प्लुपि-प्लैटिनिम प्लुषि ( स० पु०) प्लुष बाहुलकात् कि । १ वकतुल्य-: नाम अरिष्टोन और माताका नाम पेरिक्तिउनि था। ४२६ तुण्डयुक्त खगभेद, बगलेके जैसा एक प्रकारका पक्षी। ई०सन्के पहले मई मासमें आथेन्स नगरमें इन्होंने जन्म- २ दाहक सर्पभेद। ३ अल्प परिमाण पुत्तिकादि। ग्रहण किया। जब इनकी उमर बीस वर्षको थी उस प्लुष्ट ( स० त्रि०) दग्ध, जला हुआ। सुश्रुतमें इसका समयसे ले कर आठ वर्ष तक. इन्होंने सक्रटिस नामक लक्षण इस प्रकार लिखा है-- प्रसिद्ध दार्शनिकके निकट पाठाध्ययन किया। सके. “यत्र द्विवणं प्लुष्यतेऽतिमात्रं तत् प्लुष्टं।" टिससे इन्हें जो कुछ उपदेश मिलता था, उन्हें वे लिपि- (सुश्रुत सू० ११ अ०)। वद्ध करते जाते थे। पीछे मिश्र, इटली आदि स्थानों में पीड़ित स्थानमें क्षारका प्रयोग करनेसे जो विवर्णता कुछ काल ठहर कर ये पुनः आथेन्स लौटे। यहां इन्होंने होती है, उसे लुष्ट कहते हैं। परिषद (Arademy ) में पढ़ना आरम्भ कर दिया । नये प्लेग ( अं० पु० ) भयङ्कर रूप धारण कर जाड़े में फैलने- युनिसियमने इन्हें अपनी सभामें बुलाया था। किन्तु वाला संक्रामक रोग। इसके फैलने पर बहुसंख्यक ये खुशामदी टट्ट, थे नहीं, कि जहां तहां बुलाने पर चले व्यक्तियोंकी मृत्यु होती है। इसमें रोगीको बहुत तेज जाय। ये बड़े ही स्पष्टवक्ता थे। कठोर हृदयके ज्वर आता है और जांघ या बगलमें गिलटो निकल इयुनिसियस इन पर हमेशा रंज रहा करते थे। इस आती है। यह रोग प्रायः तीन चार दिनमें ही रोगीके , कारण उन्होंने प्लैटोको कैद कर कृतदासरूपमें किरिनी प्राण हर लेता है। प्रवाद है, कि छठी शताब्दीमें यह रोग (Cvrene)-वासी आनिकेरसके यहां बेच डाला। आनि- पहले पहल लेवांटसे यूरोपमें गया था और वहींसे अनेक केरसने इनके गुण पर मुग्ध हो इन्हें मुक्तिदान दिया। देशोंमें फैला। १९०० ई०से भारतवर्ष में इसका विशेष अनन्तर जन्मभूमि लौट कर ये अपने दर्शनतत्त्वके प्रचारमें प्रकोप था, पर अब कुछ कम हो गया है। लग गये । इनके उपदेश गुरुशिष्यके प्रश्नोत्तरके ढंग पर प्लेट ( अं० पु० ) १ किसी धातुका पत्तर या पतला पोटा . लिखे हुए हैं। उसमें गुरुसोटिस हो वक्ता हैं। उन हुआ टुकड़ा, चादर। २ धातुका बना हुआ वह चौड़ा, उपदेशोंमें बहुतसे घेदान्तिक भाव मिश्रित हैं। प्लेटोका पत्तर जिस पर कोई लेख आदि खुदा या बना हो। ३, आदि नाम आरिष्टोक्लिस था। किन्तु प्रशस्त ललाट छिछली थाली, तश्तरी। ४ सोने चांदी आदिका वना रहनेके कारण इनका 'प्लेटो' नाम रखा गवा। ८२ वर्ष- हुआ प्याला जैसे घुड़दौड़का प्लेट, क्रिकेटका प्लेट । ५ की अवस्थामें ई०सन्के ३४८ वर्ष पहले इनका देहान्त फोटो लेनेका वह शीशा जो प्रकाशमें पहुंचते ही उस हुआ। दार्शनिक आरिष्टटल इन्हींके छात्र थे। छायाको स्थायी रूपसे ग्रहण करता है जो उस पर पड़ती प्लैटिनम (अॅ० पु०) चाँदीके रंगको एक मशहूर कीमती है। पीछेसे इसी शीशेसे फोटो-चित्र छापे और तैयार . धातु। यह धातु १८वीं शताब्दीके मध्य दक्षिण अमे- किये जाते हैं। रिकासे यूरोप गई थी। इस धातुमें कई धातुओंका कुछ प्लेटफार्म ( पु० ) १ कोई चौकोर और समतल न कुछ मेल अवश्य रहता है। जितनी धातु हैं, सबोंसे चबूतरा। यह किसी इमारत आदिमें इस उद्देशसे यह अधिक भारी होतो है और इसके पत्तर पीटे या तार बनाया जाता है कि उस पर खड़े हो कर लोग वक्त ता खींचे जा सकते हैं। यह आगसे नहीं गल सकती। या उपदेश दे सके । २ रेलवे स्टेशनों पर बना हुआ बिजली अथवा कुछ रासायनिक क्रियाओंकी सहायतासे वह ऊंचा और बहुत लम्बा चबूतरा जिसके सामने आ गलाई जाती है। इसमें न तो मोरचा लगता और न कर रेलगाड़ी खड़ी होती है और जिस परसे हो कर यात्री तेजावों आदिका कोई प्रभाव ही पड़ता है। यही कारण रेल पर चढ़ते या उससे उतरते हैं। है, कि लोग बिजली तथा अनेक रासायनिक कार्योंमें प्लेटो - प्रोक देशीय एक विख्यात दार्शनिक । अरबोंके | इसका व्यवहार करते हैं। रूसमे कुछ दिनों तक इसके निकट ये 'कातुन' नामसे प्रसिद्ध थे। इनके पिताका सिक्के भी चलते थे। यह केवल दक्षिण अमेरिकामें ही Vol. Xv. 10
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