पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३२६

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२२० बारवई-बाराबंकी मूला-गिरिपथमें अङ्गरेजी मेना सन्निधेशित थी। इसी यह बात आज भी बहुतों के मुखसे सुना जाता है । अहि- स्थान पर मराठोंने अङ्गरेजों के विरुद्ध अंतिम बार अस्त्र- च्छेत्रके नागहदके निकट जहां बुद्धदेवने वक्तृता दी धारण किया था। इसी गिरिसङ्कटमें श्री नवम्बरको थी, वहां अशोकनिमित्त एक स्तूपका ध्वंसावशेष देखा परास्त हो कर मराठों ने सदाके लिये अपनी स्वाधीनता | जाता है। पहले यहां भर जातिका पूर्ण प्रभाव फैला खो दी। हुआ था। उनके अभ्युदय पर अयोध्या जगह जगह २ काश्मोरराज्यके अन्तर्गत एक गिरिकन्दर । यह दुर्ग, प्राकार, परिखा और जलाशयादि बनाये गये थे। अक्षा० ३४१० उ० तथा देशा० ७४३ पू०के मध्य आज भी ध्वंसावशेष समूह लुप्तकीर्तिकी गवाही देता है। अवस्थित है। यहां विपाशा ( झेलम ) नदी बहती है। ब्राह्मण्यधर्मका पुनरभ्युदय होने पर बौद्ध लोग यहाँ इस नदीमें एक बड़ा पुल है। से भगाये गये और क्षत्रियों को प्रधानता स्थापित हुई। बारवई -१ मध्यभारतके इन्दोर राज्यान्तर्गत निमार जिले | मुसलमानो आक्रमणसे क्षत्रिय और भरराजाओं का का एक, परगना । यह भोपावर ऐजेन्सीके शासना प्रभाव जाता रहा। १०३० ई०में सैयद सलार मसाउद- धीन है। ने इस स्थान पर आक्रमण किया। ११८६ ईमे औसरी २ उक्त जिलेका एक नगर। यह नर्मदा नदीसे १ | सेखोंने शिहरियाको परास्त करके यहाँ उपनिवेश बसाया। मील उत्तर पड़ता है । यहां राजपूताना-मालव रेलपथका १२३८ ई में जोहेलपुरके निकट भर जातिको परास्त एक स्टेशन रहनेके कारण वाणिज्यकी विशेष सुविधा करके मुसलमान सेनापति अबदुल वाहिदने इस स्थान- हो गई है। १८४७ ई०में धारगांव, खसड़ावाड, मण्ड | का जैदपुर नाम रखा। इस समय खेवलीके सैयदों ने लेश्वर और बारबर्ड होलकरराजको समर्पण किया गया। भर लोगों से भिठौली तथा भाटि नामक मुसलमानों ने वारावकी-युक्तप्रदेशके फैजाबाद विभागका जिला । यह बाइ- क्षत्रियगणसे बबौलो और भर अधिकृत मवाई-महो- अक्षा० २६ ३१ से २७°२१ उ० तथा देशा० ८० ५६ से लारा नामक स्थान छीन लिया। १३०० ई०में रुधौली ८.५२ पू के मध्य विस्तृत है। भूपरिमाण १७५८ और १३३५ ई०में रसुलपुर भरशासनसे जाता रहा। वर्ग मील है। इसके उत्तर-पश्चिममे सीतापुर, उत्तर १५वीं शताब्दीमें यह स्थान दिल्लोके लोदी और जौन- पूर्वमें गोगरा, दक्षिणपूर्व में फैजाबाद और सुलतानपुर, पुरके शकीवंशका युद्धस्थल हो गया था । इस समय दक्षिणमें रायबरेली तथा पश्चिममें लखनऊ है। यह फतेपुरके सूबेदार दरियाव खांने दरियाबादमें और कामि जिला प्रायः समतल है, पर उत्तर-पश्चिमसे दक्षिण- यर तथा कहन जातिको बासभूमिमें (घाघरा मदीके पूर्वकी आर ढालू होता आया है। गोमतो, घघरा और उभय तोरवत्ती भूमि ) अचलसिंहने एक सेनानिवेश चौका आदि शास्त्रा-नदियां इस जिलेके मध्य हो कर | स्थापित किया था । उक्त अचलसिंहके वंशधरगण बहती हैं जिससे यहांकी जमीन उर्वरा हो गई है। आज भी छः भूसम्पत्तिके अधिकारी हैं तथा बीस हजार इसके मध्यभागमें कुछ झील और तालाब हैं। वर्षा कलहन उन अचल सिंहको अपना पूर्व पुरुष समझ कर कालमें कुल तालाब भर जाते हैं और एकत्र हो कर एक | गौरव करते हैं । इस समय इस जिलेका इतस्ततः मुसल- सखण्ड जलराशिकी तरह दीख पड़ते हैं। किन्तु वर्षाके मान कर्तृक विक्षोभित होने पर भी हरहा नगर सूर्य बाद ये पूर्ववत् आकार धारण करते हैं। वंशोके और सूर्यपुर सोमवंशी क्षत्रियोंके हाथ था। राम- इस जिलेके नाना स्थानों मे जो सब प्राचीन निदर्शन| नगरके राइकवाड़ क्षत्रियगण किस समय यहां आ कर देखे जाते हैं, प्रनतत्वविदगण यदि उनका उद्धार कर बस गये थे, उसका कोई प्रकृत इतिहास नहीं मिलता। सकें, तो एक अभिनव इतिहास तैयार हो सकता है। बराइच देखो। यहां नागपूजोपलक्षमें सैकड़ों' मनुष्य जमा होते हैं। सम्राट अकबर शाहके राजत्वकालमें राइकवाड़के नागराजाओंके समयसे ही यहां नागपूजाको सृष्टि हुई है। सरदार हरिहरदेवने काश्मीर-युद्ध में खूब वोरता दिख-