कीर्ण शिनालिपिमें बुद्धगया नामका उल्लेख है। सम्भव संस्कार करते थे उनका यथेट ऐतिहासिक .isiatic Rese. rcher vhi Ip. 281 । प्रमाण शिलालिपिसे मिलता है। ललितविस्तरमं लिखा है, कि शाक्यासह राजगृहस गया- ४थी शताब्लोक अन्तम मसाट अशोकद्वारा प्रति- नगर पधारे। वहां मनुष्योंकी भलाई के लिये उन्हनि चित्तसंयम : प्रित वज्रासन और परातन मन्दिर तथा उक्त बजासनक कर निविष्ट मनसे ध्यान करनेका संकल्प किया। उरुविल्या वन-: सामने गाडा हुई रोयमुतादिक मध्य शवगज हुविक में बदके सम्बोधिल्लाभ करने के बाद गयानगरीमें उनके निवोगा- (१४००)को मद्रा प्राप्त होनेसे इस स्थानके प्राची. धर्मप्रचारका.मुख्यक्षेत्र हुआ था। किंतु दुःमका विषय है, कि । नत्वका परिचय मिलता है। इसके बाद चीनपरिव्राजक ५वीं शवाब्दी के प्रारम्भ (४०४ १० सन् )में जब चीन परिव्राजक! फाहियान भी उठविल्या महाबोधिमन्दिरका उल्लेख यूएनचुअल यहां आये थे, उस समय इस स्थानका बौद्धप्रभाव एकबारगी तिरोहित हो गया था और सारी नगरी जनशून्य पिण्डदान प्रभृतिकी महात्म्य-कथा गमायगा महाभारतादिमें वर्णित भमावशेषसे पूर्ण थी। ७वीं शताब्दीमें यूएनचुअङ्गके परिदर्शन है। वायुपुराणांतर्गत गयामाहात्म्यमें गयामुरका जो अद्भुत कालमें यहां हिंदूप्रभाव स्थापित हो रहा था, सुतरां गयालीगण उपळ्यान है उसकी समालोचना करनेमे वह रूपकक जैसा प्रतीत गयातीर्थ पर अधिकार कर उनकी रक्षामें लगे थे। बहुतांका हाता है । देवासुरका विरोध स्वभावसिद्ध है। असुरोंकी 'श्रेष्ठ वैष्ण- मत है, कि महाबोधि तीर्थ लुप्त होनेसे हिंदूगणा गया- वता' बौद्धोंकी अहिंसाका परिचय देती है । गयासुरके निश्चलता- धाममें उन्हीं बोधिकीर्तियोंको ला कर उनकी रक्षा करते हैं। सम्पादनसे देवताओंको कापुरुचेष्टा और धर्मप्रागा हिंदू द्वारा निरीह- बुद्धगयाके अनेक प्रस्तर और शिलालिपि यहांके मंदिरादिमें बौद्धों के प्रत्याख्यानके सिवा और क्या कहा जाय। गया शब्द- लाई पर भी गयाके प्राचीनत्वका लोप नहीं हुआ है। यहांका में विस्तृत विवरण देग्यो। Vol. xv. 131