पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/४७५

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रख और धोखा दे कर अपनी जाजऊकी हारका बदला गदर में इन्होंने गवर्मेण्टको अच्छी सहायता दी थी। इन- नेके लिये इनका 'बू'दो राज्य इन्होंके एक स्वामि द्रोही की जोधपुरवाली महाराणी राठोडजीसे महाराज कुमार सरदार करवरके जागीरदारके पुत्र दलेलसिंहको अपनी भीमसिंहजीका और नागोदके पड़िहारजीसे कुँवर रंग- पुत्री ध्याह कर दे दिया और उसे अपना करद राज्य बना नाथसिंहजीका जन्म हुआ था। इन दोनों कुमारोंके देव- लिया। महाराव राजा बुधसिंहजीको जब सवाई जय लोक सिधारनेके पीछे कतकनके पडिहारजीसे मिती सिंहका प्रपंच मालूम हुआ तो ये जयपुरसे चल दिये। आश्विन कृ० १ संवत् १६२६के दिन महाराज कुमार रघु. इनके पीछे ही जयपुरकी सेना भी चढ़ो। जयपुर और वीर सिंहजीका और उनके पीछे कुरङ्गगज सिंहजी, कुवर वू'दीकी सीमा पर दोनों में डट कर युद्ध हुआ जिसमें जय रघुराज सिंहजी और कुवर रघुवरसिंहजीका जन्म पुर राज्यके बड़े बड़े सरदार मारे गये और जब महाराव हुआ। संवत् १६४५ वि०के चैत्र कृष्णपक्षमें महाराव राजा बुधसिंहजीके भो जो थोड़े से मनुष्य थे, मारे गये राजा रामसिंहजीके देवलोक होने पर मितो चैत्र शुक्ल ११ तब ये अपनी सुसराल बेधू ( मेवाड़ ) में चले गये। भृगुवार सवत् १६४६ ( १२ अप्रेल सन् १८८६ )-को इनके देवलोक होनेके पीछे इनके १३ वर्षके पुत्र बीरकेशरी महाराव राजा रघुवीरसिंहजी १६॥ वर्षकी अवस्थामें महाराव राजा उमेद सिंहजीने अपने अनेक वर्षों के असीम बदी रोजसिंहासन पर विराजे। इन महाराव राजाजी. परिश्रम, अतुल पराक्रम और अद्वितीय रणकौशलसे जय-! के दश विवाह हुए थे। जिनमेंसे बड़ी महाराणी जोध- पुर जैसे बलाढ्य हाथीके पेट से अपना 'दोका पैत्रिक पुरको राठोड़ जी श्रीसौभाग्य कुवरीजीके गर्भसे अगहन राज्य निकाला और अपने पुरुखाओंको कीर्तिको उज्वल कृ० ५ सवन् १६४६ ( १२ नवम्बर सन् १८८६ ई० )को और चिरस्थाई किया। फिर अपने पुत्र कुचर अजित् महाराज कुमार राघवेन्द्रसिंहजीका जन्म हुआ। परन्तु सिंहजीको राज्य दे आप तीर्थाटनको निकले और पीछे दुःख है, कि फाल्गुण शुक्ल ८ रविवार संवत् १६५५ (५ बानप्रस्थ हो बूंदीसे दो कोस पर अपने केदारनाथजीके मार्च सन् १८६६ ई० ) को केवल । वर्षकी अल्प आयु- आश्रममें तप करने लगे जहां उनके पूर्वज कोल्हनजीको में उनका देवलोक वास होनेसे राजपरिवार और प्रजामें दंडौती देते समय श्री केदारनाथजीने प्रकट हो कर हाहाकार मच गया। दर्शनदे उनकी यात्रा सफल की थी। महाराव राजा रघुवीरसिंहजीके समयमें सन् १९११ महाराव राजा अजित्सिंहजीने बोलेटा गांवके झगड़े. ई०के १२ दिसम्बरको दिल्लीमें एक बड़े शाही दरवारमें में राणा अरिसीजीको मार कर अपनी वीरता प्रकट को, इङ्गलैण्ड के राजा और भारतवर्ष के सम्राट पंचमजार्जका जिसका बैर अभी तक दोनों राज्योंमें बना हुआ है। राज्याभिषेक हुआ जिसमें भारतवर्षके समस्त राजा इनके पुत्र महाराव राजा विष्णुसिंहजीने सन् १८०४ ई०- महाराजा, नवाव, गवनर, लेफ्टिनेन्ट गवर्नर, मरदार सेट में जसवंतराय हुल्करके विरुद्ध अङ्गरेजी सेनापति कर्नल साहकार आदि तथा दूसरे दूसरे देशोंके प्रतिनिधि भी मानसून साहबको सहायता दे कर सन् १८१८ ई० आये थे। उसमें निमन्त्रण पा कर महाराव राजा बदी (संवत् १८७५ वि० )में बृटिश-सरकारसे संधि को। भो मम्मिलित हुए थे। महाराव राजा विष्णुसिंहजीके पुत्र महाराय राजा भारतवर्षसे विदा होते समय सम्राट्ने राजा रघु- रामसिंहजीने अपने ६८ वर्षके राज्यशासनमें प्रजाका वीरसिंहको १० जनवरी १९१२ ई०के दिन जे. सी. बी. उत्तम रीतिसे पालन करनेके सिवाय वूदीमें संस्कृत ओ. की उपाधिसे भूषित किया । विद्याकी उन्नति कर इसे छोटी काशी बना दिया । ये ये महाराव राजा विद्वानोंका आदर सत्कार करने में महाराव राजा धर्म और न्यायको मूर्ति थे। बूदीकी सदैव तत्पर रहते थे। इनके समयमें रूदैव धर्मानुपान प्रजा इनको राजर्षि सम्बोधन करती है और अगरेजी सर- और ब्राह्मण भोजन होते रहते थे। प्राचीन मर्यादाका कार भी इनका बहुत मान रखती थी। सन् १८५७ के पालन और प्रजापालनमें इतना अनुराग था, कि जब जब Vol. xv. 118