पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष पंचदश भाग.djvu/३१७

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बान्दा ३११ वीज उत्पन्न होते हैं । बन्यविभागमें तरह तरहके प्रतापसे ये लोग परास्त हो गये थे। पर उन्होंने नाम- उत्कृष्ट काष्ठ मिलते हैं। इसका अधिकांश स्थान टिश मानके लिये वश्यता स्वीकार की थी। मुगलराजवंशके सरकारके अधीन है। विन्ध्यपर्वतके पादमूलमें लोहे- सामन्तरूपमें रह कर भी वे दिल्लीश्वरके विरुद्ध कार- की एक खान है। कल्याणपुरवासी उसमेंसे लोहा बाई करनेसे बाज नहीं आये। राजा चम्पतरायके अधि- निकाल कर नाना प्रकारके द्रव्य बनाते हैं। कारकालमें बुन्देलौने सम्राट शाहजहानका प्रभाव सार्व बान्दा जिलेका कोई विशेष इतिहास नहीं मिलता। कर डाला था। औरङ्गजेबकी अमलदारीमें राजा छत्र- पहले यह स्थान बुन्देलखण्डके अन्तभुक्त था । इस पालके अधीन बुन्देलागण मुगलसम्राटका प्रत्येक उद्यम कारण इसकी ऐतिहासिक घटनाएं उसीमें सन्निवद्ध विफल करके सम्पूर्णरूपसे स्वाधीन हो गये थे। राजा हुई हैं। यहां बहु प्राचीन कालमें गोंड़जातिका बास था। छत्रशालने मुगलके विपक्षमें महाराष्ट्र-सेनासे सहायता कोई आर्यहिन्दू यहां आ कर बस गये, पर उसका कुछ पाई थी। इस कारण १७३४ ई०में मरते समय छत्रशाल भी प्रकृत इतिहास नहीं मिलता। इस स्थानकी पुरा निज अधिकृत राज्यका एक तृतीयांश और ललितपुर काहिनी रामायणकी घटनाके साथ समाश्रित देखी जाती तथा जलौन और झांसी जिला मराठोंको दान दे गये थे। है। प्रवाद है, कि अयोध्याधिपति राजा रामचन्द्र के १७३८ ई०में श्य पेशवा बाजीरावने बुन्देलों के ऊपर समसामयिक वामदेव नामक किसी योगीके नामानुसार अपनी धाक जमाई। इस समयसे ले कर १८०३ ई० इस स्थानका वान्दा नाम पड़ा है। शिलालिपि और तक यह स्थान पूनाके महाराष्ट्रसरकारके अधीन रहा। मुझसे हम यहांके नाग-वंशीय राजाओंका उल्लेख पाते मराठी-डकैतोंके उपद्रवसे यह स्थान मरुभूमिमे परि- हैं। नागराजगण कन्नौज-राजके अधीन रह कर इस णत हो गया था। चन्देल और बुन्देलराजाओं की प्रदेशका शासन करते थे। नरबार नगरमें उनकी राज- अपूर्व कीर्ति मराठों के युद्धविप्लवसे मट्टीम मिल गई। धानी थी। उसके बाद वी शताब्दी तक इस स्थान- इसके ऊपर महाराष्ट्रराज सरकारका अयथा कर, जिससे के राज्यशासन विषयमें कोई उल्लेख नहीं मिलता। ध्वी प्रजा तंग तंग आ गई । इसी मौके पर १८०२ ई०में वृटिश से १४वीं शताब्दी तक यह स्थान चन्देलवंशीय राजाओं-! सरकारने इस प्रदेशका शासन-भार अपने हाथ लिया। के दखलमें था। ११८३ ई०में दिल्लीके चौहान राजा राजा हिम्मत बहादुर अङ्गरेजी के पक्षमें थे। इस पृथ्वीराज कुछ दिनों के लिये यहांके अधिपति थे। उनके । कारण उन्हें काफी सम्पत्ति मिली । किन्तु बान्दाके समयमें यह स्थान उन्नतिकी चरम सीमा पर पहुंच गया , मराठा नवाब शमर बहादुर और उनके सरदारगण सदा- था। उस समय यहां अनेकदुग और अट्टालिका बनाई गई से अंरेजोंके विरुद्ध आ रहे थे । अतः वे राज्यच्युत थीं। उस ध्वंससमूहका निदर्शन आज भी देखा जाता है। किये गये । १८०४ ई०में यहां पूर्णशान्ति बिराजने लगी। कालअरके अजयगढ़का दुर्भेध दुर्ग. गजुराह और महोवा । उसी साल हिम्मतको मृत्यु हुई । अङ्गरेजो ने दी हुई का प्रसिद्ध देवमन्दिर तथा हमीरपुरका कृत्रिम हद चन्देल- सम्पत्ति वापस कर ली और शमशेर बहादुरके परि- राजवंशकी अक्षयकीति है। १०२३ ई में गजनीपति वारवर्गको ४ लाख रुपयेको वृत्ति निर्धारित कर दो, महमूदसे तथा ११६६ ई०में कुतबुद्दीनसे आक्रान्त होने किन्तु उनकी 'नवाब' उपाधि कायम रखी। पर भी १४वीं शताब्दीके प्रारम्भ तक यहांके राजाओंने जवसे यह जिला अगरेजोंके हाथ आया तबसे यहां मुसलमानोंकी अधीनता स्वीकार नहीं की। कोई विशेष उन्नति न हुई। महाराष्ट्रगण जिस प्रथासे १३०० ईमें चन्देलाराजवंशकी अवनति होने पर जमीनका कर वसूल करते थे अगरेजों को प्रथा वैसी भी बुन्देला राजपूतों ने यहां अपना आधिपत्य फैलाया। न रहने पर भी प्रजा अब तक पूर्वक्षति पूरी न कर सकी बुन्देला-सेनाके दुर्दम साहसके सामने कोई भी मुसल- है। १८५७ ई०के गदर में ये लोग कानपुर और इलाहा- मान राजा ठहर न सके। सम्राट अकबरशाहके असाण्ड | बादके राजविद्रोही दलमें शामिल थे। बान्दाके नवाब