पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३७४

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बालिद्वीप पर समन्त आ कर सुगंधि द्रव्योंका लेपन करते हैं और। शवयात्रा भी महासमारोहसे की जाती है। शवको ले प्रत्येक अंगमें एक एक मुद्रा रख कर शव देहको घर, जाते समय उसके व्यवहार करनेके सब द्रष्य उसके साथ चटाई आदिसे ढक देते हैं । उन द्रव्योंसे शरोरमेंसे रस रक्खे जाते हैं। इन लोगोंकी शवयात्रा इस तरह निक- निकलने लगता है। बह रस नीचे रखे हुये बालि नामके | लती है.--पहिले वाहक, पीछे चन्दनादि काष्ठभार वाद्य, पात्रमें जमा होता रहता है, अन्तमें वह फेंक दिया जाता है। अस्त्र-शस्त्र परिवृत सेनापुरुष, राजउपभोग द्रव्यादि, रम- छह मासमें देहका दाह नहीं होनेसे देह सूख जाती णियोंके सिर पर भूतोंकी तृप्तिके लिये उपहार, बर्छाधारी है। यदि छह मासमें भी वह रस न सूखे, तो तोयतीर्थ । सेना, राजव्यवहार्य सेना, राजाके वस्त्रच्छनाद, प्रिय क्या पवित्र जल और नाना तरहके उपहार मृनके सम्मुख अश्व पर चढ़ा हुआ राजपुत्र वा पौत्र और सबके बाद दिये जाते हैं। पश्चात् शव शरीरमें भूतयोनि प्रविष्ट : सेनादल तथा वादकश्रेणी रहती है। होती है। इसी भयसे वे उसके मुखमें एक सोनेकी। द्वितीय स्तवकमें सौसे अधिक स्त्रियों के सिर पर तोय. अंगुठी रख देते हैं। तीर्थके जलपूर्ण कुभ रहते हैं। तृतीय स्तवकमें भूतों दाहके तीन दिन पूर्व शवका आवरण हटा दिया जाता (वन्तेन दगन )-के फलमूल और मांसादि आहार करने है और आत्मीयगण उससे अन्तिम विदा लेने के लिये योग्य चीजें रहती हैं। उसके बाद पालको, पदण्ड और आते हैं। इस समय पूर्वोक्त अङ्गराग जलसे धो कर फिर उनके पीछे वदेसंयुक्त एक बड़े आकारका कृत्रिम सांप उसे ढक दिया जाता है। बादमें सोनेकी अंगूठीके बदले रहता है। उस सांपको मार कर वे शवके साथमें पांच धातुपात्रोंमें ओम् शब्दके साथ स, व, त, ह, ये जला देते हैं। बदेके ऊपर रखी हुई शवके पीछे सह- पांच बीजाक्षर लिख कर शवके मुत्रमें रख दिये जाते हैं। मृताकाक्षिणी वेला और अन्यान्य आत्मीय रहते हैं। वीजोंमें कहे हुये पाच देव हो उस शवकी रक्षा करते इस महायात्राके समय कविभाषामें गान होता है। सो हैं। पश्चात देवपाठ और शयके ऊपर शान्तिवारिका भी शोक सूचक नहीं, रामायण अथवा भारतयुद्धका सिञ्चन किया जाता है। सुललित उद्धृत अंश। जिस गृहमें शव रक्खा जातो वह अशुद्ध हो जाता गियान्यरमें पर्वतके ऊपर एक स्वतंत्र दाहस्थान है। दाह तक उस घरमें उसका कोई वंशधर है। इसके चारों तरफ ईटो के स्तम्भ और प्राचीरसे परि- वास नहीं करता। किन्तु भूतोंका अड्डा हो जानेके वेष्ठित हैं। बीचमें बलि नामका स्थान है। इसके पास भयसे उसके अन्दर कोई न कोई आता जाता ही रहता ही चार लाल स्तम्भोंके ऊपर छत या गृह है। यहीं पर है। बदोङ्ग और देनपस्सर राजाओंके शवको शवका दाह होता है। जहां राजाओंके शरीर जलाये जाते रक्षाके लिये स्वतंत्र महल बना हुआ है। शवरक्षाका है वहां पर एक सिंह स्थापित है ; किन्तु दूसरे मनुष्यों- ख; थोडा है ; किन्तु दाहको प्रक्रिया अत्यंत गुरुतर और के लिये श्वेत या कृष्ण गोचिह्न होता है। सहमरणाभि- बहुत खर्चेकी है। शवबहनके लिये प्रासादसे 'वदे' (चितो. लाषिणी रमणियोंके दाहके लिये राज दाहस्थानके बाम चूड़) तक ले जाने के लिये एक बांसका सेतु बांधना भागमें तीन बेलास्थान बने हुये है। साधारण लोगोंके पड़ता है। यह सेतु बढ़िया तौरसे सजाया जाता है। लिये ऐसे चूडागृह नहीं बन सकते । उनको लकड़ीके उसके ऊपर मेरुके मांनिद एक चूडाकार मंदिर बनाया बक्समें हो रख कर भस्म करना पड़ता है। इन संदूकों जाता है। इस मदिरकी शोभा भी : अकथनीय है। का आकार कोई कोई पशुओं के आकारका बनाते हैं। अवस्थाके भेदसे चूड़ा तीन तल वा ग्यारह तल तकका उन बक्सोंमें शवको ढक कर रख दिया जाता है। होता है। उसके भीतरके घर भी अच्छी तरहसे सजाये दाहकी पूर्ववत्ती क्रिया सम्पन्न करा पंडितगण शव- जाते हैं। राजाओंका शव ला कर उसे सबसे ऊपर- देहको चितास्थानमें दाहके लिये ले जानेकी अनुमति पाले तलमें सफेद वस्त्रसे ढक कर रखा जाता है। यह देते हैं । क्षत्रियोकी चिताके सामने करीब १२० हाथका