जिम प्रकार चौहान वंशके विषयमें मतभेद है उसी अस्थिपालजोके वंशमें राव हमीर और गंभीर हुएं प्रकार. हाडावंश कहलानेके विषयमें भी लोगोंके पृथक् जिन्होंने भारतके सम्राट पृथ्वीराज चौहानके साथ जाते हैं। संवत 1978से संवत १७२६ वि० रह कर कन्नोजके राजा जयचंद राठौरकी सेनासे घोर तक के लेखोंमें जोधपुर राज्यके प्रधान मन्त्री मूतानैणसी संग्राम किया और भारतवर्षकी स्वतन्त्रताके लिये शाह- ने नाडौलके ७वे चौहान राजा आसराजके छोटे पुत्र बुद्दीन महम्मद गोरोसे अंतिम युद्धमें लड़ कर अमर पद माणिकराजके छठे वंशधर विजयपालके पुत्र हरराजसे पाया। इनके वंशमें रामचंदने मांडलगढ़ परसे मुसल- हाडाओंकी उत्पत्ति लिखो है, इसीका अनुकरण राय | मानोंको मार कर भीलोंके पठार प्रान्त पर अपना स्वतन्त्र बहादुर पण्डित गौरी शङ्कर हीराचंदजी ओझाने भी अधिकार जमाया। इनको सन्तानमें राव कोल्हनजी किया है, लेकिन भूतानैणसी दूसरे स्थल पर सौनगराओं बड़े श्रद्धावान् भक्त हुए थे जिन्होंने अपनी राजधानीसे को वंशावलोमें नाडौलके प्रथम नरेश राव लाखणसीके दंडौती देते हुए श्री केदारनाथजीकी यात्रा की।६ मासमें ज्येष्ठ पुत्र बीसलके वंशमें हाड़ौतीके हाड़ाओंको लिखता विन्धाघाटीके पास बानगंगा पर पहुंचे, जहां केदार- है जो एक दूसरेके विरुद्ध पड़ते हैं। टाड साहबने अपने | नाथजीने स्वयं प्रकट हो दर्शन दे कर उनकी यात्रा सफल भ्रमण-वृतान्तमें मैनालके संवत् १४४६ के शिलालेख की। इनके पौत्र राव बंगदेवजीके पुत्र कुवर देवसिंहजीने के आधार पर बंबावदेके हाडाओंकी जो वंशावली दी कुवर पदमें ही अपने बाहुबलसे मीणोंको विजय कर है उसमें भी यंगदेवके पिताका नाम हरराज संवत् १३००के लगभग बांदूनालकी घाटी छीन ली और नहीं है जो मूता नैणसीके लिखनेके करीब ३०० वर्ष बूदी नगर बसाया। फिर खटकड़ लाखेरी, नैनवा आदि पहलेके शिलालेखसे ली गई है। उसमें देवराजके | कई परगनोंको विजय कर अपना बपौती पठार प्रान्तका पुलका नाम तो हरराज दिया है जो बंगदेवका पोता और राज्य तो अपने बड़े पुत्र हरराजको दे दिया और नया विनयपालका परपोता हो सकता है। वह पठार प्रान्त जीता हुआ राज्य अपने छोटे पुत्र समरसिंहको दे कर का राजा हुआ था, बूंदीका नहीं। दीवंश परंपरामें पृथक् पृथक दो स्वतन्त्र राज्य बना दिये। कुछ पोढ़ी हरराजका नाम नहीं है। देवसिंह ( देवराज ) के छोटे पीछे बंबावदा ( पठार प्रान्त-भैसरोर गढ़ आदि )-का पुत्र समरसीका नाम आता है जो बूदीराज्यके संस्थापक राज्य तो नष्ट हो कर मेवाड़के अधिकारमें चला गया ; थे और उन्हींके एक बड़े भाई हरराज थे जिनको देव परन्तु बूदीका राज्य सदैव स्वतन्त्र बना रहा । कई सिंहजीने अपना बपौती बंबावदा ( पठार प्रान्त )-का बार मेवाड़वालोंने वू'दीको भी अधीन करनेकी चेष्टा की, राज्य दिया था। हरराजसे उसके बंशजों का नाम भी परन्तु उनको सदैव हानि ही उठानी पड़ी। समरसिंह हाड़ा नहीं बन सकता । राजपूतानेकी प्रचलित प्रणालीके जीने भीलोंको मार कर चंबल पारके देशोंको विजय अनुसार हरराजके वंशज हरराज पोता अथवा हरराजोत कर लिया और कोटरियो भीलको मार कर कोटा कहला सकते हैं । यदि उनके लिखनेके अनुसार हरराज- वसाया। इस समय जितने देशों पर बूदी नरेशोंने अधि. का नाम हाड़ा भी मान लिया जाय जैसा कि मूतानैणसी- कार जमाया था वह समस्त देश उनके नामसे हाड़ौती ने लिखा है, उसके वंशज हाडावत या हाडापोता (हाड़ीवाटी ) देश कहलाया। कहला सकते हैं, न कि हाड़ा हो। तिस पर भी बूंदीके समर सिंहजीके पुत्र नरपालजीकी असावधानीसे नरेश तो हरराजके घंशज नहीं है उसके छोटे भाई सम- बदीराज्यका कुछ भमाग दूसरे पड़ोसी राज्य दवा बैठे रसीके वंशज हैं। अतः हाड़ा शब्द समरसीजीसे दीर्घ- थे। परन्तु इनके पुत्र राव हमीरजी (हामूजी )ने अपने काल पहलेका होना चाहिये। जो वंश-परम्परागतमें अस्थिपालजीसे ही माना जा सकता है जिसका वणन पौरुषसे उन्हें परास्त कर अपने राज्यका दबा हुआ छत्रसाल चरित्र, वंश प्रकाश, वंश भास्कर और प्रिसिक भूभाग उनसे छीन लिया। इनके समयमें मेवाड़के राणा साहब तथा टाड साहबके लेखोंमें भी आया है। हमीरजीने मांडलगढ़के लिये पठार प्रान्त पर चढ़ाई को,
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