पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३५५

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वालिद्वीप सूचक उपाख्यानोंसे बहुतेरे स्वीकार करते हैं, कि इस द्वीप- पतिगजमह भी मेंगुइ विभागके शासनकर्ता हुए थे। में पहिले हिंदूधर्म फैला हुआ था। इस प्रकार अनेक व्यक्तियों पर वालिका राज्य अवल- ___ उशन-यव नामके प्रन्थसे जाना जाता है, कि मज- म्बित था । १६३३ ई० में ओलंदाज राजदूतके वर्णनसे जाना पहित-राज अगुङ्ग समुद्र पार कर बलिके शासनकर्ता जाता है, कि देव-अगुङ्गई समस्त बालिद्वीपके अधि. को दमन करनेके लिये आये थे। बालिराजके हारनेके पति थे। दूसरे समस्त सामन्त उनकी अधीनता स्वीकार बाद मजपहित-राजके सदस्योंने वहां पर रहनेका अधि- करने लगेल राजधानीके चमके बाद कार पाया। कुछ दिनोंके बाद मुसलमानोंके अभ्युदयसे क्लोङ्ग कोङ्ग, बङ्गलि, गियाम्यर और बोलेलेङ्ग प्रदेश मजपहित (बिल्वतिक्त) राजधानीका जब पतन हुआ देवअगुड़-राजपरिवारके अधिकार में रहे। पूर्वोक्त राजा तब उक्त राजवंशधरोने भी बालिद्वीपमें आ कर आश्रय जातिके क्षत्रिय थे। कुछ समयके बाद जब वैश्य जाति प्रण किया। का प्रभाव बढ़ा तब घे निष्प्रभ हो गये। ____यव और बालिद्वीपके दोनों उशन प्रथमें इसी विषय- ___ सामन्तों के वगाबत करनेसे बालिद्वीपमें बहुत उथल- को स्पष्ट करनेवाली एक छोटी-सी पौराणिक आख्यायिका पुथल मची। मे ईराजको प्रभाववृद्धिके साथ साथ देखी जाती है। किसी समय मयराक्षस-वंशके नज- करन-असेम आदि राज्यकी जय, डामर-राजवंशका बदेश दानव नामक बालिके राक्षसराजने राज्यमें उपद्रव पर आक्रमण और उन्हींकी गोष्ठीका बोनानमे स्वाधीन करना शुरू कर दिया था। इस पर 'मजपहितराज'ने हो कर राज्यस्थापन करना आदि बहुत-सी भीतरी उलर आर्यडामर और पति गजमइ नामके दो सेनापतियोंके पुलट हो गयी। इनके सिवाय क्लोङ्गकोङ्ग और करङ्ग साथ आ कर उस राक्षसको पराजित किया था। उन्होंने असेम राज्यमें आपसी विद्वेषभावकी आग और भी धधक 'गेलगेल' नामके स्थानमें राजधानी बसाई और वहीं उठी। गेलगेलके राजदरबारमें रहते समय गजमह- राज्य करने लगे। उपाख्यानके मूलमें चाहे कुछ भी वंशीय किसी राजपुत्रको देवअगुङ्गकी आशासे हत्या की क्यों न हों, किन्तु बालिबासी सभी यह स्वीकार करते हैं, गयी । उस हत्याका बदला लेनेके लिये मेगई और करेग- कि आर्यडामरने बालीको परास्त किया था और मजह- असेम-वासियों ने उनके ऊपर क्र द्ध हो तलवार उठाई। पहित राज्यके ध्वंसके बाद वहांके राज्यवंशधरोंने देवअगुङ्ग इस युद्ध में बुरी तरह हारे और उनका गेल- बालिद्वीपमें आ कर निवास किया था। गेलमें सिंहासन नष्ट भष्ट कर दिया गया। देवगुङ्गका बालिद्वीपके 'गेलगेल' नगरमें देव अंगुङ्गने राज्य करङ्गअसेम-राजकन्याके साथ जब विवाह हो गया तब स्थापन कर सम्पूर्ण बालिराज्यको अपनी सेना और दोनों पक्षों का झगड़ा निवट गया। इस रानीने बीरो- मंत्रियों में बांट दिया। आर्य डामरने प्रधान पति चित भावसे दोनों राज्यों का शासन किया। इसी (सचिव) पद पर नियुक्त हो तवनान् प्रदेश पाया था। समयसे देवअगुङ्ग वंशके राजाओं को प्रभुताका ह्रास राजा देव अगुङ्ग आय डामरके बिना परामर्श लिये कोई हुआ। यापि यह वंश हार गया था तो भी विजेता. भी कार्य नहीं करते थे। पश्चात् डामर "आर्यकेञ्चेङ्ग" राज्यों को यहां पूर्ववत् सम्मान पाता था। पर करङ्ग- मामकी पदवीको धारण कर राजप्रतिनिधि हो राज्यको देखरेख करने लगे। असेम आदि राजा उनको कर नहीं देते थे। यह अवश्य था, कि वे उन्हें सर्वप्रधान राजा मानते थे। पश्चात् आयडामरके भाई आर्य सेटो, आर्य वैवेतेङ्ग, आर्य बरिङ्गीन, आर्य ब्लोग, आर्य कगकिसन, आर्य विष्णु- करेग असेम राजाओं ने बोलेलेङ्ग और लम्बकको जीत कर लूकुमादिने मा राज्यानुप्रहसे कुछ प्रदेश पाये थे। अपना प्रभाव फैलाया था। दक्षिणमें तबनानके गोष्टी- इसके सिवा आर्य मंजूरी दवु नामके स्थानमें, तमकुवेर, राजाओं ने पश्चिम बेदाग और पूर्वका कुछ भाग भी तनकबुर (कुमार ) तन मन्दर तीन प्रभावशाली वैश्योंने अपना लिया। फिर देवअगुङ्गवंशीय देवमङ्गीश नामक भो भिन्न भिन्न स्थानों में राजाशासन प्राप्त किया था। किसी 'पुङ्गकन्'ने गियान्यरको लूट कर वहां पर अपना Vo.x.88