पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/५११

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वेलक-बेलगांव (वेलगाम) ५०" गठरी जो एक स्थानसे दूसरे स्थान पर भेजने के लिये भारसे अवनत हो उस निजनतामें भी स्थानीय सान्द बनाई जाती है, गांठ। को वृद्धि कर रहे हैं। बेलगामका उत्तर और पूर्व अंश बेलक (हिं० पु०) फरसा, फावड़ा । शस्यपूर्ण श्यामल प्रान्तरमय है और उसके बीच बी व बेलको हि० पु० ) चरवाहा। छोटो किसनोंकी बस्तियां हैं। बेलखजी (हिं० पु०) पूर्ण हिमालयमें मिलनेवाला एक इसके उत्तरमें कृष्णा, मध्य भागमें घारप्रभा और प्रकारका बहुत ऊंचा वृक्ष । यह चार सौ फुट को ऊचाई । दाक्षणमें मानप्रभा नदी सह्याद्रि पर्वतसे निकल कर पूवका तक होता है । इसके होरकी लकडो लाल और बहुत ओर धीरमन्थर गतिसे बहती हुई बङ्गापमागरमें जा मिली मजबूत होती है । इमने चायके मदुक, इमारतो और हैं। इन नदियोंके पश्चिमांशका जल मीठा है, किंतु आरायशो सामान तैयार किये जाते हैं। वृक्षको काटनेके पूर्वाशका जल समस्रोतमें मिट जानसे कुछ खां हो बाद इसकी जड़े. जल्दा फूट आती हैं। गया है। येलगगरा (हि. स्त्री० ) एक प्रकारको मछली। __इस पार्वतीय प्रदेशमें जगह जगह लोहा, अभ्रक, बेलगांव (बेलगाम)---बम्बई प्रसिडेन्सीके दक्षिण-विभाग लालपत्थर, दानादार और स्फरिकप्रस्तर आदि पाये का एक जिला। यह अक्षा० १५ २२ से १६.५८ उ० जाते हैं। जङ्गलों में साल, सफेद माल, हन्नी, हर्र और तथा देशा० ७४ २ से ७५ २५ पू०के मध्य अब कटहल आदिके पेड तथा जानवरों में नाना प्रकारके स्थित है। भूपरिमाण ४६४६ वर्ग-पाइल है। इसको हरिण, जंगली सूअर, बाघ, चोता और तरह तरह के पक्षी उत्तर-सोमा मिरज और जाट राज्य, उत्तर पूर्व में फला देखने में आते हैं। दगी जिला, पूर्वमें जामखगडी और मुधोल राज्य, पक्षिण ___ यहांका इतिहास महागठ-इतिहासमे सभ्यन्ध ग्ग्यता और दक्षिण-पूर्व में धारवार, उत्तर कणाडा और कोल्हापुर है लिए स्वतंत्र रूपसे पृथक कुछ नहीं लिया गया। राज्य, दक्षिण-पश्चिममें जोआ राज्य तथा पश्चिममें १८१८६० में पूनाको सन्धिके अनुसार पेशवाने अनजाको सावन्तवाडो और कोल्हापुर गज्य है। उत्तर पूर्वसे धारवाड़ विभागके सार यस जिल्टा भी दिया था। भा. दक्षिण पश्चिमकोणमें यह १२० माइल विस्तृत है और मे यह धारवाड़ जिले में शामिन समझा जाता था और प्रस्थमें से ८० माइल नक है। अंग्रेजों द्वारा इसका शासन होता था। पीछे शामन ___या जिला गाडशैलमालाने विभूषित हो कर म्थान : कार्यको सुविधाकं लिए. १८३६ ई में उक्त विभागके दर्शन- स्थान पर उपत्यका, अधित्यता और अत्युन शृङ्गायलो- जांशम धारपाई और उत्तरांगमे बेटगांय नामये दा से परिशोभित है। एक तरफ जैसी समनल प्रान्तर एर स्वतन्त्र जिले कर दिये गये। १८६४ ४६१ में पहले पहल नदियों को अपूर्व शान्तिमयी गोभा है, दूसरी तरफ तथा १८८१-८२ ई०में यहां दूसरी बार बन्दायस्त हुआ वैसा ही अत्युनत पर्वतीको शिग्याओं पर दर्भ गिरि- था। इस जिलेमें वेलगाम और उसमेन्गा हुआ सेना दुर्गों का धोर गम्भोर दृश्य है । यह शैलश्रेणी पश्चिमघाट ! निवान । छावनी , गोकक, अथनी, निपान, सौन्दनी घा सह्याद्रिशैलकी अन्यतम शाखा है। इस जिले का और यमकणमदी प्रधान नगर है। यहां के अधिवासी पश्चिम और दक्षिणांशका पार्वत्य प्रदेश अपेक्षाकृत उन्नत साधारणतः लिङ्गायत शैव हैं। इसके सिवा अन्यान्य है और वह पूर्वकी तरफ क्रमशः नीचा होता हुआ कलादग श्रमावलम्बी भी हैं। कै कारं नानक दस्युजालि यहां जिला तक गया है। दक्षिणमें सह्याद्रिपर्वतकी मशिवर! प्रसिद्ध है। शाखा-प्रशाखाए इतस्ततः विस्तृत होने पर सो बोच __यह जिला अथती, बेलगाम, बोदी, विकाडी, गोकाक, बीचमें निविड़ वनमाला और जनहीन सम भूमि पारसगढ़ और लम्पगांप नाम कई उपविभागान देखी जाती है। इस दक्षिण-भागमें बड़ी बडी नदियों के विभक्त है। पारसगढ़ उवि का पयत पर यमा किनारे आम, जामुन, कटहर, इमलो आदि वृक्ष फल-। देवीका प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां पर प्रति वर्ष कात्तिक और Tol, xv. 127